बोला सबसे बड़ा दलाल- मुझे छोड़कर सभी दलाल
मुंशी हर दिल अजीज आज बहुत प्रसन्न थे। ऐसा लग रहा था जैसे कोई बहुत बड़ा काम बिना किसी विघ्न बाधा के निबट गया हो। पेट में बातें थम नहीं रहीं थीं। नतीजतन बड़ी बेचैनी से चौक की पटिया पर बैठे पहलू बदल रहे थे। उचक उचक कर गर्दन घुमाकर किराना बाजार की ओर कभी मठिया देवी चेयरमैन लेन ( लोहाई रोड) की ओर देखते। परन्तु मियां झान झरोखे का दूर दूर तक कहीं अता पता नहीं दिख रहा था। उनकी प्रसन्नता और बेचैनी दोनो ही बढ़ती जा रही थीं। समझ में नहीं आ रहा था कि दिल की बात किससे कहें।
तभी ऊपर की जेब में रखे मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी। बिजली का करंट लगने की तर्ज पर जेब से मोबाइल निकाला। बटन दबाया और बिना देखे ही बोले। हां हलो मियां झान झरोखे कहां हो तुम। उधर से आवाज आई चुपकर मुंशी। मैं मियां झान झरोखे नहीं खबरीलाल बोल रहा हूं। अभी अभी लखनऊ दिल्ली की हवाई यात्रा में बहुत मजेदार खबर मिली है। रिपोर्ट बनाकर भेजने का टाइम नहीं है। लिहाजा तुझे टेलीफोन पर बता रहा हूं। झटपट नोट कर ले और जनता को बादाम के हलवे की तरह फर्रुखाबाद परिक्रमा में परोस दे।
मुंशी बोले एवे शरलाक होम्ज की औलाद! कभी दूसरों की भी सुनता है। या अपनी ही तानता रहता है। तू दिल्ली लखनऊ क्या गया। अपने आपको टाइम्स मैगजीन या वाशिंगटन पोस्ट का एडीटर समझता है। अरे आज मेरे पास जो खबर है। वह अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव के दो उम्मीदवारों की बहस से भी ज्यादा तेज रोमांचक और सन्नाटेदार है। मियां झान झरोखे दिख नहीं रहा है। अगर तुझे सुननी समझनी हो तो बता।
खबरीलाल ने जो कुछ कहा हो। मुंशी हर दिल अजीज बोले। खबरीलाल कमालगंज का नाम सुना है। यहां हर ओर हर रोज कमाल ही कमाल होता है। यहां आने वाले हर आउनएरिया कार्यालय से आगे बढ़ते ही जर्बदस्त नशा छा जाता है। थाना उत्साह, उमंग में डूबा रहता है। थाना चिल्ला चिल्ला कर कहता है। विभाग और ऊपर की बात छोड़ो। अब लो उन लोगों को भी समझना पड़ता है, जिनकी सात आठ महीने पहले यहां घुसने की हिम्मत ही नहीं पड़ती थी। एक थानेदार को जनता ने पहिले दौड़ाया पीटा और भगाया। जमकर गांव में पुलिस का तांडव हुआ। रातों रात थानेदार साहब का बिस्तर बंध गया। दूसरे थानेदार पधारे। नौजवान हैं। तेज तर्रार हैं। परन्तु जिलावदर अपराधी के रोजदार भाषण को विनम्र श्रोता की तरह सुनते रहे। न कुछ बोल सके। न कुछ कर सके। इसे कहते हैं कमालगंज का कमाल। सपा नेताओं ने गांव में पहुंचकर खूब मचाया धमाल।
मुंशी बोले चुपचाप सुन। बीच में पके आम की तरह टपक मत। ज्याउद्दीन हज करने अपनी पत्नी के साथ क्या गए। सभी ऐसे गैरे नत्थूखैरें कमालगंज आ धमके। कमाल की बातें करते हैं। ऐंठते हुए चले जाते हैं। तुम्हें जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव की याद तो होगी। इस चुनाव में जिले के राजनैतिक इतिहास की सबसे बड़ी दलाली कथित रूप से जिला मुख्यालय की प्रतिष्ठित आढ़त पर वसूली गयी थी। खरीदने और बिकने को तैयार बड़े बड़े सूरमा आढ़त