आगरा: ई गवर्नेंस में डिजिटल सिग्नेचर का प्रयोग बढ़ता जा रहा है| प्राइवेट से लेकर सरकारी कामो में डिजिटल सिग्नेचर का उपयोग बढ़ रहा है| सरकारी ही नहीं प्राइवेट सेक्टर में भी लोग अपने डिजिटल सिग्नेचर की चिप नौकरों और सहयोगियो को सौप देते है| उत्तर प्रदेश में ही सरकारी कामकाजो में बड़े पैमाने पर अफसर इस तरह का प्रयोग कर रहे हैं| ई गवर्नेंस की जनता को दी जा रही सेवाओ में अधिकतर अफसरों की डिजिटल सिग्नेचर की पेन ड्राइव उनके मातहतो के हाथो में है| वही अफसरों के काम कम्पूटर पर निपटा रहे है| मगर अगर इसका दुरूपयोग हुआ तो नौकरी पर बन जाएगी इस बात से अभी अनजान है|
मगर इसी डिजिटल सिग्नेचर से एक बड़े फर्जीवाड़े के जरिए कंपनियों और संपत्ति को हथियाने की कहानी सामने आई है। हालांकि इस बार यह हुआ है डिजिटल सिग्नेचर के जरिए। इसे अंजाम दिया है उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े एक नटवरलाल ने। उसने मुम्बई जाकर जिस ग्रुप में नौकरी की, उसी के मालिक का डिजिटल सिग्नेचर का अधिकार पाकर 17 कंपनियां अपने कब्जे में कर ली।
इतना ही नहीं, उसने कॉरपोरेट ऑफिस भी मुम्बई से मथुरा स्थानांतरित करा लिया। इसके बाद उसने मुम्बई स्थित बैंकों में कंपनियों के एकाउंट बंद कराकर पैसे मथुरा के बैंक में रख दिए और पूरे परिवार को कंपनियों का निदेशक बना दिया।
इस नटवरलाल का नाम है आनंद लाल चतुर्वेदी जो मथुरा का रहने वाला है। पुलिस ने रविवार को धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। आनंद लाल चतुर्वेदी मूल रूप से पेशे से चार्टर्ड एकाउंटेंट है। उसने मुम्बई में “मिस्टर विश्वास वाडेकर एन्नेक्सर ग्रुप” में 2009 में नौकरी शुरू की।
इस समूह की दो दर्जन से ज्यादा कंपनियां हैं। आनंद ने मुम्बई के चकराना स्थित हनुमन अपार्टमेंट निवासी एनेक्सर समूह के मालिक विश्वास वाडेकर का दिल जीता और सभी कंपनियों का ऑडिटर बन गया।
एसएसपी के मुताबिक आनंद ने वाडेकर विश्वास जीतकर डिजिटल हस्ताक्षर हासिल कर लिए। बाद में उसने कंपनियों के निदेशक से भी डिजिटल हस्ताक्षर ले लिए। फरवरी 2013 में आनंद ने आपराधिक साजिश रच कर पहले तो निदेशकों के त्याग पत्र लिए। फिर उसने अपने रिश्तेदार आशीष पाठक और सुरेश पाठक को इनका निदेशक नियुक्त कर दिया। वह खुद भी एक कंपनी का निदेशक बन गया।
सीओ सिटी अनिल यादव ने बताया कि इसके लिए आनंद लाल ने मुंबई में इसी साल मार्च महीने में अलग-अलग तारीखों में डायरेक्टर बनाए गए ससुर और साले के संग बैठक दिखाई। इसमें “मिस्टर विश्वास वाडेकर एन्नेक्सर कंपनी” के कॉरपोरेट ऑफिस को मथुरा में स्थानांतरित करने और कंपनियों के मुंबई के बैंकों में खातों को बंद कर मथुरा स्थित सेंट्रल बैंक की छत्ता बाजार शाखा में खोले जाने का प्रस्ताव पास दिखाया।
