फैसलाः आरटीआई एक्ट के दायरे में आए राजनीतिक दल

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rti logoकेंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने राजनीति में पारदर्शिता को लेकर छाए बादलों को छांटने का निर्देश जारी करते हुए ऐतिहासिक व्यवस्था जारी की है। सीआईसी ने कहा है कि राजनीतिक दल आरटीआई एक्ट के अंतर्गत आते हैं।

आयोग के अध्यक्ष मुख्य सूचना आयुक्त सत्येंद्र मिश्रा की फुल बेंच ने कांग्रेस, भाजपा, सीपीआई (एम), सीपीआई, एनसीपी और बसपा को आरटीआई के तहत मांगी गई सूचनाओं का जवाब देने का निर्देश देते हुए कहा है कि सभी सार्वजनिक प्राधिकरण आटीआई एक्ट के दायरे में हैं।
राजनीतिक चंदे पर असर
केन्द्रीय सूचना आयोग के इस फैसले के बाद अब तमाम राजनीतिक दलों के पर्दे के पीछे होने वाले राजनीतिक चंदे का खेल रुक जाएगा।
राजनीतिक पार्टियों को चंदे की लेन-देन के ब्यौरे को सार्वजनिक करना होगा। इस फैसले पर अमल शुरु हुआ तो राजनीति में पैसे के खेल को रोकने में यह बड़ा कदम साबित होगा।केन्द्रीय सूचना आयोग की व्यवस्था के मुताबिक राजनीतिक दल सूचना के अधिकार के तहत उत्तरदायी हैं।
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चार हफ्ते में जवाब देने को कहा
सीआईसी की बेंच ने राजनीतिक दलों के अध्यक्षों, महासचिवों को छह हफ्तों के भीतर मुख्य जनसूचना अधिकारियों (सीपीआईओ) की नियुक्ति करने और अपीलीय प्राधिकरण मुख्यालयों में स्थापित करने का निर्देश दिया है।

साथ ही नियुक्ति के बाद सीपीआईओ को आरटीआई आवेदनों पर चार हफ्ते में जवाब देने को कहा गया है।

बेंच ने यह निर्देश भी दिया है कि आरटीआई एक्ट के तहत आने वाले सभी अनिवार्य प्रावधानों का अनुपालन दलों की ओर से करते हुए मांगी गई सूचनाओं के बदले स्पष्ट जवाब दिया जाए।

इन प्रावधानों के तहत अग्रिम सक्रिय सूचनाओं का खुलासा वेबसाइट पर विस्तृत तौर पर किया जाए। आयोग की फुल बेंच ने यह निर्देश आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल, अनिल बेरीवाल की ओर से राजनीतिक दलों से मांगी गई सूचनाओं के संबंध में दिए हैं।

एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफार्म्स की ओर से अग्रवाल और बेरीवाल की ओर से छह राजनीतिक दलों से उनके चंदे और वित्तीय लेन-देन के संबंध में जानकारी मांगी गई थी। लेकिन राजनीतिक दलों ने वित्तीय योगदान देने वालों के नाम और पतों से संबंधित अन्य सूचनाएं देने से साफ इंकार कर दिया था।

राजनीतिक दलों का दावा था कि वे आरटीआई एक्ट के दायरे में नहीं आते हैं। सुनवाई के दौरान बेरीवाल ने तीन सैद्धांतिक बिंदुओं का उल्लेख करते हुए राजनीतिक दलों के दावे को गलत ठहराया।

अधिकार व जिम्मेदारियां स्पष्ट
उन्होंने कहा कि अप्रत्यक्ष तौर पर केंद्र सरकार की ओर से दलों को वित्त मिलता है, जो जनता के प्रति कर्तव्य के लिए दिया जाता है और संवैधानिक, कानून प्रावधानों के मुताबिक उनके अधिकार व जिम्मेदारियां आरटीआई के दायरे में स्पष्ट हैं।

बेंच ने कहा कि दलों को आयकर से छूट प्रदान की गई है और ऑल इंडिया रेडियो, दूरदर्शन की ओर से फ्री एयर टाइम भी चुनावों के दौरान मिलता है।

वस्तुत: ऐसे में अप्रत्यक्ष तौर पर सरकार की से उन्हें योगदान मिलता है। हमें इसमें कोई संकोच नहीं की कांग्रेस, भाजपा, सीपीआई(एम), सीपीआई, एनसीपी और बसपा को केंद्र सरकार की ओर से असल में वित्तीय सहायता मिलती है।

ऐसे में आरटीआई एक्ट की धारा 2(एच) के तहत राजनीतिक दल सार्वजनिक प्राधिकरण हैं। यह तर्क बहुत ही अजीब है कि सभी राज्यों के अंगों के लिए पारदर्शिता अच्छी है, लेकिन राजनीतिक दलों के लिए नहीं। जबकि वास्तविकता में राज्यों के सभी महत्वपूर्ण अंगों पर इनका नियंत्रण रहता है।

आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला भी दिया है जिसमें स्पष्ट किया गया है कि भारत के लोग चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों के खर्च के माध्यमों को जानना चाहिए।सीआईसी ने कहा कि यह न्यायिक घोषणा राजनीतिक दलों के उच्च स्तर पर पारदर्शिता के लिए है। ऐसे में राजनीतिक दल आरटीआई के दायरे में हैं।

पार्टियों को रास नहीं आया फैसला
राजनीतिक दलों को आरटीआई कानून के दायरे में लाने संबंधी केंद्रीय सूचना आयोग का ऐतिहासिक फैसला तमाम पार्टियों को रास नहीं आया है। वाम दल केवल चुनावी चंदा संबंधी लेन-देन को आरटीआई के दायरे में रखने के पक्षधर हैं तो अन्य दल इस पूरे फैसले पर ही सवालिया निशान लगा रहे हैं।

हालांकि इसके लिए लंबी लड़ाई लड़ने वाली संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल इस फैसले को ऐतिहासिक मानते हैं। उनका कहना है कि यह फैसला खासतौर पर चुनाव सुधार की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। चुनावी चंदे से संबंधित हिसाब किताब को आरटीआई के दायरे में रखने की पक्षधर एकमात्र पार्टी भाकपा भी इस फैसले से खुश नहीं है। पार्टी सचिव अतुल अंजान कहते हैं कि चुनावी खर्च और दलों को मिलने वाले चंदे को तो आरटीआई में रखा ही जाना चाहिए।