लैकफेड घोटाला : रंगनाथ मिश्रा, चंद्रदेव राम की संपत्ति कुर्क करने की तैयारी

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लखनऊ : उत्तर प्रदेश में बसपा सरकार के दौरान दो बड़े घोटाले कमोवेश कुछ गिने चुने लोगों ने ही अंजाम दिए थे| हम बात कर रहे हैं एनआरएचएम और लैकफेड घोटाले की दोनों ही घोटालों में पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा और उनकी चौकड़ी का नाम सामने आया है| जहाँ एनआरएचएम घोटाले की जाँच देश की सबसे बड़ी जाँच एजेंसी सीबीआई कर रही है वहीँ लैकफेड घोटाले की जाँच पुलिस कोऑपरेटिव सेल कर रही है यहाँ ये बता देना ज़रूरी हो जाता है की पुलिस कोऑपरेटिव सेल को अभीतक डंपिग जोन माना जाता रहा है लेकिन इस घोटाले की जाँच में जिस तरह उसके अधिकारी काम कर रहे हैं उसे देख सीबीआई इनके आगे बौनी नज़र आती है| लैकफेड घोटाले में अभीतक जाँच एजेंसी ने पूर्व मंत्री बादशाह सिंह सहित पंकज त्रिपाठी, गोविंद शरण श्रीवास्तव, अनिल कुमार अग्रवाल, संजय कुमार, अजय दोहरे, डीके साहू तथा प्रवीण कुमार सिंह को जेल पहुंचा दिया है|

सदल प्रसाद – अपने विभाग से पालीटेक्निक निर्माण कार्य दिलाने के लिए 11 करोड़ की रिश्वत ली|

अनीस अहमद – अल्पसंख्यक कल्याण विभाग में लैकफेड को काम दिलाने के नाम पर 18 करोड़ वसूले|

रंगनाथ मिश्रा – लैकफेड को उच्च माध्यमिक विद्यालयों के निर्माण और नवोदय विद्यालयों में साइन बोर्ड सप्लाई का काम दिलाने के लिए 16 करोड़ की रिश्वत ली|

अवधपाल सिंह – प्रदेश में पशु अस्पतालों के निर्माण का काम इस एजेंसी को दिलाने के लिए 68 लाख की रिश्वत ली|

नन्द गोपाल नंदी – नए जीते विधायको में ये जनाब मायावती के सबसे चहेते रहे| इसी के चलते पहली बार में ही इनको मंत्री पद से नवाजा गया| पहले से ही काफी पैसे वाले हैं लेकिन इन्होने भी पिछली सरकार में बहने वाली घोटाला गंगा में जम कर डुबकियाँ लगायी| इन पर आरोप है कि होमोपैथिक अस्पतालों के निर्माण का काम लैकफेड को दिलाने के लिए 1. 5 करोड़ लिए थे|

चौधरी लक्ष्मी नारायण – जब तक नसीमुद्दीन और स्वामी प्रसाद द्वारा ली गयी रिश्वत कि रकम नहीं पता चल जाती तब तक ये जनाब रिश्वत लेने की लिस्ट में नंबर वन खिलाडी है| इन्होने प्रदेश में आईटीआई निर्माण का काम इस एजेंसी को देने के लिए सबसे अधिक 31 करोड़ वसूले|

चन्द्रदेव राम ने भी काम दिलाने के नाम पर रिश्वत ली थी|

इनमें से कुछ तो जाँच अधिकारियों के सामने आये और कुछ ने समय मांग लिया लेकिन पूर्व मंत्री रंगनाथ मिश्रा और पूर्व मंत्री चंद्रदेव राम भूमिगत हो गए हैं| अब जाँच एजेंसी इन दोनों पूर्व मंत्रियों की संपत्ति कुर्क करने के लिए कोर्ट से आदेश लेने की तैयारी कर रही है।

जानकारों के मुताबिक इन दोनों की संपत्ति कुर्क करने के लिए धारा 82 के अंतर्गत कोर्ट से अनुमति हासिल करने के लिए जाँच अधिकारी आवेदन करेंगे। इसके साथ ही अधिकारियों ने सुशील कटियार और बीपी सिंह की संपत्ति को कुर्क करने के लिए कोर्ट से अनुमति मांगी है।

