लूट: कृषि मंडी में 51 किलो आलू पर 47 किलो का भुगतान, अधिकारी व जनप्रतिनिधि मौन

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indexफर्रुखाबाद: किसानों के नाम पर राजनीति करने वाले जनप्रतिनिधियों को शायद इस समय सातनपुर मण्डी में हो रही किसानों से लूट की कोई जानकारी न हो लेकिन किसानों की उन्नति का जिम्मा संभाले इन प्रशासनिक अधिकारियों को तो भलीभांति किसानों के हालातों का पता होना ही चाहिए। एशिया की सबसे बड़ी आलू मण्डी कही जाने वाली सातनपुर मण्डी में इस समय किसानों से प्रति कुन्तल 8 किलो आलू मुफ्त में लिया जा रहा है। जिसे कोई देखने वाला नहीं है।

जनपद में सर्वाधिक कृषि आलू फसल की ही की जाती है। अधिकांश किसानों का विकास आलू की फसल पर ही टिका होता है, यदि आलू भाव ठीक ठाक मिल गये तो जनपद का किसान मालामाल और यदि भाव गिर गये तो जनपद किसान खाक होना तय माना जाता है। जनपद में इतनी बड़ी तादाद में आलू की पैदावार होने के बाद भी किसानों को अपना आलू स्वयं बेचने का अधिकार हासिल नहीं हो सका है। किसानों को अपने आलू को बेचने के लिए बिचौलियों (आढ़तियों) की जरूरत पड़ती है। [bannergarden id=”8″]

यदि इन आलू आढ़तियों की कारगुजारी की एक भी तस्वीर सातनपुर मण्डी में देखी जाये तो शायद अपने जनप्रतिनिधियों व जिम्मेदार अधिकारियों की भी आखें खुली की खुली ही रह जायेंगीं। सातनपुर मण्डी में सैकड़ों आढ़ती अपनी दुकान सजाये बैठे हैं, अब आलू किसान अपने आलू को लेकर किसी न किसी आढ़त पर लेकर जाता है तो वहां पर वह अपना आलू स्वयं न बेचकर उसका आलू आढ़ती बेचता है। वह भी किसान को सुबह आलू बेचने के दौरान सिर्फ मण्डी भाव पता होता है। सामान्यतः जिस भाव व्यापारी आलू खरीदते हैं उससे मण्डी भाव 100 रुपये कम में ही खोला जाता है। किसान को उसका आलू तुलने तक अपने आलू का भाव पता नहीं होता। किसान को रुपये मिलने के दौरान ही भाव का सही पता चल पाता है।

मंडी में आढ़त पर किसान के आलू को ट्रैक्टर से उतारकर पैकिटों में भर दिया जाता है। जहां पर पैकिटों को 51 किलो की भर्ती अंदाजिया की जाती है जिसे 50 किलो ही लिखा जाता है। जिसके बाद इसमें भी प्रति पैकिट तीन किलो की कटौती कर 47 किलो के रुपये किसान को दिये जाते हैं। जिससे प्रति कुन्तल किसान का 8 किलोग्राम आलू मुफ्त में व्यापारियों को चला जाता है।

किसानों को बिचौलियों से बचाने के लिए शासन प्रशासन ने न जाने कितनी योजनायें चलायीं, मण्डी समितियों, निगमों का निर्माण कराया, किसान के उत्पादों को खरीदने के लिए क्रय केन्द्र खोले गये लेकिन इन योजनाओं का आज तक किसानों को वाजिब लाभ नहीं मिल सका। शासन प्रशासन द्वारा योजनायें तो लागू कर दी गयीं लेकिन जनपद के जिम्मेदार अधिकारियों ने इसे अपनी जिम्मेदारी समझकर निर्वहन ही नहीं किया। जनप्रतिनिधि ऊंची ऊंची मंचों पर किसानों के उन्नयन के भाषण देते रहे लेकिन हकीकत में आकर कभी नहीं देखा कि किसानों से आखिर कहां कहां लूट होती है।

किसानों के मुफ्त में लिये जा रहे इस आलू को लेकर कुछ किसानों में भी खासा रोष व्याप्त है। किसानों का कहना है कि आज तक किसी जनप्रतिनिधि या अधिकारी ने मण्डी में आकर नहीं देखा कि किसानों के आलू की किस तरह आढ़तियों व व्यापारियों की मिलीभगत से लूट की जाती है। यह जनपद के उन  जनप्रतिनिधियों के लिए बड़े ही शर्म की बात है जो बड़े बड़े मंचों पर किसानों के हितैषी होने का नाटक करते हैं।