केंद्र की प्रमुख योजना राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना में गरीबों को इलाज देने में किये गए भ्रष्टाचार को लेकर जिस तरह यूपी के मुख्यमंत्री के सचिव आलोक कुमार की वीकएंड टाइम्स के सम्पादक संजय शर्मा ने जमकर धुलाई की| साथ ही लखनऊ की मीडिया भी बधाई की पात्र है कि उसने मुख्यमंत्री के सचिव का गरूर पल भर में ही निकाल दिया| इससे एक बात और साफ़ हो गई कि अगर पत्रकार किसी योजना की गहराई से पड़ताल करे तो अफसरों और नेताओ की पोल खुलते देर नहीं लगती| इस योजना में फर्जीवाड़े के खुलासे से यह भी साफ़ हो गया कि बड़े अफसर गरीबो के लिए आये रुपयों से अपना महल बनाने की कोई कोशिश नहीं छोड़ते
इस योजना में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने बाले लोगों के इलाज के लिए केंद्र सरकार तीस हजार रूपया प्रति वर्ष देती है. मतलब अगर किसी गरीब के परिवार में कोई बीमार हो गया तो उसके तीस हजार रूपया तक का खर्च केंद्र सरकार उठाएगी| इसके क्रियान्वयन की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होती है| इसके लिए प्रदेश सरकार ने बीमा कंपनियों से टेंडर मांगे| प्रत्येक परिवार का कार्ड बनाने की दर 470 तय की गई. मतलब जो बीमा कंपनी जितने कार्ड बनाएगी उसे इसी दर से भुगतान दे दिया जायेगा. इसके लिए प्रत्येक परिवार को 30 रुपया देने होते है| इस कार्ड को दिखाने पर उसे तीस हजार तक का इलाज मुफ्त में मिल जाता है| इसके लिए अस्पतालों का चयन किया जाता है और यहीं से कमाई का खेल शुरू हो जाता है| बीमा कंपनी चाहती है कि कम से कम अस्पताल सूचीबद्ध हो जिससे उन्हें इलाज का पैसा अस्पतालों को नहीं देना पड़े. इसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार रहती है|
यूपी के अफसरों ने इस साल फर्जीवाड़े के नए तरीके खोज लिये. प्रदेश में गरीबी रेखा से नीचे एक करोड़ से अधिक लोग रहते है| सरकार ने आंकड़े दे दिए कि उसने लगभग पचास लाख लोगों के कार्ड बना दिए| इस मेहनत के चलते यूपी को पिछले दिनों केरल में एवार्ड भी दिया गया| प्रदेश में इस योजना के प्रभारी आलोक कुमार है जो मुख्यमंत्री के सचिव भी है| उन्होंने अपनी वाहवाही लूटने के लिए स्वास्थ्य मंत्री अहमद हसन से कहा कि वह मीडिया के सामने इस एवार्ड को दे दें जिससे उनकी भी वाहवाही हो जाएगी| बेचारे आलोक कुमार ने सपने में भी नहीं सोचा था कि शाबासी की जगह उनकी जिंदगी भर की सबसे बड़ी किरकिरी होने जा रही है|
एनेक्सी में सभी मीडिया के लोगों को बुलाया गया. मंच पर स्वास्थ्य मंत्री के अलावा मुख्यमंत्री के सचिव आलोक कुमार, कृषि उत्पादन आयुक्त आलोक रंजन और प्रमुख सचिव स्वास्थ्य बैठे थे| शुरुआत में मंत्री जी ने पिछली सरकार को कोसा कि उस सरकार में योजना ठप्प हो गई थी, इस सरकार में आलोक कुमार जैसे अफसरों के कारण 48 लाख कार्ड बन गए| फिर एवार्ड लेते हुए फोटो खिंचवाये गए कि अगले दिन सभी अखबारों में यह फोटो छपे|
यहां तक सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था पर जैसे ही मंत्री जी चुप हुए, पत्रकार संजय शर्मा ने मानों बम फोड़ दिया| उन्होंने कहा कि आपको एवार्ड इसलिए मिला है क्योंकि आपने 48 लाख कार्ड बना दिए पर मेरी जानकारी में है कि एवार्ड पाने के लिए बड़ी संख्या में फर्जी कार्ड बनाये गए| हड़बड़ाये आलोक कुमार ने जैसे ही ऐसा कुछ होने से मना किया, संजय अपनी सीट से उठे और स्वास्थ्य मंत्री को ले जाकर सबूत दे दिया कि एक ही फोटो से एक ही आदमी के दस कार्ड बने हुए थे| पूरे हाल में सन्नाटा छा गया. आलोक कुमार और स्वास्थ्य मंत्री यह देख कर हैरत में पड़ गए|
