होठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो….

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फर्रुखाबाद : जगजीत सिंह का जन्म- 8 फ़रवरी, 1941 गंगानगर, राजस्थान पर हुआ था इनकी मृत्यु- 10 अक्टूबर, 2011 मुम्बई, महाराष्ट्र में हुई। ग़ज़लों की दुनिया के बादशाह और अपनी सहराना आवाज़ से लाखों-करोड़ों सुनने वालों के दिलों पर राज करने वाले प्रसिद्ध ग़ज़ल गायक थे। खालिस उर्दू जानने वालों की मिल्कियत समझी जाने वाली.. नवाबों, रक्कासाओं की दुनिया में झनकती और शायरों की महफ़िलों में वाह-वाह की दाद पर इतराती ग़ज़लों को आम आदमी तक पहुंचाने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह जगजीत सिंह हैं। उनकी ग़ज़लों ने न सिर्फ़ उर्दू के कम जानकारों के बीच शेरो-शायरी की समझ में इज़ाफ़ा किया बल्कि ग़ालिब, मीर, मजाज़, जोश और फ़िराक़ जैसे शायरों से भी उनका परिचय कराया। हिंदी, उर्दू, पंजाबी, भोजपुरी सहित कई जबानों में गाने वाले जगजीत सिंह को साल 2003 में भारत सरकार के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक पद्मभूषण से नवाज़ा गया है।

जगजीत जी का जन्म 8 फ़रवरी, 1941 को राजस्थान के गंगानगर में हुआ था। पिता सरदार अमर सिंह धमानी भारत सरकार के कर्मचारी थे। जगजीत जी का परिवार मूलतः पंजाब के रोपड़ ज़िले के दल्ला गाँव का रहने वाला है। माँ बच्चन कौर पंजाब के ही समरल्ला के उट्टालन गाँव की रहने वाली थीं। जगजीत का बचपन का नाम जीत था। करोड़ों सुनने वालों के चलते सिंह साहब कुछ ही दशकों में जग को जीतने वाले जगजीत बन गए।

शुरुआती शिक्षा गंगानगर के खालसा स्कूल में हुई और बाद पढ़ने के लिए जालंधर आ गए। डीएवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली और इसके बाद कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय से इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन भी किया।

बचपन में अपने पिता से संगीत विरासत में मिला। गंगानगर मे ही पंड़ित छगन लाल शर्मा के सानिध्य में दो साल तक शास्त्रीय संगीत सीखने की शुरुआत की। आगे जाकर सैनिया घराने के उस्ताद जमाल ख़ान साहब से ख्याल, ठुमरी और ध्रुपद की बारीकियां सीखीं। पिता की ख़्वाहिश थी कि उनका बेटा भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में जाए लेकिन जगजीत पर गायक बनने की धुन सवार थी। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान संगीत मे उनकी दिलचस्पी देखकर कुलपति प्रोफ़ेसर सूरजभान ने जगजीत सिंह जी को काफ़ी उत्साहित किया। उनके ही कहने पर वे 1965 में मुंबई आ गए।

जगजीत सिंह पेइंग गेस्ट के तौर पर रहा करते थे और विज्ञापनों के लिए जिंगल्स गाकर या शादी-समारोह वगैरह में गाकर रोज़ी रोटी का जुगाड़ करते रहे। यहाँ से संघर्ष का दौर शुरू हुआ। इसके बाद फ़िल्मों में हिट संगीत देने के सारे प्रयास बुरी तरह नाकामयाब रहे। कुछ साल पहले डिंपल कापड़िया और विनोद खन्ना अभिनीत फ़िल्म ‘लीला’ का संगीत औसत दर्ज़े का रहा। 1994 में ख़ुदाई, 1989 में बिल्लू बादशाह, 1989 में क़ानून की आवाज़, 1987 में राही, 1986 में ज्वाला, 1986 में लौंग दा लश्कारा, 1984 में रावण और 1982 में सितम के न गीत चले और न ही फ़िल्में।

1967 में जगजीत जी की मुलाक़ात चित्रा जी से हुई। दो साल बाद दोनों 1969 में परिणय सूत्र में बंध गए।

फ़िल्मी जगत

जगजीत सिंह के जीवन के अहम पड़ाव

 वर्ष   विवरण
1961 मुंबई का रुख किया लेकिन कोई सफलता न मिलने पर वापस जालंधर की राह पकड़ी।
1965 फिर मायानगरी में किस्मत आजमाने पहुँचे तो एमएमवी ने दो गजलें रिकॉड कराई।
1967 विज्ञापन फ़िल्मों और वृत्त चित्रों के लिए रोकॉडिंग करने के दौरान चित्रा सेन से मिले।
1970 चित्रा से शादी रचाई, संगीत घराने से तालुक रहने वाली चित्रा का यह दूसरा विवाह था।
1975 एचएमवी ने जगजीत सिंह और चित्रा का पहला एलबम द अनफॉरगेटेबल्स निकाला।
1980 इस दशक में एलबम और कंसर्ट का आयोजन बढ़ा और फ़िल्मों में भी सफलता मिली।
1987 डिजिटल सीडी एलबम ‘बियोंड टाइम’ करने वाले पहले भारतीय संगीतकार बने।
1990 इकलौते बेटे विवेक (18 वर्ष) की सड़क हादसे में हुई मौत ने जीवन में दर्द भर दिया।
2009 चित्रा सिंह की पहली शादी से हुई बेटी मोनिका चौधरी (49 वर्ष) की आयु में आत्महत्या कर ली थी।

1981 में रमन कुमार निर्देशित ‘प्रेमगीत’ और 1982 में महेश भट्ट निर्देशित अर्थ को भला कौन भूल सकता है। अर्थ में जगजीत जी ने ही संगीत दिया था। फ़िल्म का हर गाना लोगों की ज़ुबान पर चढ़ गया था। ये सारी फ़िल्में उन दिनों औसत से कम दर्ज़े की फ़िल्में मानी गईं। ज़ाहिर है कि जगजीत सिंह ने बतौर कमज़ोर बहुत पापड़ बेले लेकिन वे अच्छे फ़िल्मी गाने रचने में असफल ही रहे। कुछ हिट फ़िल्मी गीत ये रहे-

  1. ‘प्रेमगीत’ का ‘होठों से छू लो तुम मेरा गीत अमर कर दो’
  2. ‘खलनायक’ का ‘ओ मां तुझे सलाम’
  3. ‘दुश्मन’ का ‘चिट्ठी ना कोई संदेश’
  4. ‘जॉगर्स पार्क’ का ‘बड़ी नाज़ुक है ये मंज़िल’
  5. ‘साथ-साथ’ का ‘ये तेरा घर, ये मेरा घर’ और ‘प्यार मुझसे जो किया तुमने’
  6. ‘सरफ़रोश’ का ‘होशवालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है’
  7. ट्रैफ़िक सिगनल का ‘हाथ छुटे भी तो रिश्ते नहीं छूटा करते’ (फ़िल्मी वर्ज़न)
  8. ‘तुम बिन’ का ‘कोई फ़रयाद तेरे दिल में दबी हो जैसे’
  9. ‘वीर ज़ारा’ का ‘तुम पास आ रहे हो’ (लता जी के साथ)
  10. ‘तरक़ीब’ का ‘मेरी आंखों ने चुना है तुझको दुनिया देखकर’ (अलका याज्ञनिक के साथ)