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मथुरा के सेंट्रल बैंक में 28 मार्च को 13 खाते खोले गए। इनमें 60 लाख रुपए जमा करवाए गए। तब विश्वास वाडेकर को फजीवाड़े का पता चला और उन्होंने अन्य बैंकों के खाते का संचालन रुकवा दिया। उन्होंने तीन अप्रैल को धोखाधड़ी का मामला मथुरा कोतवाली में दर्ज करवाया।
पुलिस की जांच में बैठक के दिन तमाम निदेशक का लोकेशन आगरा में ही पाया गया। इसी आधार पर फर्जीवाड़े का पर्दाफाश हुआ। जांच के लिए कोतवाली पुलिस मुंबई गई। मामले में आशीष पाठक को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है।
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उसने जिन कंपनियों को हथिया ली, उनमें एलकॉन सेल्यूलर सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड, मेरीडियम सेल्यूलर सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड, एराइस मॉफीलीस प्राइवेट लिमिटेड, यूनिस्टार टेलीकॉम प्राइवेट लिमिटेड, टेली इंजीनियरिंग सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड, एनवीटैकवायरलेस नेटवर्क प्राइवेट लिमिटेड, इंफोटैक मोपीलिंक प्राइवेट लिमिटेड, टेलीवेस टेक्नोलॉजी प्राइेवट लिमिटेड, मैटिक्स वायरलेस सर्विजसेज प्राइेवट लिमिटेड और कनेक्ट प्राइेवट लिमिटेड शामिल हैं।
क्या है डिजिटल सिग्नेचर-
ई गवर्नेंस सेवाओ को त्वरित निपटाने के लिए लोकवाणी और जन सेवा केन्द्रों की सेवाओ के निस्तारण में इन्ही डिजिटल सिग्नेचर का प्रयोग होता है| एक पेन ड्राइव जिसमे हर अधिकारी का एक अलग इलेक्ट्रॉनिक कोड होता जिसका इस्तेमाल हस्ताक्षर की तरह करके विभिन्न प्रकार के आवेदन निस्तारित किये जाते है| आम तौर पर देखा गया है कि काम अधिक होने के कारण उत्तर प्रदेश में अफसर जनता की सेवा निपटाने के लिए इसे अपने अधिनस्थो को सौप देते है|
डिजिटल सिग्नेचर किसी को भी न दे-
कंप्यूटर और साइबर क्राइम के विशेषज्ञ कहते है कि डिजिटल सिग्नेचर कभी भी किसी को न दे| क्योंकि अगर आपके फर्जी हस्ताक्षर बनाकर किसी ने कोई घोटाला कर दिया तो एक बार बचने के चांस हो सकते है| उसमे हस्तलिपि विशेषज्ञ साबित कर सकते है कि दस्खत आपके नहीं थे| मगर डिजिटल सिग्नेचर से अपने आपको बेदाग़ साबित करना बहुत मुश्किल होगा| क्योंकि डिजिटल सिग्नेचर लिखा पढ़ी में भी किसी को नहीं दी जा सकती| घोटाला और गड़बड़ी कोई कर जाए मगर जिम्मेदार वही होगा जिसकी डिजिटल सिग्नेचर आई डी होगी| काम का बोझ अधिक हो तो अपने अधिनस्थ को अधिकार देकर उसके डिजिटल सिग्नेचर से काम निपटाए जाने चाहिए| ताकि गड़बड़ी पर वाही अधिनस्थ जिम्मेदार हो| दूसरा खो जाने या चोरी हो जाने पर तत्काल इसकी सूचना पुलिस में देने के साथ साथ जहाँ जहाँ आप डिजिटल सिग्नेचर का इस्तेमाल करते हैं वहां तत्काल इसकी सूचना देनी चाहिए ताकि चोरी हुई या खोई हुई डिजिटल सिग्नेचर के कोड इस्तेमाल पर रोक लग सके|
डिजिटल सिग्नेचर का उपयोग भी अपने निजी कम्पूटर पर ही इस्तेमाल करना चाहिए| साइबर कैफ़े आदि में इस्तेमाल करने से बचना चाहिए|