के संचालक का तब भी पानी भरते थे, हुक्का भरते थे। अब भी भरते हैं, हुक्का भरते हैं। हज पर गए जियाउद्दीन की सदारत में तब एक हाई पावर कमेटी मामले की जांच के लिए बनी थी। इस जांच कमेटी ने अपनी सर्वसम्मत रिपोर्ट में सारे वाकये का खुलासा किया था। परन्तु हुआ कुछ नहीं। आढ़त के संचालन का प्रमोशन हो गया। यह अंधा कानून है की तर्ज पर हौसले बढ़े हुए हैं। बड़े मियां तो बड़े मियां छोटे मियां शुभान अल्लाह, मंदिर मार्ग, कायमगंज, नवभारत सभाभवन होती हुई छह माह की उपलब्धि यात्रा जब कमालंज पहुंची। तब गाना बज रहा था। कैद में है बुलबुल सैय्याद मुस्कराये। रहा भी न जाए कुछ कहा भी न जाए।
मुंशी के अंदाजे वयां से ऐसा लग रहा था कि खबरीलाल अपनी बात भूलकर मुंशी जी की कथा बड़ी तन्मयता से सुन रहे हैं। मुंशी बोले खबरीलाल कमालगंज तो कमालगंज है। यहां बाप, वोटों ने एक दूसरे को नापते तौलते हुए एक दूसरे पर जो तीर छोड़े। वह दशहरे और दीवाली की आतिशबाजी की याद दिलाते हैं। एक बोला लोग होश में रहें। अपनी औकात जान लें। उनके दबाव बनाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा। चाहें तो पार्टी छोड़कर जा सकते हैं। हैसियत राजबब्बर, बेनी प्रसाद, छोटे सिंह, दिगंवर सिंह, के सी यादव आदि की तर्ज पर पता लग जायेगी। यदुवंशियो का वोट मुलायम सिंह यादव के अलावा किसी की बपौती नहीं है। छोटे युवराज की बात सुनकर सब सन्नाटे में आ गए।
मुंशी बिना रुके बोले जा रहे थे। बड़े युवराज ने तो कमाल ही कर दिया। छह माह के शासन की उपलब्धियों की चर्चा कम हो रही थी। अग्निवाण अधिक चल रहे थे। बड़े युवराज बोले अच्छा यह बात है। लोग बहुत बढ़ चढ़कर बात कर रहे हैं। हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। हम अपनी मर्जी के राजा है। जो कहते हैं, वही करते हैं। अब प्रत्याशी चाहें अठारह हों या अस्सी। मैं आज ही हाई कमान को बोल दूंगा। आवेदन करने की तिथि बढ़ा दें। कुछ दाबेदार और आ जायेंगे। दावे जिला पंचायत में आम सिंह, अमरूद सिंह, संतरा सिंह, सायकिल सिंह, अनार सिंह ने भी किये थे। हम हाथी सिंह पर बैठ गये। नोटों के बोरे घर पर उतारे। हंसी खुशी अपने दूसरे तीसरे और चौथे घर होते हुए वहां पहुंच गए। जिस की हसरत लिए लोग जिन्दगी पर भर वफादारी और निष्ठा की कसमें खाते रहते हैं। जिन्दाबाद के नारे लगाते और लगवाते रहते हैं।
मुंशी बोले ड्रामा बहुत लंबा था। परन्तु टेलीफोन पर ज्यादा बात नहीं कर सकते। अब बारी बड़े मियां की थी। शोले की बसंती के अंदाज में बोले। अब हमारी ज्यादा बोलने की आदत नहीं है। हम तो जो करते हैं। सीना तान कर करते हैं। हम वफादारी के तराने नहीं गाते। हमारी भूमिका से बड़े बड़े चक्कर में पड़ जाते हैं।
