FARRUKHABAD : इसे कुदरत का कहर कहें या एक विडम्बना, महज कुछ शारीरिक संरचना में फेरबदल की बजह से किन्नरों को समाज में अलग नजरिये से देखा जाता है। बधाई देकर नेग की कमाई करने वाले किन्नर समाज के लिए कानून तो मर्दों और औरतों जैसा ही है लेकिन इसके बाद की प्रक्रिया में शामिल अधिकारियों को यह भी नहीं मालूम कि आखिर अदालत से सजा पाये किन्नरों को कारागार में किस जगह रखा जायेगा। किन्नरों पर हुई एफआईआर के बाद जनपद की जेल प्रशासन के हाथ पैर फूल गये हैं। जेल प्रशासन यह नहीं समझ पा रहा कि आखिर इन समाज के प्रथक लोगों को जेल में आने के बाद रखा कहां जायेगा। किन्नर जेल प्रशासन के ही नहीं वल्कि पुलिस प्रशासन के गले की हड्डी बन गये हैं।
बीते दिन आवास विकास निवासी शीतल उर्फ परवेज किन्नर द्वारा कोतवाली में जबर्दस्ती किन्नर बनाने के प्रयास के मामले में शिकायत करने के बाद पुलिस ने तीन किन्नरों पर एफआईआर दर्ज की। एफआईआर दर्ज होने से पहले जब किन्नरों को पुलिस की लापरवाही की भनक लगी तो वादी पक्ष के किन्नर कोतवाली आ धमके और जमकर नंगनाच किया। बाद में पुलिस के समझाने बुझाने पर किन्नर शांत हुए। जिस पर शहर कोतवाल रूम सिंह यादव से पूछा गया कि अगर किन्नर और उग्र हो जाते हैं तो आप कौन सी पुलिस बुलाते- महिला या पुरुष? पीछे से बैठे एक सज्जन ने मजाकिया अंदाज में कहा- किन्नर पुलिस। जिस पर कोतवाल ने कहा कि मैं किसी को नहीं बुलाता खुद लाठी लेकर किन्नरों को खदेड़ देता। इस पर फिर प्रतिक्रिया हुई कि मानवाधिकार का क्या? जिसके बाद कोतवाल साहब खोपड़ी खुजलाने लगे। यहां तक तो मामला ठीक था। लेकिन अब एफआईआर दर्ज होने के बाद जेल प्रशासन के माथे पर पसीने की बूंदें छलकती नजर आ रहीं हैं।
इस सम्बंध में जिला जेल अधीक्षक कैलाशचन्द्र से पूछा गया कि किन्नरों को जेल में रखने के लिए क्या व्यवस्था है और क्या पहले से कोई कानून आपकी नजर में है। जिस पर जिला जेल अधीक्षक ने तत्काल बगल में बैठे जेलर से पूछा क्यों भाई जेलर साहब किन्नर अगर जेल में आते हैं तो कहां रखोगे। काफी देर विचार विमर्श करने के बाद जेल अधीक्षक ने कहा कि वैसे इस सम्बंध में हमें कोई विशेष जानकारी नहीं है। मेरे सेवाकाल में कोई भी किन्नर जेल में नहीं आया है, फिर भी उन्हें प्रथक रखा जायेगा।
वहीं केन्द्रीय कारागार के अधीक्षक यादवेन्द्र शुक्ला ने इस सम्बंध में बताया कि उनके 50 साल के सेवाकाल में कोई भी किन्नर जेल में सजा काटने नहीं आया। उन्होंने कहा कि किन्नरों के आने पर यह समस्या तो खड़ी ही होगी कि उन्हें पुरुष बैरक में रखा जाये या महिला बैरक में। किसी भी जेल में यही समस्या आयेगी। फिर काफी दिमाग लगाने के बाद श्री शुक्ला ने कहा कि नहीं अगर महिला किन्नर है तो उसे महिलाओं के साथ और पुरुष किन्नर है तो पुरुषों के साथ रखा जायेगा। लेकिन फिर अधीक्षक महोदय चकरा गये। नहीं नहीं पुरुष किन्नर भी महिलाओं जैसे सेक्सी कपड़े इत्यादि पहनते हैं। जिससे कोई भी घटना घट सकती है। फिलहाल अगर किन्नर आते हैं तो उन्हें अलग बैरक में रखने की व्यवस्था करायी जायेगी।
पंजाब के पटिलया की दो वर्ष पुरानी घटना है जहां डेरा बस्सी पुलिस की तरफ से सुभाष पुरी निवासी डेरा बस्सी के खिलाफ एक मामले में उसे सजा होने के बाद उसका डाक्टरी मुआयना करवा कर पटियाला की महिला जेल भेज दिया। इसके उपरांत 10 /4/2010 को पुरी को लुधियाना स्थित महिला जेल में भेज दिया गया, जहां उसकी फिर से मैडीकल जांच की गई। परन्तु इस के बावजूद उपरोक्त एड्ज पीडि़त पुरुष की पहचान करने वाले डाक्टरों ने आंखें बंद रखीं और सुभाष पुरी नाम का यह पुरुष नकली किन्नर के रूप में 7 जुलाई, 2010 (करीब चार महीने) तक महिलाओं के साथ दिन-रात लुधियाना की जेल में बंद रहा। इस बात का पता तब लगा जब जेल में बंद महिलाओं ने उसकी पोल खोली। इस मामले में जेल मैनुअल के रूल 147 की उल्लंघना हुई।
कानूनी सलाहकारों की मानें तो जेल अधिकारियों को यह अधिकार होता है कि वह किसी अलग बैरंग में किन्नरों को रख सकते हैं। लेकिन एक लम्बे काल से कोई किन्नर जेल में नहीं गया है इसलिए जेल अधिकारी इस तरह की व्यवस्था से अनभिज्ञ हो सकते हैं।
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