फर्रुखाबाद- वाटर-शेड परियोजना के अंतर्गत एक फर्जी पत्र के आधार पर आज से दस वर्ष पू्र्व भी जाकिर हुसैन ट्रस्ट धोखा धड़ी का प्रयास कर चुका है। तत्कालीन सीडीओ ने इस आशय की रिपोर्ट शासन को भेजी थी। जिला ग्राम्य विकास अभिकरण के शासी निकाय से भी ट्रस्ट को ब्लैक लिस्ट किये जाने की सिफारिश की गयी थी। परंतु खुर्शीद परिवार की राजनैतिक धमक के चलते तब भी फाइल ठंडे बस्ते में डाल दी गयी थी।
ऊसर भूमि सुधार हेतु केंद्र सरकार की ओर से वर्षाजल संचय कर ऊसर भूमि को उपजाऊ बनाने के लिये वर्ष 2001-02 में वाटरशेड परियोजना के अंतर्गत जनपद को लगभग दो करोड़ रुपय की धनराशि अवमुक्त की गयी थी। केंद्र सरकार की ओर से यह धनराशि तीन संस्थाओं के दिये जोने के निर्देश दिये गये थे। कुल धनराशि का 50 प्रतिशत भाग डा. जाकिर हुसैन ट्रस्ट को मिलना था। शेष धनराशि में से आधा अधा पैसा वंदना सेवा संस्थान नामक एनजीओ व भूमि संरक्षण विभाग के बीच बंटना था। धनराशि के अग्रिम आहरण के लिये तत्कालीन सीडीओ लाल बिहारी पाण्डेय द्वारा मांगे जाने पर जाकिर हुसैन ट्रस्ट की प्रोजेक्ट डायरेक्टर लुइस खुर्शीद ने जो अथोर्टी लेटर प्रस्तुत किया वह सत्यापन में फर्जी पाया गया। इसके बाद सीडीओ ने बाकायदा सत्यापन पत्र की प्रति लगाते हुए अपनी रिपोर्ट शासन को भेज दी। सीडीओ के पत्र व सत्यापन लेटर के आधार पर जिलाग्राम्य विकास प्राधिकारण की शासी निकाय की बैठक में भी यह मुद्दा उठा। तत्कालीन सांसद चंद्र भूषण सिंह उर्फ मुन्नू बाबू की अध्यक्षता में हुई बैठक में बाकायदा जाकिर हुसैन ट्रस्ट को काली सूची में डालने का प्रस्ताव पारित किया गया। परंतु इस पर कार्रवाई आज तक नहीं हुई। पत्रावली आज भी डीआरडीए में धूल फांक रही है।
जन पद के तत्कालीन सीडीओ व वर्तमान में आगरा विकास प्राधिकारण के उपाध्यक्ष लाल बिहारी पाण्डेय से इस संबंध में सम्पर्क करने पर उन्होंने बताया कि मामला काफी पुराना है, परंतु फिर भी उन्हें याद है कि श्रीमती खुर्शीद के अथारिटी लेटर के सत्यापन के लिये यहां से एक अधिकारी को व्यक्तिगत रुप से दिल्ली भेजा गया था। उन्होंने बताया कि जाकिर हुसैन ट्रस्ट के बाइलाज के अनुसार जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार जाकिर हुसैन ट्रस्ट के पदेन सचिव होते हैं। विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार उस समय यूपी कैडर के एक आईएएस अधिकारी थे। उन्होंने बाकायदा लिखित रूप से सूचित किया था कि ट्रस्ट ने इस आशय का कोई अधिकार पत्र लुइस खुर्शीद के नाम जारी नहीं किया है। अधिकार पत्र में जिस तिथि में बोर्ड की बैठक दिखायी गयी है, उस तारीख में बोर्ड की कोई बैठक ही नहीं हुई। श्री पाण्डेय ने बताया कि उन्होंने तो श्रीमती खुर्शीद के निर्देशानुसार संभवत: लगभग 60 लाख रुपये की चेक भी काट दी थी, परंतु इसी बीच सत्यापन पत्र आ जाने के बाद उसे चेक का भुगतान भी बैंक को चिट्ठी भेज कर रुकवाना पड़ा था।
श्री पाण्डेय आज भी उस प्रकरण की याद कर सिहर जाते हैं। वह कहते हैं कि, उन्हें याद है कि उनके लिये डा. जाकिर हुसैन ट्रस्ट के विरुद्ध स्टैंड लेना व उस पर टिके रहना कितना कठिन काम था, परंतु यदि वह भी उस समय दबाव में आ गये होते तो बाद में इसी प्रकार की किसी जांच में निबट गये होते।