हम कब निर्दलीय बनकर कब किसका कलमा पढ़ दें। हमारे अलावा कोई नहीं जानता। हम कब किसका हाथ थाम कर किसकी नैया डुबो दें और किसकी पार लगा दें। इसका हाल जानना हो तब फिर पितौरा के टीपू और फिर धीरपुर नरेश से पूंछ लो। हम कब हाथी सिंह हो जायें और कब सायकिल सिंह। हम अपने खुद के गांव में क्या करते हैं। क्या करवाते हैं। सब जानते हैं। लेकिन कोई हमारा न कुछ बिगाड़ सकता है। न उखाड़ सकता है। हम टकराते नहीं टक्कर मारते हैं। मखमली रूमाल में चांदी का भारी जूता जिसकी चांद पर पड़ता है। वह रुआंसी हंसी हंसकर अपना सर सहलाता है। चांदी का जूता चुपचाप जेब में रख लेता है। चाहो तो नाम बता देंगे। परन्तु सब जानते हैं। हमारी चाल वेढंगी जो पहले थी वह अब भी है। आगे भी यही रहेगी।
मुंशी बोले खबरीलाल अधीर मत हो। चुपचाप सुनो। होर्डिंगों बैनरों पर किसका नाम किसका फोटो है। इस पर झगड़ा मत करो। तेल देखो, तेल की धार देखो। सेना के सुप्रीम कमांडर का क्लाइमेक्स अभी शेष था। काफी रोना धोना हो चुका था। कोई अपनी संघर्ष कथा पढ़ रहा था। कोई लाठी डंडा खाने जेल जाने की दुहाई दे रहा था। सरकार होने पर भी काम न होने का रोना रो रहा था। जितने मुहं उतनी ही बातें। मुखिया की बहिन ने भी कई फिकरे कसे। परन्तु उनकी बात को अब कोई गंभीरता से नहीं लेता। वह सावन भादों चले जाने के बाद भी बिरादरी और पार्टी के झूले में झूल रही हैं। खुद भी सपने देख रही हैं और अपने नए पुराने चमचों को भी दिखा रहीं हैं। उनका जबर्दस्त आतंक है। पीछे तो कुत्ते भौंकते ही रहते हैं। सामने उनसे किसी की कुछ कहने की हिम्मत नहीं है। कला, संस्कृति, साहित्य और आत्मरक्षा हेतु दबंगई का अनोखा संगम है वहां। परन्तु क्या करें फिलहाल कोई कला काम नहीं कर रही है। नतीजन गुस्सा आना जायज है।
मुंशी बभक पड़े। चीखकर बोले खबरीलाल के बच्चे चुपचाप सुन नही तो यह मोबाइल तोड़कर तेरे मुहं में घुसेड़ दूंगा जिससे तेरी बक बक बंद हो।
मुंशी बोले दरबार में शहंशाह ने चारों ओर नजरें घुमाईं। जिससे भी नजरें मिलीं। उसने या तो नजरें घुमा लीं या जमकर तालियां बजाईं। बड़ी नजाकत से शहंशाहे तूलिया खड़े हुए। बुलंद आवाज में बोले। कौन है यहां जो हमारे मुकाबले में आए। अरे रोने धोने वालों। खुदी को कर बुलंद इतना खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है। हमारा शासन है। हमारी सरकार है। हम इसमें भी नंगा नाच नहीं करेंगे तब फिर कब करेंगे। अरे सरकार तो सरकार। हमने जिला पंचायत अध्यक्षी के चुनाव में तब नंगनाच किया। जब हमारी सरकार भी नहीं थी। हिम्मत होनी चाहिए हिम्मत। अपने मन की की है। कर रहे हैं और करेंगेे। अभी तक हम अकेले थे। हमें लोग बन वन मैन शो कहते थे। अब पूरे कुनबे के साथ मनमानी करेंगे। लोग हमें दलाल कहते हैं। सबसे बड़ा दलाल कहते हैं। अरे मूर्खों हम दलाल नहीं हैं। हम शहनशाह हैं। तुम्हें शकून मिलता हो तो हमें हमें दलालों का शहंशाह कह सकते हो। परन्तु इससे हमारा कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। हमारी हिम्मत और कुब्बत की चर्चा लखनऊ दिल्ली तक में होती है। बधाई और शुभकामना संदेश आते हैं। तुम रोते हो हमारे काम नहीं होते। हमारे पास आओ सब काम होंगे। हमारे इशारे पर काम होंगे। काम तुम्हारे इसलिए नहीं होते क्योंकि तुम हमारे पास नहीं आते। हमारे पास आये बिना तुम्हारे काम कैसे होंगे। हमसे लाइसेंस लो झूमकर काम करो। मौज करो। गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है- सबको छोड़कर मेरी शरण में आओ- शरण में आओगे माल मलीदा खाओगे दाम पैसा पाओगे। नहीं तो रो रो कर मर जाओगे, कुछ भी नहीं पाओगे। मर जाओगे कुछ भी नहीं पाओगे। तालियों और जिंदाबाद की तूफानी गड़गड़ाहट। इतना कहकर मुंशी ने खबरीलाल की प्रतिक्रिया जाने बिना अपनी तरफ से फोन काट दिया।
