आम आदमी तक शि‍क्षा व चिकित्सा सुविधायें पहुंचाने को भी अब सुप्रीम कोर्ट का आदेश

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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि छह महीने के भीतर देश के सभी स्कूलों में पेयजल और शौचालय समेत सभी बुनियादी सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार राष्ट्रीय अनिवार्य औषधि सूची (एनएलईडी) में आवश्यक दवाओं की संख्या बढ़ाने के दौरान मूल्य नियंत्रण व्यवस्था के तहत अनिवार्य दवाओं के खुदरा मूल्य तंत्र से छेड़छाड़ नहीं करेगी।

न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली पीठ ने समयसीमा तय करते हुए सरकारों से कहा कि देशभर के स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने के लिए कदम उठाये जाएं। पीठ ने कहा कि बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने से जुड़े उसके सभी पूर्ववर्ती निर्देशों को उसके द्वारा तय समयसीमा के भीतर लागू किया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने पिछले साल 18 अक्तूबर को सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को सभी सरकारी स्कूलों में खासकर लड़कियों के लिए शौचालय बनाने का निर्देश दिया था। देश की सर्वोच्च अदालत ने स्कूलों में पेयजल और शौचालय की बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश देने की मांग वाली जनहित याचिका पर आदेश जारी किया। शीर्ष अदालत ने पहले कहा था कि सभी स्कूलों में शौचालय की सुविधा होनी चाहिए क्योंकि शोधों से पता चला है कि जिन स्कूलों में शौचालयों की सुविधा नहीं होती वहां माता-पिता अपने बच्चों को और खासतौर पर बच्चियों को पढ़ने के लिए नहीं भेजते। अदालत ने यह भी कहा था कि बुनियादी सुविधाएं प्रदान नहीं करना संविधान के अनुच्छेद 21-ए के तहत बच्चों को प्रदत्त निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन है।

न्यायमूर्ति जी.एस. सिंघवी और न्यायमूर्ति एस.जे. मुखोपाध्याय की पीठ ने यह बात एनएलईडी के तहत अनिवार्य औषधि सूची को अंतिम रूप देने में देरी के लिए सरकार को फटकार लगाते हुए कही। न्यायालय ने कहा कि सरकार चलाना उसका काम नहीं है, लेकिन उसने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि इसमें नौ वर्षो तक कोई प्रगति क्यों नहीं हुई। अतिरिक्त महाधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा के अनुरोध को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने नई मूल्य नियंत्रण व्यवस्था के तहत एनएलईडी को अधिसूचित करने के लिए सरकार को सात दिनों की मोहलत दी। न्यायालय ने कहा कि यदि एनएनईडी को जारी करने में और देरी हुई तो न्यायालय को उसके अनुसार आदेश पारित करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा। न्यायालय ने सरकार से आग्रह किया कि वह और भी अनिवार्य दवाओं को आम आदमी की पहुंच में लाए। न्यायालय ने यह भी कहा कि दवा की कीमतें इतनी अधिक हैं कि मरीज के सामने दो विकल्प रह जाते हैं- या तो वह मर जाए या फिर जमीन या जेवरात बेचकर दवा खरीदे।