आडवाणी का भाजपा को जोर का झटका: पार्टी में सभी पदों से राम-राम

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दिल्ली: भाजपा के भीतर चल रहे घमासान से तो सभी वाकिफ ही थे ऐसे में भाजपा का चेहरा माने जाने वाले आडवाणी का इस्तीफा पार्टी के लिए यकीनन बड़ा झटका साबित होगा। भाजपा का नीव रखने वाले दिग्गज नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने सोमवार को भाजपा को झटका देते हुए अपने सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है। आडवाणी ने आज सुबह पार्टी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह को एक पत्र के जरिये अपना इस्तीफा सौप दिया। हालांकि, राजनाथ ने फिलहाल उनका इस्तीफा मंजूर नहीं किया है और उनके करीबियों अनंत कुमार, वेंकैया नायडू और सुषमा स्वराज के जरिए उन्हें मनाने की कोशिशें हो रही हैं। बताया जा रहा है कि आज सुबह ही लालकृष्ण आडवाणी के प्राइवेट सेक्रेटरी दीपक चोपड़ा ने राजनाथ सिंह को उनका इस्तीफा सौंप दिया था। इसके बाद राजनाथ सिंह उन्हें मनाने के लिए पृथ्वीराज रोड स्थित उनके निवास पहुंचे थे, लेकिन वह नहीं माने।

Modi Adwaniआडवाणी ने कल ही अपने ब्लॉग में गीता का सार लिखा था। जिसमे उन्होंने भाजपा के भीतर चल रहे घमासान को कुरुक्षेत्र की लड़ाई से जोड़ा और खुद को भीष्म पितामाह से। सोमवार को पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को लिखे अपने पत्र में आडवाणी ने लिखा है कि, ”मुझे लगता है कि बीजेपी अब वो आदर्श पार्टी नहीं रही जिसका गठन डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय, नानाजी देशमुख और अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। जिनका एकमात्र ध्येय देश और देशवासी हुआ करते थे।” उन्होंने यह भी लिखा कि आज के हमारे ज्यादातर नेता सिर्फ अपने हितों को लेकर चिंतित हैं। मैं पार्टी में अपने सभी पदों से इस्तीफा दे रहा हूं। इनमें राष्ट्रीय कार्यकारणी समिति, संसदीय बोर्ड और चुनावी समिति शामिल है।

इससे पहले लालकृष्ण आडवाणी, पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारणी की में भी नहीं शामिल हुए थे। खबर है कि आडवाणी 2014 के आम चुनाव के लिए नरेंद्र मोदी को पार्टी की प्रचार समिति का प्रमुख बनाए जाने के निर्णय से दुखी थे। खबर यह भी है कि पार्टी ने कई अहम फैसले से आडवाणी को दूर रखा, और संघ ने भी इसमें कोई कसर बाकी नहीं रखी। सूत्रों की माने तो संघ ने कुछ ही दिनों पहले यह साफ़ कर दिया था कि आडवाणी को लोकसभा चुनाव में न उतारा जाए। इतना ही नहीं संघ यह भी चाहता है कि आडवाणी सक्रिय राजनीति से सन्यास ले क्योंकि अब समय आ गया है कि पार्टी मे उनकी भूमिका सलाहकार और अभिभावक की हो। इस तरह संघ ने आडवाणी को विराम देने का स्पष्ट सन्देश दे दिया था। बीजेपी और संघ से जुड़े सूत्रों का कहना है कि आडवाणी को इस्तीफा वापस लेने के लिए मनाने की कोशिश होगी, लेकिन उनकी शर्तों को मंजूर नहीं किया जाएगा। अगर वह बिना किसी शर्त के इस्तीफा वापस नहीं लेते हैं, तो उसे स्वीकार कर लिया जाएगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख मनमोहन वैद्य ने आडवाणी के इस्तीफे को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है।

हालांकि राजनीति के जानकारों के मुताबिक, भाजपा के लिए यह पहला दौर नहीं है की पार्टी ने किसी जरुरी नेता को दरकिनार किया हो। एक दौर था जब उत्तर प्रदेश में भाजपा के कल्याण के लिए पार्टी के पूर्व नेता कल्याण सिंह राजनीति पटल पर उभरे थे और एक वक्त बाद भाजपा ने उन्हें दूध में पड़ी मख्खी की तरह पार्टी से बाहर निकाल फेका था। हालांकि कल्याण सिंह से लाल कृष्ण आडवाणी की तुलना करना गलत होगा क्योंकि आडवाणी का कद कल्याण सिंह से कही बड़ा है। राजनीतिज्ञ विशेषज्ञों की माने तो आडवाणी में अद्भुत संगठन की क्षमता है। उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मिलकर भाजपा को देशव्यापी बनाया। साथ ही साथ भाजपा में जितने भी दिग्गज नेता है चाहे वह सुषमा स्वराज हो उमा भारती हो यशवंत सिन्हा हो और भले ही गुजरात के सीएम नरेंद्र मोदी ही क्यों न हो। वह सारे आडवाणी के गढ़े हुए है। एक वक्त जब गोधरा काण्ड को लेकर देश में मोदी विरोधी हवा चल रही थी तब भी भाजपा के वरिष्ठ नेता आडवाणी ही थे जिन्होंने मोदी का बचाव किया था।