घबराये आलोक कुमार ने बिना कागज देखे कहना शुरू कर दिया कि कुछ जगह इस तरह की शिकायत मिली है| बेचारे आलोक कुमार यहां तक कह गए कि राशन कार्ड भी पूरी तरह से सही नहीं बनाये जा सकते| उन्होंने अपनी तारीफ़ करते हुए कहा कि उन्होंने धांधली रोकने के लिए बहुत काम किया| बनारस में एक सौ पचास अस्पतालों में से एक सौ बीस अस्पतालों की सूचीबद्धता समाप्त कर दी जबकि पहले यह अस्पताल फर्जी क्लेम ले लेते थे| आलोक कुमार को अंदाजा नहीं था कि उनकी धज्जियाँ उड़ाने का सारा सामान संजय शर्मा के पास मौजूद है| संजय ने कहा कि आपने अपने दफ्तर की सज्जा पर बिना टेंडर के 2 करोड़ खर्च कर दिए और सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगने पर कहते हैं कि ठेकेदार से ले लो| साथ ही संजय ने वो कागज भी पेश कर दिए जिसमे सूचना आयुक्त ने जानकारी न देने पर बीस हजार रुपया का दंड लगते हुए जिलाधिकारी को इसकी वसूली को लिखा था|
संजय ने कहा कि बीमा कंपनी तो इस बात के लिए करोड़ों रुपया खर्च करने को तैयार रहती है कि कम से कम अस्पताल सूचीबद्ध हों जिससे लोग इलाज न करा पाए और बीमा कंपनियों को करोड़ों का फायदा हो जाये| संजय ने कहा कि मुख्यमंत्री के भाई धर्मेन्द्र यादव बदायूं से सांसद है| इस जिले से एक भी प्राइवेट अस्पताल को इस साल सूचीबद्ध नहीं किया गया जबकि पिछले साल दस अस्पताल सूचीबद्ध थे|
संजय ने बाराबंकी के दो अस्पतालों का नाम बताते हुए कहा कि पहले इन अस्पतालों की सूचीबद्धता ख़त्म की गई और फिर उनसे पांच लाख लेकर एक महीने के भीतर उन्हें फिर सूचीबद्ध कर लिया गया. इन नामों को सुनकर आलोक कुमार तमतमा गए और बोले गलत बात है यह|
इस पर संजय ने पूछा कि आप बनारस समेत इतनी जगह धांधलियों की बात कर रहे हैं तो फिर कहीं भी एफ़आईआर क्यों नहीं लिखवाई? अब आलोक कुमार का धैर्य साथ छोड़ गया उन्होंने संजय से कहा- मैंने नहीं लिखवाई तो आप लिखा दो| यह सुनते ही संजय ने इसका कड़ा विरोध किया और कहा कि आपको ऐसे बोलने का हक़ नहीं है| आईबीएन 7 के सत्यवीर सिंह, वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार, पीटीआई के चीफ प्रमोद गोस्वामी समेत बड़ी संख्या में पत्रकार उठ खड़े हुए और आलोक कुमार से कहा हम आपके स्टेनो नहीं हैं| अहमद हसन ने बीच बचाव का रास्ता निकालते हुए कहा कि आपको भी हमारी बात सुननी पड़ेगी तो पत्रकारों ने कहा कि हमारी ऐसी कोई मज़बूरी नहीं है| गर्मागर्मी इतनी बढ़ गई कि अहमद हसन के गनर भी अन्दर आ गए और इसके बाद पत्रकार वार्ता ख़त्म हो गई|
मगर इस घटना ने लखनऊ की मीडिया का नया चेहरा सामने ला दिया| अब तक मुख्यमंत्री के अफसरों को यह गुमान रहता था कि मीडिया उनके आगे पीछे घूमेगी मगर इस घटना ने उनका यह भ्रम तोड़ दिया| साथ ही यह भी दिखा दिया कि यूपी के अफसर इतने बेलगाम हो गए हैं कि मंत्री के सामने वह घोटाले खोलने वाले पत्रकार से कह सकते हैं कि एफआईआर पत्रकार लिखवा दे| मगर संजय ने जिस तरह इस स्कीम के दस्तावेज इकट्ठे किये वह इस बात का सबूत है कि थोड़ी सी मेहनत करके अफसर को उनकी औकात बताई जा सकती है भले वह मुख्यमंत्री का सचिव क्यों न हो|