फर्रुखाबाद: हर बार हर त्यौहार में सरकार का बड़ा अफसर लखनऊ से हर जिलों को आदेश देता है कि अभियान चलाकर मिलावटी खाने पीने की वस्तुए पकड़ी जाए/जब्त कर ली जाए और जरुरत पड़ने पर मुकदमा दर्ज कर लिया जाये| बड़े अफसर के आदेश का पालन कर प्रतिदिन नियम से जिला मुख्यालय से इसकी रिपोर्ट भेजी जाए| अब सब सक्रिय| सभी एसडीएम, खाद्य एवं आपूर्ति विभाग और खाद्य निरीक्षक अपने अपने अमले के साथ निकल पड़ते है| मिठाई वाले से लेकर तेल वाले के यहाँ तक सैम्पल भरा जा रहा है| कहानी सैम्पल भरे जाने तक ही सीमित रहती है| कहीं नकली खोया तो कहीं नकली देशी घी और रिफाइंड नकली| बेसन की जगह मक्के की बनी बूंदी बिक रही है| घटिया पाम आयल में बनी दालमोठ बिक रही है|
मगर साहब को जैसे सिर्फ नौकरी बजानी है| साहब मिठाई के कारखाने में जाते है तो उन्हें घरेलु सिलेंडर व्यवसायिक उपयोग होते नहीं दीखते| उन्हें कारखाने में गंदगी नहीं दिखती, दुकानदार ग्राहक को बिल नहीं दे रहा है और टैक्स की चोरी कर रहा ये सब नहीं दिखता| दुकान मालिक के पास मौजूद सामान का बिल वाउचर है या नहीं| क्यूँ नहीं दिखता? क्या ये सब एक साथ चेक करने के लिए उन्हें कोई रोक रहा है| या फिर साहब अपनी सिर्फ नौकरी की खाना पूरी कर रहे है|
अजीब बात है, पहले देश में मिलावट का धंधा होता था, पर अब मिलावट नहीं, वस्तुएं नकली होने लगी हैं| भारतीय बाजार में नकली और मिलावटी वस्तुओं ने अपना जगह बना लिया है. लोग मान कर चलते हैं कि वस्तु में मिलावट होगा ही| दूध-दही-घी बिना मिलावट का हो ही नहीं सकता.मसाला-तेल, दाल, गेहूं, पनीर, कपडा, साबुन, कितना नाम गिनाया जाय, बस यूँ समझ लेना है कि उपयोग के सभी वस्तुओं में मिलावट है| पर नकली वस्तुओं का बाजार मिलावटी बाज़ार से ज्यादा समृद्ध है| रुपया तक नकली होने लगा है.
दूध में पानी मिलाना आम बात है| पर पानी मिला दूध शरीर और स्वस्थ्य के लिए घातक नहीं है पर अब जो रसायनिक दूध जो बाजारों में मिलावट के जगह पर छा गया है, उससे तो जिंदगी ही चौपट हो जाएगी| धीमी जहर लोगों को तिल-तिल कर मारेगी| नकली दावा खा कर बीमारी घटने के जगह बढ़ जाती है और हम असहाय भगवन को कोसते रहते है| जीवन बचाने वाले लोग जीवन मारने का धंधा बेखौफ कर रहे हैं| कही कोई डर नहीं, कोई भय नहीं, हमारी संवेदना मर गई है| हमारे देश में मारने का धंधा भी लोगों को अमीर बना रहा है|
हालाँकि ऐसा नहीं है की हमारा देश कानून के मामले में कमजोर है और हमारे पास मिलावट रोकने का कोई कानून नहीं है| लेकिन अफसोस है कि कानून के हाथ पाव नहीं है| कानून की व्याख्या करनी होती है| कानून, बोलता नहीं है| व्याख्या करने वाले लोग कानून की व्याख्या मिलावट-खोरी में लिप्त लोगों के मदद के लिए करते हैं| जिन लोगों को मिलावट रोकने की जिम्मेवारी दी गई हैं, वही लोग मिलावट-खोरी के लिए अपराधियों को प्रोत्साहित करते हैं और उनके बचाव में ढाल बन कर उनके साथ खड़ा रहते हैं| स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को खाद्य पदार्थों में मिलावट रोकने की जिम्मेवारी दी गई है| 1954 में खाद्य अपमिश्रण रोकथाम अधिनियम बनाया गया था| हालाँकि इसके पहले भी कानून थे पर पूरे देश में इस पर एकरूपता नहीं थी| अलग-अलग राज्यों में इसके अलग-अलग रूप थे| 1954 में ही महसूस किया गया था कि मानव जीवन से खिलवाड़ कर कुछ लोग मिलावट के कार्य से धन कम रहे हैं और इसके लिए सम्पूर्ण देश में सशक्त कानून जरुरी है| इस कानून का समय समय पर संसोधन भी होते रहा है| 1964, 1976 और 1986 में भी इस कानून में संसोधन किये गए पर अफसोस कि बात कि जब-जब मिलावट रोकने के लिए संसोधन हुआ, मिलावट बढ़ गया| मिलावट से लोगों में बीमारी बढ़ते गई| डाक्टरों ने भी सेवा भाव को दर किनार कर मरीजों से धन कमानें का तरीका इजाद कर लिया| मिलावट के जगह अब नकली और रासायनिक वस्तुएं बनाने लगे|
मिलावट और नकली वस्तुओं पर जिन लोगों को नियंत्रण के लिए रखा गया है, वे लोग खुद ही अनियंत्रित है| सरकार की मंशा साफ नहीं है| आम लोग सब कुछ जानते हुए, धीमा जहर का शिकार हो रहे है| कही कोई विरोध नहीं, कही कोई छट-पटाहट नहीं, आखिर हम कहाँ जा रहे है? हम अपनी आने वाली पीढ़ी को कमजोर और बीमार नहीं बना रहे है| आइये हम सब मिलजुल कर चिंतन करे, और धीमी जहर से ग्रषित इस देश को जहर मुक्त करने का प्रयास करें| मानवता को समर्पित एक आन्दोलन का शंखनाद करें|