मानदेय न मिलने से भूखों मरने की कगार पर स्कूलों के रसोइये

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फर्रुखाबाद: शासन स्तर से जहां जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि प्राइमरी व जूनियर स्कूलों में मध्यान्ह भोजन बनाने वाले रसोइयों को महीने की प्रत्येक 10 तारीख को भुगतान सुनिश्चित कराना अनिवार्य किया गया है। लेकिन शासन के निर्देशों को धता बताकर रसोइयों को चार चार माह से मानदेय नहीं मिला है जिससे जनपद में रसोइये भूखों मरने की कगार पर पहुंच चुके हैं।

जनपद के अधिकांश विद्यालयों के रसोइयों को चार से 6 माह तक का मानदेय नही दिया गया है। जिससे गरीब रसोइयों को अपने बच्चे पालने मुस्किल पड़ रहे हैं। शासन स्तर से रसोइयों को 1000 हजार रुपये माह की 10 तारीख को भुगतान करने के सख्त निर्देश दिये गये लेकिन जनपद के जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी की मनमानी के चलते रसोइये एक एक पैसे के लिए तबाह हैं। अधिकांश रसोइया विधवा व असहाय हैं। जिनके पास जीविका का अन्य कोई साधन भी नहीं है। भले ही एमडीएम में घोटाले किये जा रहे हों लेकिन गरीब रसोइयों को उनका मानदेय समय से नहीं दिया जा रहा है।

जेएनआई टीम ने इसकी हकीकत जानने के लिए राजेपुर ब्लाक क्षेत्र के ग्राम गाजीपुर की रसोइयों से रूबरू हुए। गाजीपुर प्राथमिक विद्यालय में तैनात रसोइया विधवा मटरोदेवी पत्नी स्व हरीसिंह ने बताया कि उसको चार माह से मानदेय नहीं मिला है। इसके लिए कई बार प्रधानाध्यापक व प्रधान से भी कहा लेकिन किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया। उसके 9 वर्षीय लड़का व एक 18 वर्षीय पुत्री है। घर में जीविका चलाने का अन्य कोई साधन भी नहीं है। चार माह से मानदेय न मिलने से अब उन्हें एक वक्त ही खाना खाकर गुजारा करना पड़ रहा है।

वहीं गाजीपुर प्राथमिक विद्यालय की ही रसोइया विधवा मुन्नीदेवी पत्नी स्व0 दयाशंकर ने बताया कि उसे भी चार माह से वेतन न मिलने से भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। घर में तीन बच्चे हैं। जिनकी परवरिश में उसे दिक्कतें आ रहीं हैं। 10 वर्षीय सत्येन्द्र, 4 वर्षीय सोनी, 5 वर्षीय पुत्री शांती है। जिनके दूध तक की व्यवस्था वह नहीं कर पा रही है। प्रधान व प्रधानाध्यापक से कहने पर वह कह देते हैं कि जब बीएसए ने रुपया खाते में भेजा ही नहीं तो वह कहां से दे दें।

जनपद के रसोइयों का यह मात्र नमूना है। ऐसी न जाने कितनी विधवा व असहाय रसोइया हैं जिनको महीनों से मानदेय नहीं दिया गया। कहीं प्रधान की गलती से तो कहीं प्रधानाध्यापक की तो अधिकांश स्कूलों में जनपद प्रशासन स्तर से ही रुपये नहीं भेजे गये। जिससे रसोइये भूखों मरने की कगार पर हैं।