सतीश दीक्षित: छात्र नेता से कैबिनेट मंत्री दर्जे तक का सफर

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Satish-Dixitफर्रुखाबाद: हाल ही में प्रदेश श्रमसंविदा बोर्ड के अध्‍यक्ष बनने के साथ ही कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्‍त करने वाले खांटी समाजवादी सतीश दीक्षित छात्र जीवन से ही रजनीति में सक्रिय हैं। पेशे से पत्रकार व वकील रहे सतीश दीक्षित ने सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव से अपनी पारिवारिक निकटता के बावजूद राजनीति को कभी अपनी जीविका का साधन नहीं बनने दिया। शहर में हमेशा रिक्‍शे से चलने वाले सतीश दीक्षित ने जमीनी हकीकत और जमीन से अपना रिश्‍ता कभी टूटने नहीं दिया। समाज के अंतिम छोर पर खड़े आदमी की कसक आज भी उनकी लेखनी में जिंदा है। जेएनआई पोर्टल पर उनकी साप्‍ताहिक व्‍यंगात्‍मक प्रस्‍तुति ‘फर्रुखाबाद परिक्रिमा’ इसका प्रमाण है। [bannergarden id=”8″]

एक साधारण ब्राह्मण परिवार में 1 अगस्‍त 1947 को उनका जन्‍म हुआ था। इसे एक संयोग ही कहा जायेगा कि उनके जन्‍म के दो सप्‍ताह बाद ही भारत को सदियों की गुलामी से आजादी मिल गयी थी। ताजा आजादी की फिजा में जवान हुए सतीश दीक्षित छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय थे। वर्ष 1964 में वह रस्‍तोगी इंटर कालेज के अध्‍यक्ष पद पर निर्वाचित हुए। इसके बाद बद्रीविशाल डिग्री कालेज में छात्र संघ के तीन चुनाव लड़े, व तीनों में विजय हासिल की। शुरू से ही समाजवादी विचारधार के प्रति अपने प्राकृतिक रुझान के चलते राम मानोहर लोहिया उनके राजनैतिक आदर्श रहे। इसे किस्‍मत ही कहेंगे कि लोहिया जी को वर्ष 1963 में यहां से उपचुनाव लड़ने का मौका मिला। चुनाव के दौरान सतीश दीक्षित को जहां उनका सानिध्‍यलाभ मिला वहीं उन्‍होंने लोहिया के चुनाव में सक्रिय भागीदारी भी की।

कानून की डिग्री प्राप्‍त करने के बाद वर्ष 1973 में उन्‍होंने आयकर-व्‍यापार कर विभाग में वकालत शुरू कर दी। आज टैक्‍सेशन की वकालत के क्षेत्र में उनकी गिनती वरिष्‍ठतम अधिवक्‍ताओं में होती है। अच्‍छी खासी वकालत के बावजूद वैचारिक सक्रियता के चलते वह पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़ गये। नेशनल हेरल्‍ड व नवजीवन जैसे समाचार पत्रों के वह 80 के दशक में ब्‍यूरो चीफ रहे। उन्‍होंने जनपद में 90 के दशक में टाइम्‍स आफ इंडिया व नवभारत टाइम्‍स जैसे समाचार पत्रों का प्रतिनिधत्‍व किया। वर्ष 1992 में उन्‍होंने प्रमुख हिंदी दैनिक अमर उजाला का जनपद में नेतृत्‍व संभाला। परंतु उनकी लेखनी की धार कुछ राजनेताओं को रास नहीं आयी। आखिर सलमान खुर्शीद के विरोध के चलते उनको वर्ष 1996 में अमर उजाला अखबार छोड़ना पड़ा। इसके बाद उन्‍होंने सक्रिय पत्रकारिता से सन्‍यास ले लिया। परंतु आज भी वह जेएनआई पर नियमित रूप से आपने साप्‍ताहिक हस्‍ताक्षर लेख ‘फर्रुखाबाद परिक्रिमा’ के माध्‍यम से जनता से संवाद बनाये हुए हैं।

श्री दीक्षित ने लखनऊ से दूरभाष पर जेएनआई को बताया कि सरकार ने उनको जो पद दिया है वह वास्‍तव में नेताजी का प्रेम ही है। उन्‍होंने कहा कि पार्टी ने उनको जो मंच उपलब्‍ध कराया है उसके माध्‍यम से वह नये लागों को जोड़कर पार्टी को मजबूती प्रदान करेंगे। उन्‍होंने बताया कि इस सबके बावजूद शतप्रतिशत मतदान के प्रति लोगों में जागरूकता का जो मिशन उन्‍होंने चला रखा है, वह जारी रहेगा।