दीपावली पर खबरीलाल की फुलझड़ियाँ, बम और धमाके!

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राजनितिक मंच के नए अंपायर रैफरी निर्याणक!

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष गडकरी जी स्वामी विवेकानंद की तुलना दाउद इब्राहीम से करते हैं। कांगेस के सदाबहार महासचिव दिग्विजय सिंह इंडिया अगेंस्ट करेप्शन के नेता अरविन्द केजरीवाल की तुलना अभिनेत्री राखी सावन्त से करते है। भाजपा के नेता यशवंत सिंह कांग्रेस के महासचिव राहुल गाँधी की तुलना बारात के घोड़े से कर रहे हैं। कोई मोदी को बंदर और गुजरात को अंधेर नगरी चौपट राजा बना रहा। योगगुरू बाबा रामदेव रामलीला मैदान में हुई कांग्रेस की रैली को रावण लीला बता रहे हैं। अन्ना को सेना का भगोड़ा बताने वाले बेनी प्रसाद वर्मा और अन्ना को ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार में डूबा व्यक्ति बताकर बाद में माफ़ी मांगने वाले मनीष तिवारी के शुरूआती दौर के बाद इस समय राजनीति के मंच पर उतरे नए अंपायर रैफरी निर्याणक लोग अपने-अपने सोच आकुलन और मानसिकता के अनुसार लोगो की तुलना करने में लगे हुए हैं।

भारतीय राजनीति में शुरू हुए इस खेल में इस समय दनादन चौके छक्के पड रहे हैं। कल तक शालीन, शिष्ट, सुलझे हुए समझे जाने वाले लोग इस गंदे खेल में इस तरह उलझ गए हैं। जैसे इसे राष्ट्रीय खेल बनाकर ही दम लेंगे। अब राहुल को बरात का घोडा बनाये जाने पर कांग्रेसी नेता भले ही भाजपा और भाजपा नेताओ पर लाल पीले होते रहें। परन्तु भाजपा नेता ने तुलना के साथ यह भी इशारा कर दिया कि बरात के घोड़े की शादी नहीं हो सकती। वह केवल लोगो की शादी करा सकता है। हममें से कोई. नहीं चाहेगा कि राहुल गाँधी भारतीय राजनीति के नए डॉ राममनोहर लोहिया  या अटल विहारी बाजपेयी बनें। कांग्रेसजनो, भले आपको बुरा लगे। विनम्रता और क्षमा याचना के साथ में यही कहूँगा। राहुल गाँधी में इतनी स्वीकारोक्ति का साहस नहीं है। वह अटल बिहारी बाजपाई की तरह कुंवारे तो हैं। परन्तु बह्म्चारी नहीं हैं। राहुल गाँधी और उनके दरबारी छाती ठोंक कर पूरा विश्वास के साथ यही कहेंगे। राहुल भैया कुंवारे भी है और बह्म्चारी भी है। भला कोई कांग्रेसी नेता यह कैसे स्वीकार करेगा कि उसकी तुलना भाजपा के सबसे बड़े नेता से की जाये।

परन्तु अपने गडकरी साहव है ना अरे वही अपने नागपुर वाले राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वंय सेवक संघ के चहेते भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष। वह जब बोलते हैं तब बोलते ही रहते हैं। उन्हें डर किसी का नहीं है। और तो और अपने अरविद केजरीवाल तक दांव खा गए। उन्होंने सोचा था चाल चलन और चरित्र में अपना कथित रूप से अलग स्थान रखने वाली भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पर प्रमाणों के साथ हमला बोलेंगे। तब फिर आन बान शान के धनी गडकरी साहव किसी बादशाह सिंह, बाबू सिंह कुशवाह या राजनीति में उनके प्रमोटर रामलला के सबसे बड़े उपासक बजरंगी विनय कटियार जैसे राष्ट्रीय उपाध्यक्ष को अपना चार्ज देकर नागपुर जाकर शरद पवार के सच्चे उत्तराधिकारी बनने का पूरे मनोयोग से प्रयास करेंगे।

