लखनऊ: चुनावी जनसभाओं में खुले आम मुसलमानों के सर और हाथ काटने जैसे भड़काऊ भाषणों के मामले में दर्ज मुकदमों में वरुण गांधी की बाइज्जात रिहाई के पीछे सीधे तौर पर सपा मुखिया मुलायम सिंह की संलिप्त ता भले ही रेखाकिंत न हो सके परंतु प्रदेशसरकार में सपा के एक मुस्लिहम मंत्री रियाज अहमद की कोशिशों के सुबूत सामने आने लगे हैं। यह भी सामने आया है कि किस प्रकार वरुण गांधी ने अपनी ही पार्टी भाजपा के एक प्रतयाशी को हरवाकर सपा नेता को विधायक बनवाया, और कैसे उसने सरकार बनते ही वरुण का कर्ज चुकाया।
आखिर प्रदेश की सपा सरकार वरुण गांधी पर इतनी मेहरबान क्यों थी? इसकी तहकीकात करने पर पता चलता है कि भाजपा का यह युवा महासचिव जिसके भरोसे भाजपा उत्तर प्रदेश में अपने पुराने दिन लौटने की उम्मीद कर रही है, उसने 2012 के विधानसभा चुनाव में अपनी ही पार्टी के उम्मीदवार को हराने और पीलीभीत से सपा के उम्मीदवार को जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ‘महासचिव’ वरुण गांधी ने पीलीभीत से अपनी ही पार्टी के प्रत्याशी सतपाल गंगवार को चुनाव हराने के निर्देश दिए। एक ऑडियो रिकार्डिंग में वरुण के बेहद करीबी और पीलीभीत में उनके मीडिया प्रभारी रिजवान मलिक वर्तमान में पीलीभीत भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चे के अध्यक्ष मोहम्मद सदर को स्पष्ट रूप से निर्देश देते सुने जा रहे हैं कि ‘भाजपा प्रत्याशी सतपाल गंगवार को चुनाव हराना है क्योंकि वरुण गांधी ऐसा चाहते हैं’।
रिजवान मलिक और मोहम्मद सदर की बातचीत के अंश:
रिजवान मलिक : यार हमसे पूछो मत ।।। मैं कह रहा हूं हमसे पूछो मत अब जो मुनासिब लग रहा है वो सोच समझ के अब फैसला लो।।।
मोहम्मद सदर : जैसे।।।फिर भी तो कुछ कुछ
मलिक : अरे यार अब इससे ज्यादा साफ़ बात क्या है वरुण गांधी ने साफ़ कह दिया है सतपाल को जिताना नहीं है , सतपाल को वोट नहीं देना है , बात ख़तम। हराना है । अब ये आपको तय करना है कौन हराने वाला है। कौन जीतने वाला है , उसके साथ आप लग जाओ, क्या बोला जाए ।।
मोहम्मद सदर : चलिए ठीक है फिर ।।।
मलिक : ठीक है न ?
अब भाजपा प्रत्याशी सतपाल गंगवार ने भी इस बात को स्वीकार किया है कि वरुण ने उन्हें हराने का काम किया था औऱ इस बात को साबित करने वाली एक और ऑडियो क्लिप उनके पास भी है।
आडियो में मौजूद सतपाल से बातचीत के अंश:
* : मैं बस आपसे ये जानना चाह रहा था कि वो जो लड़के ने वो विडियो रिकॉर्ड किया था वो कहां का।।। किस मीटिंग का है वो एक्चुअली ?
*: मीटिंग का नहीं टेलीफ़ोन का ।।। टेलीफ़ोन पे ये कहा गया है कि बसपा को लड़ाओ ।।।।