फर्रुखाबाद के सन्दर्भ में प्रदेश सरकार की छह माह की उपलब्धियां
मंत्री जी के विधानसभा क्षेत्र में राजेपुर थाना स्कूली और गैर आपराधिक इतिहास वाले छात्रों पर गैंगस्टर में कार्यवाही करने में स्वर्ण पदक विजेता। मंत्री जी द्वारा की गई पंचायत और न्यायालय के स्थगनादेश की अवज्ञा कर अवैध निर्माण कराने में थाना पुलिस की चारों ओर जय जय कार।
कंपिल की जन सभा में राज्य सभा सदस्य दर्शन सिंह यादव ने उपस्थित जनसमुदाय से पूछा पिछली सरकार की तरह थानों में लूट तो नहीं हो रही है। तब जनता ने एक स्वर से कहा कि लूट उससे ज्यादा हो रही है तथा यादव अधिक लूट रहे हैं।
विधायक ने डीएम के खिलाफ खोला मोर्चा- जिले के अधिकारियों की मनमानी और उनके द्वारा जनता के उत्पीड़न के लिए क्षेत्रीय विधायक अजीत कठेरिया ने जिलाधिकारी को दोषी बताया। उन्होंने कहा कि जिले में तैनात अधिकारी सरकार को बदनाम कर रहे हैं। यहां के डीएम समस्याओं पर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
कोतवाली थाने में जमकर हो रही है लूट- सजातीय थानेदारों को नेताओं का खुला संरक्षण।
जिलाधिकारी तीन सर्वाधिक बेईमान अधिकारियों के नाम बता पाने में जताई असमर्थता। चलिए कोई बात नहीं अपने तीन ईमानदार अधिकारियों के ही नाम बता दीजिए।
जिलाधिकारी का कहना है कि अगर नेता लोग उन्हें और उनके सहयोगियों को अनावश्यक टेलीफोन न करें। तब वह तीन माह में जिले की दशा सुधार सकते हैं।
सपा में कोई दलाल नहीं। सपाई जनसेवा के लिए राजनीति में।
और अंत में …………………..
दो अक्टूबर भजन संध्या गांधी जयंती। होर्डिंग पर गांधी जी सचित्र नहीं। पति पत्नी का फोटो प्रमुखता से। चिंता वोटों की है। पितौरा के टीपू को गांधी जी से क्या लेना देना। मुशायरा आल इंडिया- होर्डिंग पर विधायक जी का नाम। उपस्थित पूर्व चेयरमैन पत्नी विधायक विजय सिंह की श्रीमती दमयंती सिंह। चुनावी दस्तक धीरे धीरे तेज हो रही है। जनक्रांति पार्टी से डा0 जितेन्द्र यादव की विदाई लगभग तय। नहीं जायेंगे मुकेश राजपूत के साथ भाजपा में। कल्याण सिंह या राजवीर हो सकते हैं लोकसभा प्रत्याशी। क्या करंेगी मिथलेश, साक्षी और मुन्नूबाबू। संतोष को सपा या बसपा कहां से मिलेगी राहत। क्या फिर सपा में आयेंगे धीरपुर नरेश। क्या मुलायम सिंह यादव का कोई परिवारी बनेगा सपा प्रत्याशी। बसपा में चल रहा है खेल।
चलते चलते !
बड़का साहब को छुट्टी से लौटे एक सप्ताह हो गया। दोनो पक्षों को अपनी अपनी सीमायें मालूम हैं। सम्हल सम्हल कर कदम रख रहे हैं। कोई मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहता। रणनीति बदली है। लक्ष्य नहीं बदले हैं। देखते हैं आगे क्या होता है। आज बस इतना ही। जय हिन्द।
सतीश दीक्षित
एडवोकेट