केजरीवाल साहव राजनीति के नए खिलाडी हैं। वह नहीं समझ पाए कि कांग्रेसी राबर्ट वाड्रा की तरह गडकरी साहव भाजपा के राबर्ट वाड्रा हैं। कम से कम राजनीति के भ्रष्टाचार में वह आगे हैं। ऐसा न होता तब शालीनता, सुचिता, नैतिकता, सभ्यता ,संस्कृति, संस्कारो, मूल्यों की दुहाई देने वाली भाजपा उन्हें अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष और वह भी दो–दो बार बनाने को तैयार नहीं होती। केजरीवाल साहव आप अभी राजनिति के  नौसिखिए हो। धीरे-धीरे सब हकीकत पता लग जाएगी। भाजपा गडकरी को क्लीन चिट दे रही है। आपकी टीम में भी फर्रुखाबाद से लेकर लखनऊ दिल्ली तक कई मिनी गडकरी हैं। आप अन्ना हजारे नहीं हो सकते। बाबा रामदेव आप होना नहीं चाहते। इसलिए अभी जो दूसरों के दामन पर कीचड़ उछाल कर सुर्खियों में छाये  हुए हो। कल तक अपनी टीम के छोटे बड़े गडकरियो,  वाड्राओ को क्लीन चिट देनी पड़ेगी। जब वकौल आपके राजनिति के हमाम में सब नंगे ही हैं। आप इसी माह राजनितिक पार्टी बना रहे हैं। तब फिर लोग जो आपसे जले फुंके बैठे हैं। दीवाली से शुरू कर होली तक आपके कपडे  उतरेंगे नहीं। फाड़ देंगे और आपको और आपकी टीम को राजनिति के हमाम में अपने से ज्यादा बड़ा नंगा साबित करने के लिए कुछ भी बकाया नहीं रखेंगे। हम सबको अच्छा लगेगा यदि भाजपा की तरह अपने आपको पार्टी बिद द डिफरेंस साबित करने में कामयाब हो।  हमारी शुभकामनायें आपके साथ हैं और रहेंगी।

गडकरी साहव! आप तथा विभिन्न राजनैतिक दलों में मौजूद आपके साथी महान हैं। कुछ भी कहो। यह मानेंगे नहीं। यह कभी भी किसी की तुलना किसी से कर सकते हैं। कोई भी आरोप लगा सकते हैं। रामजेठमालानी भी अब आपकी लाइन में आ गए हैं। उन्हें आप तो भ्रष्ट लगते ही हैं। भगवान राम भी अच्छे पति नहीं लगते। खैर मनाइए उन्होंने राम की तुलना रावण से नहीं कर दी। यदि वह ऐसा कर भी देते तब फिर आप उनका कर भी क्या लेते। अभी तक कांग्रेसियों को भला बुरा भ्रष्ट बेईमान डूबता जहाज आदि कहने के अलावा आपने अपनी पार्टी के कांग्रेसी समकक्षों के विरुद्ध क्या तीर मार लिया है। सबके सब मजे कर रहे हैं। अपनों के द्वारा लगाये गए आरोपों पर सर धुन रहे  हैं। साथ ही साथ दाउद इब्राहीम और स्वामी विवेकानंद की फोटो अपने घर से पार्टी के राष्ट्रीय ,प्रादेशिक और जिला कार्यालयों में तत्काल लगाने का परिपत्र स्वयं अपने नाम और हस्ताक्षरों से जारी करने की जुगत भिड़ा रहे हैं। हकीकत यह है कि पावन पुनीत कार्य अतुलनीय तुलना का ऐतिहासिक प्रयास आपके अलावा कोई दूसरा करने की हिम्मत नहीं जुटा सकता है। सुषमा स्वराज, सोनिया गाँधी के प्रधानमंत्री बनने पर मुखर विरोध कर सकती हैं।