** : बसपा को लड़ाओ या बसपा को जिताओ ?
* : हां बसपा को जिताओ, वही ।।
** : अच्छा तो उसमें वो उसमें वरुण जी खुद बोल रहे हैं या उनका कोई आदमी है वो बोल रहा है ।।।।
* : खुद बोले हैं वरुण गांधी
पीलीभीत की राजनीति को बेहद नजदीक से समझने वाले हारुन अहमद कहते हैं, ”बसपा इस पूरी लड़ाई में कहीं थी ही नहीं। लोकसभा के चुनाव में जो हिंदू वोट भाजपा के पक्ष में ध्रुवित हुआ था वो अगर विधानसभा में भी हो जाता तो सतपाल गंगवार चुनाव जीत जाते। ऐसे में अगर भाजपा का अपना वोट बसपा के साथ बंट जाता तो उसका सीधा फायदा सपा को मिलना था। यही हुआ भी और सपा के रियाज अहमद चुनाव जीत गए। इस तरह से वरुण गांधी ने सपा को फायदा पहुंचाया और बदले में सपा ने उनके ऊपर दर्ज मामलों को वापस लेने की पहल की।’ ये वही रियाज अहमद हैं जो वर्तमान में उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी सरकार में खादी और ग्रामोद्योग मंत्री और पार्टी की अल्पसंख्यक इकाई के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं। इनके बारे में भाजपा के पीलीभीत जिला उपाध्यक्ष परमेश्वरी दयाल गंगवार बताते हैं कि इस मामले के मुसलिम गवाहों को तोड़ने का काम रियाज अहमद को ही दिया गया था।
तहलका की परमेश्वरी से बातचीत के अंश:
**: तो गवाह वगैहरा को कैसे मैनेज किया।।?
*: अरे।।।जैसे रियाज बाबू मंत्री हैं सपा से।।।और मुलायम सिंह से सीधे संबंध हैं गांधी जी के।।।उनके केस निपटाओ सारे।।।तभी वो।।।एक वो बुखारी दिल्ली वाले ने आवाज उठा दी।।।मुलायम ने तो बोल दिया था वापस लेने को लेकिन बुखारी ने आवाज उठा दी।।।
**: हां उन्होंने तो बोला था बीच में वापिस लेने के लिए।।।
*: फिर जो मंत्री था यहां का ।।।रियाज ।।।उसपे दबाव डाल दिया।।।कि सारे मुसलमान गवाह हैं, फटाफट लगाओ , फटाफट उठाओ, फटाफट हटाओ।।। तो सारे मुसलमान उसने एक कर लिए रियाज ने।।। मै गया था उस तारीख में।।।
रियाज अहमद का भी एक इतिहास है। वे मेनका गांधी के पुराने सहयोगी रहे हैं और जब उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर राष्ट्रीय संजय मंच का गठन किया था तब रियाज अहमद उसके सचिव बने थे। पीलीभीत के पुराने नेताओं और पत्रकारों से बातचीत करने पर पता चलता है कि मेनका गांधी को पीलीभीत लाने वाले रियाज अहमद ही थे। बातचीत में हालांकि वे वरुण के मामले में अपनी और अपनी पार्टी की किसी भी तरह की भूमिका से यह कहकर इनकार कर देते हैं कि मामलों को खत्म करने की अर्जी स्वयं वरुण गांधी ने दी थी मगर वरुण के साथ अपने पारिवारिक संबंधों को वे कुछ इस तरह स्वीकार करते हैं, ‘हम उनके बाप के साथी हैं, उनकी अम्मा के साथी हैं।’
मामला-1: मारपीट और जान से मारने की धमकी
घटना दिनांक : 1 अगस्त 2008
प्रथम सूचना रिपोर्ट : 1 अगस्त 2008
आरोप पत्र : 24 दिसंबर 2008
अंतर्गत धारा: 452, 352, 323, 504 तथा 506 भारतीय दंड संहिता
जैसे कि हम पहले भी चर्चा कर चुके हैं कि स्थानीय दुकानदार भरतवीर गंगवार से मारपीट का यह मामला वरुण के खिलाफ पीलीभीत का पहला आपराधिक मामला था. इस मामले की सुनवाई 2008 से ही चल रही थी. अचानक ही यह मामला खत्म हो गया और इसकी कहीं चर्चा तक नहीं हुई. दरअसल वरुण के मामलों को तेजी से निपटाने का सिलसिला शुरू हुआ पिछले साल अक्टूबर-नवंबर में. उनके कुछ मामले कोर्ट में निपटाए जा रहे थे तो कुछ कोर्ट के बाहर. यह मामला भी उन्ही में से एक था जिसका निपटारा कोर्ट के बाहर ही हुआ. लगभग चार साल तक एक मामूली सा दुकानदार जिस मजबूती से वरुण के खिलाफ कोर्ट में लड़ाई लड़ रहा था वह अचानक ही तब वरुण से समझौते को तैयार हो गया जब वरुण के सभी मुकदमे एक-एक कर ख़त्म हो रहे थे. इसकी पड़ताल के लिए जब हम पीड़ित भरतवीर गंगवार से मिले तो उनके चेहरे पर मौजूद डर साफ देखा जा सकता था. यह डर भरतवीर की उन मजबूरियों को भी बयान करता था जिनके चलते वे वरुण गांधी से समझौते को तैयार हो गए. भरतवीर इस मुद्दे पर कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हुए. उन्होंने इस मामले में समझौता क्यों किया और वरुण के खिलाफ केस क्यों वापस ले लिया इन सवालों का उनके पास कोई भी जवाब नहीं था. भरतवीर 2008 की घटना पर भी बात करने से पूरी तरह कतराते रहे . लेकिन इस घटना के एक चश्मदीद फूलचंद ‘आचार्य जी’ हमें पूरी आँखों-देखी सुना चुके थे जिसका जिक्र हम पहले ही कर चुके हैं.