इस घोटाले के सूत्रधार भी बाबू सिंह कुशवाहा और नसीमुद्दीन रहे :-

इस घोटाले की शुरुवात उस समय होती है जब तत्कालीन मुख्य सचिव अतुल कुमार गुप्ता ने पत्रांक संख्या ई-8-372/10-2010 दिनांक 24 मई 2010 के जरिए लैकफेड को राजकीय निर्माण एजेन्सी नामित किया था। इसके साथ ही लैकफेड को 5 करोड़ मानकीकृत भवनों सहित 2.50 करोड़ तक के गैर मानकीकृत भवनों के निर्माण का काम सौंपा गया। शासनादेश में स्पष्ट लिखा गया था कि एक वर्ष बाद लैकफेड के कार्यों की समीक्षा के बाद ही राजकीय निर्माण एजेन्सी नामित करने का पुनः निर्णय लिया जाएगा। लैकफेड द्वारा कराये गए निर्माण कार्यों की गुणवत्ता जांचने की जिम्मेदारी पीडब्ल्यूडी को सौंपी गयी थी।

ये सब अचानक नहीं हुआ बल्कि इसके पीछे चालाक पूर्व मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा का दिमाग काम कर रहा था| इस पूर्व मंत्री ने ही पैकफेड को राजकीय निर्माण एजेन्सी नामित करवाया। उसके बाद अपने रसूख का प्रयोग कर लैकफेड को राजकीय निर्माण एजेन्सी बनवाया। कुशवाहा की निजी दिलचस्पी होने के कारण आननफानन में राजकीय निर्माण एजेन्सी बनाने का प्रस्ताव सहकारिता विभाग ने वित्त विभाग को भेजा। वित्त विभाग की तकनीकी समिति के साथ ही मुख्य अभियंता पीडब्ल्यूडी टी राम और चीफ आर्किटेक्ट पीडब्ल्यूडी ने इसपर अपनी मुहर लगा दी।सूत्र बताते हैं की टी राम ने इसके एवज में बड़ी रकम वसूली थी| ये कुशवाहा का ही दवाब था जिसने लैकफेड को निर्माण एजेन्सी बनवा दिया।

अभी तक सभी कुछ योजना के मुताबिक ही चल रहा था| पीडब्ल्यूडी के चीफ इंजिनियर टीराम को लैकफेड के निर्माण कार्यों की जांच करनी थी जोकि पहले से ही मोटी रकम डकार कर बैठे थे| उन्होंने कभी भी लैकफेड के निर्माण कार्यों को जांचने की जहमत नहीं समझी| इसी बीच राजधानी लखनऊ में सनसनीखेज तरीके से दो सीएमओ की हत्या हो जाती है जिसके चलते कुशवाहा को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ता है| कुशवाहा के बाद लैकफेड में घोटाला करने की कमान तत्कालीन सहकारिता मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी और प्रमुख सचिव सहकारिता रहे संजय अग्रवाल पकड़ लेते हैं। ये वो समय था जब उस शासनादेश को एक साल पूरा हो रहा था जिसमें लिखा था कि एक वर्ष बाद इस पर पुनः निर्णय होगा।

विभागीय सूत्रों के मुताबिक मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी बड़ी रकम लेकर लैकफेड को पुनः राजकीय निर्माण एजेंसी नामित करवा देते हैं| कुशवाहा और सिद्दीकी के करोड़ों के घोटाले में शामिल लैकफेड के मुख्य अभियंता जीएस श्रीवास्तव, जीएम पंकज त्रिपाठी, लेखाधिकारी एके अग्रवाल की पूरी जानकारी उस समय के प्रमुख सचिव सहकारिता संजय अग्रवाल को थी लेकिन ये जनाब कान में तेल डाले बैठे रहे| सूत्रों के मुताबिक अग्रवाल के कुछ भी ना बोलने का एक कारण और भी था वो ये कि इनका मुहं भी पैसे से बंद कर दिया गया था|