गोस्वामी जी ने सही कहा है “मोहन नारि नारि के रूपा” परन्तु अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष नागपुर वाले राष्ट्रीय अध्यक्ष की इस दिव्य अनुभूति और आईक्यू की नई व्याख्या करने वाली तुलना पर कुछ भी नहीं कह सकती। आखिरकर भाजपा में संभावित प्रधानमंत्रियो की लम्बी लाईन में सुषमा स्वराज जी पहले पांच लोगो में हैं। पता नहीं कल को किसकी जरुरत पड़ जाये। कौन किस वक्त काम आ जाये। अपने गडकरी साहब जो भी हैं जैसे भी है। अपनी प्यारी दुलारी अनोखी राष्ट्रीय पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आज की तारिख में हैं। ऐसे में कौन उनसे पंगा ले। जो कहते हैं कहने दो चुप रहने में हर्ज ही क्या है।

गडकरी जी ! आप और आप जैसे विभिन्न पार्टियों में मौजूद राष्ट्रीय प्रांतीय और स्थानीय नेता कभी भी किसी पर कोई भी आरोप लगा सकते हैं, कुछ भी कह सकते हैं। यह अपने ऊपर लगाये गये आरोपों को झूठ का पुलिंदा और बेबुनियाद बताकर स्वयं ही क्लीन चिट ले लेते हैं। इन्हें येन केन प्रकारेण मीडिया की सुर्खियो में रहने का शौक है। कभी अपनी ही बातों के चक्रव्यूह में फंस जाते हैं। तब फिर मीडिया को बुरी तरह गरियाने लगते हैं। ऐसा लगता है। मीडिया न हुई गरीब की लुगाई हो गई। जिससे सब नैन मटक्का करते भौजाई भौजाई कहते हैं।

गडकरी जी ! मौजूदा रजनीति में अहंकार के प्रतीक पुरुष गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की तुलना आप महात्मा गाँधी ,सरदार पटेल, मोरार जी देसाई ,केशू भाई पटेल आदि में किससे करेंगे। नरेन्द्र मोदी जी! क्या आपमें अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष गडकरी जी की तुलना डा० श्याम प्रसाद मुकर्जी, दीन दयाल उपाध्याय ,अटल बिहारी बाजपेयी या अडवाणी जी से करने की हिम्मत है। गडकरी जी की तुलना थोड़े किन्तु परन्तु के साथ बंगारू लक्ष्मण के साथ हो सकती है। फिर भी पूरी पार्टी गडकरी जी को क्लीन चीट दे रही है। इसे आप क्या कहेंगे। कुछ नहीं फोटो शोटो अपनी जगह। अब न तू मेरी कह। न मैं तेरी कहूं। तू मुझे क्लीन चिट दे। मैं तुझे क्लीन चिट दूं।

राष्ट्रपिता महात्मागांधी की तुलना सोनिया गांधी राहुलगांधी तो क्या इन्दिरा गांधी, राजीव गांधी से भी नहीं हो सकती। परन्तु अपने गड़करी साहब तो गड़करी साहब ठहरे। ऊपर से नागपुर वाले। अंदर से विवेकानंद, दाउद इब्राहीम, शिवाजी, नाथूराम गोडसे और जाने जाने क्या हैं। गड़करी साहब! सुजन या दुर्जन किसी की किसी से तुलना नहीं की जानी चाहिए। क्या दिन और रात की तुलना हो सकती है। क्या धरती और आकाश की तुलना हो सकती है। योग गुरू बाबा रामदेव का जो गोरख धंधा सामने आ रहा है। उसकी तुलना क्या किसी से विशेषत: भ्रष्टाचार के विरुद्ध जंग लड़ रहे अन्ना हजारे और अरविंद केजरीवाल से हो सकती है। नहीं हो सकती, करनी भी नहीं चाहिए। अगर रामलीला मैदान की कांग्रेस की रैली रावण लीला थी। तब फिर विगत वर्ष रामलीला मैदान में आपकी लीला जिसमें आप महिलाओ के कपड़े पहन कर भागे थे। उसे क्या कहा जाएगा। आपके अनुसार ही हानि, लाभ जीवन मरण यश अपयश ईश्वर के हाथ में है। विधाता के हाथ में है। यदि हमारे क्रांतिकारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एसे ही रण छोड़दास होते। तब यह देश कैसे आजाद होता। विशुद्ध जातीय आधार पर राजनीति कर रहे रामलला की अनुयायी साध्वी उमा भारती और कल्याण सिंह की तुलना क्या शबरी निषाद राज और केवट से की जा सकती है। नहीं की जा सकती। करनी भी नहीं चाहिए।