इस मामले में समझौता करने के पीछे भरतवीर की क्या मजबूरियां थी इनका पता हमें तब चला जब हम मामले की पैरवी कर रहे भरतवीर के वकील से मिले. भरतवीर गंगवार के वकील अश्विनी अग्निहोत्री इस पूरे मामले के निपटारे के बारे में बताते हैं ‘वर्तमान पुलिस अधीक्षक महोदय अमित वर्मा साहब ने भरतवीर को बुलाया. उन्होंने कहा कि आप मुकदमा खत्म करिये. भरतवीर हमारे ऊपर बात डाल कर चला आया कि मैं अपने वकील साहब से बात करके आपको बताऊंगा. उन्होंने दूसरी बार जब बुलाया तो उसने टाल दिया. तीसरी बार उन्होंने पुलिसिया रंग दिखाया और पुलिसिया तरीके से समझाया या यूं कहिये कि धमकाया. एसपी ने कहा कि देख लीजिए वरना आप भी परिणाम भुगतने को तैयार रहिएगा.’ अश्विनी आगे बताते हैं कि भरतवीर ने उन्हें आकर कहा कि एसपी उसे सीधे-सीधे धमका रहा है और उस पर ऐसे दबाव बनाया जा रहा है कि उसे किसी भी मामले में जेल भिजवा दिया जाएगा. ‘मैंने भरतवीर को कहा कि आपके खिलाफ कोई मुकदमा होगा तो हम लड़ेंगे लेकिन साथ ही मैंने उन्हें यह भी साफ़-साफ़ कहा कि इतनी पॉवर तो मेरी नहीं है कि वरुण आपको बंद करवाए तो मैं रोक लूं. कोर्ट में तो मैं मामले से निपट सकता हूं. फिर मैंने भरतवीर को एक सलाह दी कि अगर आप समझौता करना चाहते हैं तो पहले आप वरुण से एक एफिडेविट ले लो क्योंकि आपने एफआईआर लिखवाई, इन्वेस्टिगेशन ऑफिसर को बयान दिया और कोर्ट में आप होस्टाइल हो गए तो कल वो आपके खिलाफ मानहानि का मुकदमा दाखिल कर देगा. इसलिए मैंने भरतवीर को कहा कि पहले वरुण से एफिडेविट लो कि वे समझौता होने के बाद हिंदुस्तान की किसी भी अदालत में इस केस के संबंध में आपके खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं करेंगे.’
अश्विनी वरुण गांधी से यह एफिडेविट लिए जाने के संबंध में भी बताते हैं कि भरतवीर का एक रिश्तेदार दिल्ली में वरुण गांधी के घर गया और उनसे यह एफिडेविट लिया. अश्विनी कहते हैं, ‘अशोका रोड पर उनके आवास से एफिडेविट लिया गया. फिर वहीँ से मुझे वह पढ़कर सुनाया गया. मैंने उसमें कुछ कमियां बताई. इसलिए उस एफिडेविट में उसी वक्त कुछ संशोधन किए गए और नया एफिडेविट दिया गया. जब वो एफिडेविट हमारे पास आ गया तब मामले में समझौता हुआ.’
इस तरह से एसपी के दबाव में यह मुकदमा कोर्ट के बाहर ही समाप्त हो गया. जिला पीलीभीत के जिस एसपी का जिक्र यहां भरतवीर के वकील कर रहे हैं उन्होंने वरुण के बाकी मामलों को निपटाने में भी अहम भूमिका निभाई है. 2008 बैच के आईपीएस अधिकारी अमित वर्मा मई 2012 से पीलीभीत में तैनात हैं. तहलका की तहकीकात में आप आगे देखेंगे कि कैसे इस आईपीएस अधिकारी के कारनामों का जिक्र बरखेड़ा और मोहल्ला डालचंद मामले से जुड़े कई लोगों ने हमारे ख़ुफ़िया कैमरे पर किया है.