आखिर कहां गये जाकिर हुसैन ट्रस्‍ट की 25 एकड़ जमीन पर खड़े हजारों कीमती हरे पेड़

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फर्रुखाबाद- जाकिर हुसैन ट्रस्‍ट को नवाबगंज स्‍थित जिस भूखण्‍ड का पट्टा किया गया था, उस पर उस आम, शीशम, यूकेलिप्‍टस व बबूल के हजारों पेड़ खड़े थे। एक सवाल यह है कि आज वीरान पड़ी इस भूमि पर खड़े लाखों रुपये के कीमती पेड़ आखिर कहां चले गये। दूसरा सवाल यह है कि पुलिस व राजस्‍व विभाग के साथ-साथ वन विभाग भी क्‍या सोता रहा।

नवाबगंज के ग्राम गनीपुर जोगपुर की गाटा संख्‍या 1625 की 25 एकड़ जमीन, जो अब डा. जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्‍ट के पास है, का पट्टा वर्ष 1984 में शमसाबाद निवासी अब्‍दुल मुजीब खां को वृक्षारोपण के लिये दिया गया था। एक कद्दावर राजनैतिक हस्‍ती का विरोध न करपाने के बावजूद आज भी उनको अपने साथ हुई नाइंसाफी का दर्द है। मुजीब खां बताते हैं कि वर्ष 1995 में यह जमीन उन्‍हें सूचना दिये बिना ही डा. जकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्‍ट को दे दी गयी। जिस समय जमीन ट्रस्‍ट को दी गयी उस समय इस 25 एकड़ जमीन पर लगभग 200 आम, इतनी ही शीश्‍म, 2,000 यूकेलिप्‍ट्स व 10,000 बबूल के पेड़ लगे हुए थे। इस बात की पुष्‍टि वर्ष 1996 में जारी इंतखाब खसरा से भी होती है।

यह जमीन आज बियाबान पड़ी हुई है। सवाल यह है कि इस जमीन पर खड़े यह हजारों बेशकीमती पेड़ आखिर कहां चले गये। जाहिर सी बात है कि यह हरे पेड़ काट कर बेच दिये गये। परंतु सवाल व्‍यवस्‍था का भी है कि, खुलेआम हरे पेड़ कटते रहे और राजस्‍व, पुलिस व वन विभाग के आधिकारी सोते रहे।

मुजीब खां बताते हैं कि जब कभी इलेक्‍श्‍न का समय आता था तो कई राजनैतिक लोग उनसे संपर्क करते थे, पट्टे के कागजात देखते, फोटो कापी कराते और मामले को उठाने का वादा करते थे। परंतु वास्‍तव में आज तक मुद्दे को किसी नेता ने उठाया नहीं। वह स्‍वयं भी अपनी कमजोरी को स्‍वीकार करते हैं। बताते हैं कि इतनी बड़ी सियासी शख्‍सियत के खिलाफ वह कभी कमर कस कर लड़ने का साहस नहीं जुटा सके। वह कहते हैं कि इसकी एक वजह यह भी रही कि उन्‍होंने कई बार इसकी शिकायत जिलाधिकारियों व उपजिलाधिकारियों से की परंतु कोई कार्रवाई नहीं हुई तो मुझे लगा कि जब इन आला अधिकारियों की दम नहीं है तो मैं क्‍या कर सकूंगा। यही सोच कर बैठ गया।