परन्तु अपने गड़करी साहब के क्या कहने स्वामी विवेकानंद की तुलना दाउद इब्राहीम से कर डाली। बबाल हुआ। अब सफाई दे रहे हैं। मीडिया को कोस रहे हैं। किसी भी रूप में किसी भी संदर्भ में यह तुलना नहीं होनी चाहिए थी। नहीं की जानी चाहिए थी। परन्तु गड़करी साहब के साथ पूरी पार्टी खड़ी है। सब उन्हें क्लीन चिट दे रहे हैं। सब उनका हौसला बढ़ा रहे हैं। शौक है। तब फिर दाउद इब्राहीम की तुलना हाजी मस्तान ओस्मा विन लादेन से करिए। आपके विचार बहुत ऊंचे और धर्म निरपेक्ष हैं। तब फिर यह तुलना रावण कंस और गोडसे से हो सकती है। वैसे इसकी कोई जरूरत नहीं है। अपने यहां तो वक्त पड़ने पर गधे तक को बाप बनाने का चलन है। मतलब निकल जाए तब फिर बाप तक को गधा बना लेते हैं।

दिग्विजय सिंह जी, राम विलास पासवान, लालू यादव, बेनी प्रसाद वर्मा, मनीष तिवारी तुलना करने में किसी से पीछे नहीं हैं। अत: आपको घबड़ाने की जरा भी जरूरत नहीं है। दिग्विजय सिंह, अन्ना हजारे, की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से सांठ गांठ मिली भगत जताने में जरा सी भी देर नहीं करते। राम विलास पासवान चुनाव के दिनों में वीर अब्दुल हमीद का हमशक्ल नहीं तलाशते हैं। ओसामा बिन लादेन का हमशक्ल खोज वोट बैंक की सियासत करते हैं। लालू प्रसाद जी के लिए दुनिया में उनके और उनकी पत्नी रावड़ी देवी की तरह आदर्श पति पत्नी और नेता ढूंढने से नहीं मिलेगा। वह आदर्श सांसद हैं। पति पत्नी दोनो आदर्श मुख्यमंत्री हैं। चारा घोटाला सीबीआई जांच पड़ताल आदि जैसी सारी प्रक्रियायें उनके लिए व्यर्थ बेमतलब हैं। बिहार के कांग्रेसी नेता सीताराम केसरी की तर्ज पर लालू प्रसाद भी खाता न वही लालू रावडी कहें वही सब सही। उनकी बातों पर हंसिए तालियां बजाइए और चाहें अपना सर धुनिए।

सपा से कांग्रेस में आये वेनी प्रसाद वर्मा को अन्ना हजारे सेना का भगोड़ा लगता है। मनीष तिवारी को अन्ना हजारे ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार में सने नजर आते हैं। उनकी इसी विशेष योग्यता पर उनका प्रमोशन भी हो जाता है। नतीजतन सौम्य, सुशील, शिष्ट कहे जाने वाले सलमान खुर्शीद जैसे जोग भी वही रास्ता अपनाते हैं। परन्तु अनगिनत आरोपों के बाद भी प्रमोशन पा जाते हैं।