इसके साथ ही कुछ सवाल भी हैं :-

उत्तर प्रदेश श्रम निर्माण एवं सहकारी संघ लिमिटेड (लैकफेड) घोटाले की जांच पुलिस कोआपरेटिव सेल कर रही है| आरंभ में तो जाँच की प्रगति देख लग रहा था की जाँच सही दिशा में जा रही है हैं लेकिन जैसे जैसे पूर्व के कई मंत्रियो के नाम इसमें सामने आये| उसके बाद से जाँच अपनी लाइन से भटकती नज़र आने लगी है| जाँच दल तय नहीं कर पा रहा है कि आखिर उसे जाना किधर है| पूर्व मंत्रियों को जो नोटिस दिए जा रह हैं वो आधे अधूरे हैं| एक बादशाह सिंह को हटा दिया जाये तो जाँच दल अभी तक किसी नेता पर हाथ नहीं डाल सका है|

पूर्व मंत्री नंद गोपाल गुप्ता ‘नंदी’ को जांच एजेंसी ने जो नोटिस दिया है उससे साफ़ हो गया है कि जांच का रुख बदल गया है। आपको जानकार हैरत होगी कि एसआइबी पूर्व मंत्रियों को जो नोटिस दे रही है उसमें ये साफ़ ही नहीं है कि आरोप क्या है और उनसे क्या माँगा जा रहा है।

एसआइबी ने छह अक्टूबर को नंदी को सफीना देकर 13 अक्टूबर को हाजिर होने को कहा। इस नोटिस में नंदी से कहा गया कि सम्बंधित अभिलेखों के साथ उपस्थित हों। यदि सम्बंधित अभिलेख के साथ उपस्थित नहीं होंगे तो उनके विरुद्ध साक्ष्य छिपाने का अपराध माना जायेगा। अब यहाँ गौर करने वाली बात ये है कि नोटिस में यह उल्लेख नहीं था कि सम्बंधित अभिलेख कौन से हैं।

इस अधूरे नोटिस का होना क्या था नंदी ने जवाब दिया कि ‘एसआइबी ने जो अभिलेख मांगे हैं उनका कोई विवरण नहीं दिया। किस अभिलेख की आपके मुझसे अपेक्षा की गई है, मैं लैकफेड समिति का न कभी अधिकारी था और न कर्मचारी और न ही उससे सम्बंधित कोई अभिलेख मेरे पास है। यही नहीं नंदी ने जाँच एजेंसी को कानून भी बता दिया कि उत्तर प्रदेश सहकारी समिति अधिनियम 1965 के अनुसार समिति के समस्त अभिलेख समिति के प्रबंध निदेशक के नियंत्रण व अभिरक्षा में रहते हैं। मांगे गये अभिलेखों के बारे में सही से अवगत कराने की कृपा करें।’

ये एक उदहारण है, जबकि जितने भी पूर्व मंत्रियों को जाँच एजेंसी ने नोटिस भेजे हैं सभी इसी तरह अधूरे ही हैं| आरोपियों के वकीलों ने जब आरोपों की प्रति मांगी तो कोई जवाब नहीं दिया गया।

इस घोटाले में स्वामी प्रसाद मौर्या, नसीमुद्दीन सिद्दीकी और उनके निजी सचिव सीएल वर्मा का भी नाम सामने आया लेकिन इनको कोई भी नोटिस नहीं दी गयी| एसआइबी ने इस मामले में पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री राकेशधर त्रिपाठी को तलब किया था, लेकिन बाद में सभी आरोप बेबुनियाद निकले। राकेश धर के मामले में एसआइबी अपनी किरकिरी करा चुकी है।

सूत्र बताते हैं कि इस जाँच में सेटिंग-गेटिंग आरंभ हो चुकी है जानबूझ कर ऐसे नोटिस दिए जा रहे हैं जिनका मकसद ही स्पष्ट नहीं है ऐसे में आरोपी सामने नहीं आएंगे और उनको अपने काले कर्म छुपाने का पूरा मौका मिलेगा जिसके बदले में एक विशेष अधिकारी को इनकी ‘कृपा’ प्राप्त होगी|