FARRUKHABAD :भारतीय समाज का मूल्यांकन इस बात से किया जाता है कि उसमें महिलाओं की समाज मे क्या स्थिति है? बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर महिलाओं की उन्नति के लिए प्रबल पक्षधर थे। उनका मानना था कि किसी भी समाज का मूल्यांकन इस बात से किया जाता है कि उसमें महिलाओं की क्या स्थिति है ? दुनिया की लगभग आधी आबादी महिलाओं की है, इसलिए जब तक उनका समुचित विकास नहीं होता कोई भी देश चहुंमुखी विकास नहीं कर सकता। डॉ. अम्बेडकर का महिलाओं के संगठन में अत्यधिक विश्वास था। 14 अप्रैल को अम्बेडकर जयंती के उपलक्ष में जेएनआई के तरफ से विशेषांक_
आज देश में बड रहे महिलाओं पर अत्याचार बलात्कार जैसी घटनाओं पर भी डॉ अम्बेडकर का मत था कि यदि महिलाएं एकजुट हो जाएं तो समाज को सुधारने के लिए वह क्या नहीं कर सकती हैं? वे लोगों से कहा करते थे कि महिलाओं और अपने बच्चों को शिक्षित कीजिए। उन्हें महत्वाकांक्षी बनाइए। उनके दिमाग में यह बात डालिए कि महान बनना उनकी नियति है। महानता केवल संघर्ष और त्याग से ही प्राप्त हो सकती है। वायसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम सदस्य रहते हुए डॉ. अम्बेडकर ने पहली बार महिलाओं के लिए प्रसूति अवकाश (मैटरनललिव) की व्यवस्था की।
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संविधान प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में संविधान निर्माताओं में उनकी अहम भूमिका थी। संविधान में सभी नागरिकों को बराबर का हक दिया गया है। संविधान के अनुच्छेद 14 में यह प्रावधान है कि किसी भी नागरिक के साथ लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। आजादी मिलने के साथ ही महिलाओं की स्थिति में सुधार शुरू हुआ। आजाद भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में डॉ. अम्बेडकर ने महिला सशक्तीकरण के लिए कई कदम उठाए। सन् 1951 में डॉ. अम्बेडकर ने ‘हिंदू कोड बिल’ संसद में पेश किया।
डॉ. आंबेडकर का मानना था कि सही मायने में प्रजातंत्र तब आएगा जब महिलाओं को पैतृक संपत्ति में बराबरी का हिस्सा मिलेगा और उन्हें पुरुषों के समान अधिकार दिए जाएंगे। उनका दृढ़ विश्वास कि महिलाओं की उन्नति तभी संभव होगी जब उन्हें घर परिवार और समाज में बराबरी का दर्जा मिलेगा। शिक्षा और आर्थिक तरक्की उन्हें सामाजिक बराबरी दिलाने में मदद करेगी।
डॉ. अम्बेडकर प्राय: कहा करते थे कि मैं हिंदू कोड बिल पास कराकर भारत की समस्त नारी जाति का कल्याण करना चाहता हूं। मैंने हिंदू कोड पर विचार होने वाले दिनों में पतियों द्वारा छोड़ दी गई अनेक युवतियों और प्रौढ़ महिलाओं को देखा। उनके पतियों ने उनके जीवन-निर्वाह के लिए नाममात्र का चार-पांच रुपये मासिक गुजारा बांधा हुआ था। वे महिलाऐ ऐसी दयनीय दशा के दिन अपने माता-पिता, या भाई-बंधुओं के साथ रो-रोकर व्यतीत कर रही थीं। उनके अभिभावकों के हृदय भी अपनी ऐसी बहनों तथा पुत्रियों को देख-देख कर शोक संतप्त रहते थे। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर का करुणामय हृदय ऐसी स्त्रियों की करुण गाथा सुनकर पिघल जाता था। कुछ लोगों के विरोध की वजह से हिंदू कोड बिल उस समय संसद में पारित नहीं हो सका, लेकिन बाद में अलग-अलग भागों में जैसे हिंदू विवाह कानून, हिंदू उत्तराधिकार कानून और हिंदू गुजारा एवं गोद लेने संबंधी कानून के रूप में अलग-अलग नामों से पारित हुआ जिसमें महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार दिए गए।
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लेकिन डॉ. आंबेडकर का सपना सन् 2005 में साकार हुआ जब संयुक्त हिंदू परिवार में पुत्री को भी पुत्र के समान कानूनी रूप से बराबर का भागीदार माना गया। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि पुत्री विवाहित है या अविवाहित। हर लड़की को लड़के के ही समान सारे अधिकार प्राप्त हैं। संयुक्त परिवार की संपत्ति का विभाजन होने पर पुत्री को भी पुत्र के समान बराबर का हिस्सा मिलेगा चाहे वो कहीं भी हो। इस तरह महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने में डॉ. अम्बेडकर ने बहुत सराहनीय काम किया।
वयस्क मताधिकार भी डॉ. अम्बेडकर का ही विचार था. जिसके लिए उन्होंने 1928 में साइमन कमीशन से लेकर बाद तक लड़ाई लड़ी। इसका उस समय विरोध किया गया था। उस समय यूरोप में महिलाओं और अमेरिका में अश्वेतों को मताधिकार देने पर बहस चल रही थी। डॉ. अम्बेडकर ने वोट डालने के अधिकार के मुद्दे को आगे बढ़ाया। उन्होंने निर्वाचन सभा के सदस्यों को चेताया था.कि भारतीय राज्यों को एक जगह लाने की उत्सुकता में वह लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों से समझौता न करें। डॉ. अम्बेडकर ने संरक्षण आधारित लोकतंत्र के बजाय नए भारत के लिए अधिकारों वाले लोकतंत्र को चुना।
साभार: नानक चंद्र