फर्रुखाबाद : सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 देश के इतिहास में अब तक सबसे कारगर और प्रभावी कानून होने के बावजूद सरकारी कार्यालयों में हो रहे घोटालों को सार्वजनिक करने व परदर्शिता लाने का काम जन सूचना अधिकारी नहीं होने दे रहे हैं। जनपद फर्रुखाबाद में इस कानून की जानकारी न होने के कारण मात्र एक फीसदी लोग ही विभिन्न विभागों से सूचनायें मांग रहे हैं। उनमें भी जन सूचना अधिकारियों द्वारा उनके सूचना के आवेदन को फाइलों में डम्प कर उनको सूचनायें नहीं दी जाती हैं। थक हार कर सूचना मांगने वाला आवेदक थक हारकर बैठ जाता है या फिर कभी कभी तो उसको जानलेवा हमले व दण्डात्मक कार्यवाही भी झेलनी पड़ती है। सूचना न मिलने पर विरले ही लोग राज्य सूचना आयोग में अपील दाखिल कर प्रतिवादी जन सूचना अधिकारी से सूचनायें ले पाते हैं, या उनके प्रति दण्डात्मक कार्यवाही व जुर्माना लगाने के लिए सूचना आयुक्तों को विवश कर देते हैं।
राज्य सूचना आयोग में दर्ज शिकायतों के लंबित मामलों में कानपुर मण्डल में फर्रुखाबाद के चार सैकड़ा से अधिक मामले विचाराधीन हैं। फर्रुखाबाद के जन सूचना अधिकारियों द्वारा लगातार सात वर्षों से इस अधिनियम के तहत सूचना मांगने वाले को उससे सूचना मांगने का उद्देश्य पूछना, निर्धारित अवधि के बाद शुल्क की मांग करना, कार्यालय में आवेदन प्राप्त न होना आदि कारण दिखाकर सूचनायें नहीं दी जाती हैं।
सूचना न देने में जनपद का बेसिक शिक्षा विभाग अव्वल रहा है। इस विभाग में तो जन सूचना अधिकारी स्वयं राज्य सूचना आयोग में शिकायतों की सुनवाई में न जाकर अपने कार्यालय के स्थाई कर्मचारियों, अधिकारियों के स्थान पर संविदा पर नियुक्त मानदेय भोगी कर्मचारी को प्रतिनिधि के रूप में भेजते हैं। शिकायतकर्ता को आयोग में भी बेसिक शिक्षा विभाग से मांगी गयी सूचना नहीं मिल पाती। राज्य सूचना आयोग में लगभग एक सैकड़ा से अधिक बेसिक शिक्षा विभाग की ही सूचनायें न मिलने की शिकायतें लंबित हैं। संभवतः बीते वर्षों में बेसिक शिक्षा विभाग में मृतक आश्रित शिक्षकों की नियुक्ति घोटाले, ओवरहैड टैंक घोटाले, पुस्तक क्रय एवं वितरण घोटाला, फर्जी शैक्षिक अंकपत्रों से शिक्षकों पर कार्यवाही न होना, मिड डे मील घोटाला, विद्यालय भवन, कक्षाकक्ष, चाहरदीवारी निर्माण, विभिन्न प्रशिक्षण एवं मदों के लिए आई धनराशि के बंदरबांट एवं अन्य भ्रष्टाचार की कलई खुल जाने के डर से इनसे सम्बंधित मांगी गयीं सूचनाओं को आरटीआई कार्यकर्ताओं को नहीं दिया जा रहा है। बीपीएल कार्डधारी आरटीआई कार्यकर्ताओं के राशनकार्ड की जांच कराना व उनके हस्ताक्षर फर्जी बताकर सूचना देने के लिए बजट न होने का पत्र भेजकर उनको सूचनायें उपलब्ध नहीं करायी जा रहीं हैं। राज्य सूचना आयोग में ऐसे तीन आरटीआई कार्यकर्ता श्रीमती प्रेमलता देवी, अनिल कुमार एवं रूपलाल की कई शिकायतें सूचना न प्राप्त होने के कारण लंबित हैं।