गड़करी जी ने आईक्यू के हवाले से विवेकानंद और दाउद इब्राहीम की आलोचना क्या की। बैठे ठाले लोगों को अपने अपने हिसाब से एक दूसरे की तीसरे से चौथे की दनादन तुलना होने लगी। लोग सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव की तुलना डा० राममनोहर लोहिया से करने लगे। यह तुलना नहीं हो सकती। करनी भी नहीं चाहिए। लोहिया के समाजवादी दौर में पैसा प्रधान नहीं था। जाति की तब चर्चा भी नहीं होती थी। जाति तोड़ो की चर्चा होती थी। मुलायम सिंह यादव के समाजवादी दौर में पैसा और जाति ही महत्वपूर्ण हैं। दबंगई धौंस धमकी विश्वासघात अतिरिक्त योग्यता है। नरेश अग्रवाल आज आधुनिक गांधी और लोहिया हैं। कांग्रेस भाजपा लोकतांत्रिक कांग्रेस, सपा और बसपा में होते हुए पुन: पठ्ठा धड़ल्ले से सपा में है। लाखों करोड़ों खर्च करके मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव की उपस्थिति में जन्म दिन का जश्न मनाया है। कोई उसका बाल भी टेड़ा नहीं कर पाता। यही आज का समाजवाद है।

आज के दौर में डा० लोहिया और नरेश अग्रवाल दोनो अगर मुलायम सिंह यादव से चुनाव लड़ने हेतु टिकट मांगते। तब फिर डा० लोहिया पर विचार भी नहीं होता। नरेश अग्रवाल शान से टिकट ले उड़ते। बताओ किससे किसकी तुलना करोगे। गड़करी साहब हमारे यहां के धीरपुर नरेश आपकी पार्टी छोड़कर सपा में गए। दो बार जीते। तीसरी बार हार गए। तब फिर आपके पार्टी में हाजिर हो गए। बताइए इनकी तुलना किससे करिएगा। यकीन मानिए कल को आपने इन्हें लोकसभा चुनाव में पार्टी का टिकट न दिया। यह श्रीमान जी आपके यहां रहेंगे नहीं। आप इनकी तुलना चाहें जिससे करें। करते रहें। सब इनके ठेंगे पर है।

गडकरी जी! स्वामी विवेकानंद और दाउद इब्राहीम की तुलना आपकी अपनी खोज है। अच्छी क्षमताओ उपलब्धियों वाले महान लोगों की आपस में तुलना नहीं करनी चाहिए। आपने ऐसा महान कार्य कर दिया कि बदनाम लोगों तक को बोलने का मौका दे दिया। बाबा जय गुरुदेव, सत्य सांई बाबा आशाराम बापू, निर्मल बाबा सहित धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र में सक्रिय किन लोगों की तुलना किससे करोगे।

विवेकानंद, दयानंद, रामकृष्ण परमहंस, सूरदास, तुलसीदास, मलिक मोहम्मद जायसी, गौतम, गांधी, नानक, महावीर, मौलाना अब्दुल कलाम आजाद, बीर अब्दुल हमीद, अशफाक उल्ला खां आदि अनगिनत महान विभूतियों में किसकी तुलना किससे करोगे। क्यों करोगे। क्या जरूरत है।

महादेव अब गुन भवन वष्णु सकल गुण धाम,

जाको मन जामें रमे ताहि ताहि सन काम!

गड़करी जी! कश्मीर से कन्या कुमारी तक महाराष्ट्र से बंगाल तक इस पावन पवित्र देश में हर जाति धर्म वर्ग की एक से एक महान विभूतियां हुईं हैं। आज भी हैं। इनके सबके बीच विवेकानंद की किसी आधार पर दाउद इब्राहीम से तुलना करके आपने अच्छा नहीं किया। आपने वीर सपूतों की आत्मा को दुख पहुंचाया है। आपकी पार्टी भले ही आपको माफ कर दे क्लीन चिट दे दे। परन्तु इस देश का जन मानस जो मीडिया की सुर्खियों में नहीं आता। आपको कभी माफ नहीं करेगा। तुलना की जो नई पद्धति आपने खोजी है। वह भारतीय राजनीति में आने वाले दिनों में गंदगी संड़ांध को और बढ़एगी। इसके जिम्मेदार होंगे आप और केवल आप।

