नई दिल्ली: 2002 के गुजरात दंगों की पीड़ित ज़ाकिया जाफ़री सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में विरोध याचिका दायर कर दी है। 24 अप्रैल से इस मामले में प्रतिदिन सुनवाई होगी।
विदित है कि एसआईटी ने इस मामले में नरेंद्र मोदी और बाकी लोगों को क्लीनचिट दे दी थी। इसके ख़िलाफ़ ज़ाकिया जाफरी याचिका दायर कर दी है। 2009 में उच्चतम न्यायलय ने विशेष जांच टीम यानि एसआईटी को इस मामले की जांच सौंपी थी। इसके बाद एसआईटी ने कोर्ट को इस केस को बंद करने की सलाह दी थी। इसके बाद मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट ने ज़ाकिया को याचिका दायर करने के लिए आठ हफ्तों का वक्त दिया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने मजिस्ट्रेट के उस फ़ैसले को ख़ारिज कर दिया कि अगर याचिका दायर करने में देरी हुई तो ज़ाकिया का इस केस में याचिका करने का अधिकार ख़त्म हो जाएगा। एसआईटी की रिपोर्ट दिलवाने के बाद विगत फरवरी में सर्वोच्च न्यायालय ने जाकिया को रिपोर्ट पर आपत्ति करने के लिये आठ हफ्ते का समय दिया था। इसी तहत सोमवार को याचिका दाखिल की गयी है। न्यायलय ने इस पर 24 अप्रैल से दैनिक सुनवाई के आदेश दिये हैं।
जकिया के वकील एसएम वोरा ने कहा कि याचिका में उसी अदालत में गत 8 फरवरी 2012 को एसआईटी की ओर से मामला बंद करने के लिए दायर रिपोर्ट पूरी तरह खारिज करने की मांग की गई है और मोदी समेत सभी 59 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर करने का अनुरोध किया गया है। इन लोगों को 8 जून 2006 को उच्चतम न्यायालय के समक्ष जकिया की ओर से दर्ज शिकायत में नामजद किया गया था।
याचिका में अनुरोध किया गया है कि जांच की जिम्मेदारी स्वतंत्र एजेंसी को सौंपी जाए और पूर्व सीबीआई निदेशक आरके राघवन की अध्यक्षता वाले विशेष जांच दल को इसकी जिम्मेदारी नहीं दी जाए। वोरा ने कहा कि याचिका में कहा गया है कि गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार एक नृशंस साजिश थी ताकि गोधरा कांड के बाद हुए दंगे की घटनाओं में हेर-फेर किया जा सके और इसकी साजिश मोदी ने अपनी मंत्रिमंडल के सहयोगियों और विहिप नेताओं समेत अन्य सह आरोपियों के साथ रची थी और इसे अंजाम दिया था। कुल 514 पन्नों की याचिका तीन खंड के संलग्नक और 10 सीडियों में अदालत के समक्ष सौंपी गई। वोरा ने कहा कि याचिकाकर्ता की दलील है कि एसआईटी के पास आरोपियों के खिलाफ निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए पर्याप्त दस्तावेज और बयान थे।
हालांकि, उसने अपराध को ढंकने का फैसला किया और उन्हें क्लीन चिट देकर अदालत को गुमराह किया। एसआईटी के उच्चतम न्यायालय को अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंपने के बाद उसने एसआईटी को निर्देश दिया कि वह शहर की स्थानीय अदालत के समक्ष मामले को बंद करने के लिए अपनी रिपोर्ट दायर करे और जाफरी को सारे दस्तावेज मुहैया कराए ताकि वह इसके खिलाफ याचिका दायर करने में सक्षम हो सकें।
विदित हो कि 2002 के गुजरात दंगों में गुलबर्ग सोसायटी जनसंहार में जाफरी सहित 37 लोग मारे गए थे। उग्र भीड़ ने अहमदाबाद के करीब स्थित गुलबर्ग सोसायटी के मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया था और उन्हें आग के हवाले कर दिया था जिसमे पूर्व सांसद एहसान जाफरी की मौत के बाद उनकी पत्नी जाकिया जाफरी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। इसके बाद कोर्ट ने मामले में राजू रामचंद्रन को एमिकस क्यूरी यानी न्याय मित्र नियुक्त किया था।
इससे पहले सितंबर में सर्वोच्च न्यायालय ने निचली अदालत को गुजरात दंगों के मामले में जाकिया की याचिका पर सुनवाई करने का निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह मजिस्ट्रेट पर निर्भर करता है कि वह दंगे में मोदी और 63 अन्य के खिलाफ अदालती कार्यवाही आगे बढ़ाते हैं या नहीं। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वह अब इस मामले की जांच पर आगे से निगरानी नहीं रखेगी। इसके बाद हाल ही में एसआईटी ने गुजरात दंगों पर अपनी रिपोर्ट पेश की थी जिसकी कॉपी सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ और कुछ और लोगों ने अदालत से मांगी थी। लेकिन एसआईटी ने इसका विरोध किया और फरवरी में इस मामले की सुनवाई करते हुये अदालत ने एसआईटी रिपोर्ट जाकिया जाफरी या तीस्ता सितलवाड़ को देने से मना कर दिया था। मामले में अदालत का कहना था कि अभी रिपोर्ट पूरी तरह से पेश नहीं हुई है, इसलिए इसे जकिया जाफरी को नहीं दिया जा सकता। जिसके बाद इस रिपोर्ट में एसआईटी ने नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देते हुये मामले की क्लोजर रिपोर्ट दायर की थी।