मजे की बात यह है कि बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा एक आरटीआई की सूचना न देने पर उस सूचना को जब अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व से सूचना मांगी गयी और सूचना न मिलने पर राज्य सूचना आयोग में सुनवाई के समय भी सूचना न दी गयी तो तत्कालीन राज्य सूचना आयुक्त सुभाषचन्द्र पाण्डेय ने 25 हजार रुपये का जुर्माना किया तब कहीं जाकर बेसिक शिक्षा विभाग ने मांगी गयी सूचना पर फर्जी हाईस्कूल अंकपत्र से प्राथमिक विद्यालय अलीदादपुर मोहम्मदाबाद में सहायक अध्यापक पद पर नियुक्त शिक्षक राजनरायन शाक्य पुत्र मोहनलाल शाक्य निवासी ग्राम मतापुर पोस्ट पिपरगांव थाना मोहम्मदाबाद की सेवा समाप्त कर प्राथमिकी दर्ज करायी।
गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाली शिक्षक की विधवा प्रेमलतादेवी जिसको आज तक बेसिक शिक्षा विभाग से पेंशन भी नहीं मिल पायी है वह बेसिक शिक्षा विभाग से पेंशन पाने के लिए लगभग 25 वर्षों से संघर्ष कर रही है, के पुत्र शिवनरायन ने बेसिक शिक्षा विभाग में मृतक आश्रित नियुक्ति में हुई अनियमितता को साक्ष्यों सहित शिकायत देकर सूचना मांगी लेकिन उन्हें आज तक सूचना नहीं मिली। शिवनरायन के अनुसार बेसिक शिक्षा विभाग मेरी मां को पेंशन नहीं दे रहा। लेकिन मेरी मां के साथ अन्य शिक्षक परिवारों को उसी आधार पर पेंशन दी जा रही है। पेंशन देने में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के साथ ही वित्त एवं लेखाधिकारी भी भ्रष्टाचारी रवैया अपना रहे हैं। किराये के मकान में रह रही प्रेमलता देवी ने काशीराम कालोनी का आवास आवंटन के लिए अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व से प्रार्थनापत्र देकर सूचना चाही। सूचना न मिलने पर राज्य सूचना आयोग में की गयी शिकायत पर तत्कालीन राज्य सूचना आयुक्त सुभाषचन्द्र पाण्डेय ने 25 हजार रुपये का जुर्माना विगत वर्ष किया था। शिवनरायन के अनुसार राज्य सूचना अयोग के साथ ही केन्द्रीय सूचना आयोग में भी लगभग एक दर्जन शिकायतें लंबित हैं।
विभागीय कर्मचारी को शिकायत कर सूचना मांगना पड़ा महंगा
फर्रुखाबाद: बेसिक शिक्षा विभाग में तैनात कनिष्ठ लिपिक सुरेन्द्रनाथ अवस्थी ने शिक्षक से लिपिक बने कर्मचारी के विरुद्व उच्चाधिकारियों से शिकायत कर सूचना आयोग में भी सूचना मांगी थी। उच्च न्यायालय ने शिक्षक से बने लिपिक के सम्बंध में जांच एडी बेसिक कानपुर मण्डल कानपुर को दी थी। जांच अधिकारी ने वर्ष 1996 में संजय पालीवाल को शिक्षक से लिपिक बनाने वाले तत्कालीन जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी फर्रुखाबाद को दोषी मानते हुए सचिव बेसिक शिक्षा परिषद द्वारा दो बार पदोन्नति दिये जाने व 14 वर्ष तक लिपिकीय कार्य करने का अनुभव होने तथा शिक्षक का वेतनमान अधिक होने से राजकीय कोष का नुकसान होने की आशंका को दृष्टिगत रखते हुए संजय पालीवाल को लिपिक पद पर ही बने रहने का आदेश देते हुए शिकायत निस्तारित कर दी थी। लेकिन सुरेन्द्र नाथ अवस्थी के मूल ग्राम नगला हूसा निवासी ने सुरेन्द्रनाथ अवस्थी की कक्षा 8 की टीसी में नाम सुरेन्द्रनारायण अवस्थी और जन्मतिथि का प्रमाणपत्र देकर कक्षा 10 पास करने वाले विद्यालय में नाम सुरेन्द्रनाथ अवस्थी और जन्मतिथि अलग होने के साक्ष्य देकर शिकायत की थी। शिकायत की जांच कर जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने फर्जी नाम व जन्मतिथि से नियुक्ति पाने का दोषी मानते हुए कनिष्ठ लिपिक की सेवायें समाप्त कर दी हैं।