चलते चलते _

अब जब खबरीलाल म्यान से बाहर हुए जा रहे हैं। तब फिर राखी सांवत कैसे खामोश रहतीं। कांग्रेस के महा सचिव दिग्विजय सिंह द्वारा उनकी तुलना अरविंद केजरीवाल से किए जाने पर वह घायल शेरनी की तरह विफर पड़ीं। बोलीं देख मुझे ऐसी वैसी मत समझियो। मुझे बदनाम करने की कोशिश मत करना। मैं मुन्नी नहीं हूं जो तेरे जैसों के नाम पर बदनाम हो जायें। मैं हूं राखी सांवत। बना रहे तू कांग्रेसी भड़भूजा। तेरी हिम्मत तू मेरी तुलना अरविंद केजरीवाल से करेगा। केजरीवाल की केजरीवाल जाने। उसके एक्सपोजर से तुझे खाज खुजली या गुदगुदी नहीं होती। यह तुम दोनों जानों और तुम्हारा काम जाने।

लेकिन दिग्विजय सिंह! मुए मेरे एक्सपोजर से तुझे गुदगुदी नहीं होती। तेरा मन सीटी बजाने का नहीं होता। तब इसमें मेरा या मेरा एक्सपोजर का क्या दोष। करम जला तू है ही ऐसा। ऐसा न होता तब फिर खजुराहो वाले मध्य प्रदेश को छोड़कर दिलजली खुदगर्ज दिल्ली के वियावान में बौराया, मन्नाया यूं घूमता। और पार्टियों की बात छोड़। सोंच कर बता तेरी अपनी पार्टी में कांग्रेस पार्टी में पांच लोग भी ऐसे हैं। जो वास्तव में तुझे पसंद करते हों और तू उन्हें पसंद करता हो।

बात को ज्यादा बढ़ाऊंगी नहीं। मैं इज्जतदार स्वाभिमानी महिला हूं। दिलजलों के मुहं नहीं लगती। अब अगर मेरे एक्सपोजर से तुझे गुदगुदी नहीं होती। तेरा मन सीटी बजाने का नहीं करता तब फिर कमजोरी और मजबूरी को समझ। इस कमजोरी और मजबूरी की दवा अपने पिता समान और मेरे बाबा समान कांग्रेस के वरिष्ठ नेता उत्तर प्रदेश उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व केन्द्रीय मंत्री आंध्र प्रदेश के पूर्व राज्यपाल पंडित नारायणदत्त तिवारी से पूंछ ले। आगे के लिए हिदायत दे रही हूं। कभी मेरे ही नहीं किसी के लिए भी इस तरह की बेहूदा बात कही। तब फिर सरे बाजार तेरी इज्जत नीलाम कर दूंगी। नाच न जाने आंगन टेड़ा। जब नहीं जरा भी दम तब क्या करेगा बम। समझ गया दिग्गी राजा की दुम। मैं अपनी इज्जत और प्रतिष्ठा की भरपाई के लिए तेरे विरुद्व ५० करोड़ की मानहानि का दावा करने जा रही हूं। आ जाएगी तेरी भी अक्ल ठिकाने।

राखी सांवत और जाने क्या कहतीं। परन्तु हमी ने रोक दिया। आप तो दयालु मंद महिला हैं। इतना जुलाब काफी है। इतने पर भी न सुधरें तब फिर आगे देखना। राखी सांवत जिस अंदाज में आई थीं। वैसे ही तेवर और अंदाज के साथ वापस चली गईं।

खबरीलाल भी अच्छा तो हम चलते हैं!  कहते हुए अपने अगले शिकार की तलाश में चल दिए। पुन: दीपावली की हार्दिक शुभकामनाओ के साथ सम्बंधित लोगों से विनम्र क्षमायाचना के साथ आज बस इतना ही। जय हिन्द!  हमें भरोसा है विश्वास है जिस तरह आप आज दीपावली पर दिया जलाना नहीं भूलेंगे। ठीक उसी तरह आने वाले हर चुनाव में निष्पक्ष और निर्भीक होकर वोट डालना भी नहीं भूलेंगे।

सतीश दीक्षित

एडवोकेट