फर्रुखाबाद: कपड़ों पर छपाई एवं रंगाई का कारोबार फर्रुखाबाद के लिए मुख्य उ़द्योग धन्धा कई वर्षों से बना हुआ है। लेकिन अब महंगाई की मार व आधुनिक प्रतियोगिता की दौड़ में छपाई कारोबार से जुड़े साध समुदाय के लोग धंधा छोड़ने को मजबूर दिखायी दे रहे हैं। कई साध लोगों ने बचत न होने से छपाई व रंगाई का काम छोड़कर फर्रुखाबाद शहर छोड़कर दिल्ली मुम्बई के लिए चले गये। साध लोगों की करोड़ों की कीमती गोदामों व मकानों में ताले पड़े हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार यह लोग अधिक लोन हो जाने की बजह से कारोबार छोड़कर पलायन कर गये।
जनपद के हजारों लोगों की रोजी रोटी देने वाले छपाई उद्योग रुपया कमाने का जरिया ही नहीं वल्कि देश व विदेशों में फर्रुखाबाद को पहचान दिलाने वाला कारोबार महंगाई की चपेट में अब घसिटता नजर आ रहा है। छपाई कारखाने से जुड़े अंगूरीबाग निवासी ए के पाण्डेय का कहना है कि छपाई कारोबार पर लम्बे समय से साध लोगों का कब्जा था। जिसमें वह लोग अच्छी कमाई भी कर लेते थे। 10 साल पहले छपाई कारोबार में गंगा पार के सस्ते मजदूर मिल जाते थे। जिससे कम दामों में अच्छी रंगाई हो जाती थी। वहीं उस समय रंग की कीमतें भी कम थीं। लेकिन समय के साथ-साथ प्रतियोगिता बढ़ती चली गयी। साध लोगों के एकाधिकार वाले कारोबार पर अन्य व्यापारियों व कारोबारियों की नजर गयी तो लोगों ने भारी मात्रा में रंगाई व छपाई का काम करवाना शुरू कर दिया। लेकिन महंगाई दिन पर दिन इतनी बढ़ती गयी कि करोड़ों का कारोबार करने वाले व्यापारी सिमटते चले गये।
पुराने समय में प्रति मजदूर 70 से 80 रुपये में मिल जाता था, जो पूरे दिन काम करता था लेकिन इस समय 250 रुपये से 300 रुपये में कुशल मजदूर मिल रहे हैं। जिससे छपाई कारखानों में सन्नाटा सा नजर आता है।
छपाई कारोबारियों का कहना है कि फर्रुखाबाद में बिजली की किल्लत हमेशा से ही चली आ रही है। लेकिन बीते कुछ वर्षों से इतनी ज्यादा बिजली की किल्लत हो गयी है कि अब उन लोगों को अधिक समय तक जनरेटर को चलाना पड़ता है। जिससे छपाई व रंगाई में कीमतें बढ़ जातीं हैं और उनको होने वाली बचत की मात्रा कम हो जाती है। जिससे उनके कारोबार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता चला जा रहा है।
वहीं कच्चा माल यानी रंगाई के लिए लाये जाने वाले सादा कपड़े की भी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कीमतें लगातार बढ़ती ही चली जा रहीं हैं। जिससे कच्चे माल को लाने में अधिक कीमतें चुकाकर लेकर भी आते हैं तो फर्रुखाबाद के लिए अच्छी यातायात व्यवस्थायें न होने से अधिक भाड़ा हो जाता है। जिससे भी बचत कम हो रही है। जनपद के निवासी केन्द्रीय कानून मंत्री होने के बावजूद जिले के लिए कोई भी यातायात सुविधायें इम्प्रूव नहीं हुईं। जिससे लगातार माल लाने व ले जाने के लिए समस्यायें बनीं हुईं हैं।
छापा कारोबारियों का यह भी रोना रहा कि जनपद प्रशासन की तरफ से उन्हें आज तक सुविधायें उचित रूप से उपलब्ध नहीं करायीं गयीं। जिन साध समुदाय के लोगों ने लोन इत्यादि लेकर छपाई कारखाने लगाये थे। कम्पटीशन के चलते उनके कारखाने कम बचत होने से धरासाही हो गये और उन्हें कर्ज में डूबे होने की बजह से फर्रुखाबाद शहर ही छोड़कर बाहर जाना पड़ा।
छपाई कारोबारी महेश यादव का कहना है कि वह अच्छा खासा ट्रांसपोर्ट का धंधा कर रहे थे लेकिन कपड़ों की छपाई व रंगाई के काम में पड़ने से उनकी 15 बसें बिक चुकीं हैं। मात्र दो बसें ही उनके पास शेष रह गयीं हैं। जबसे छपाई का धंधा उन्होंने किया तब से भारी संकट रहा। जिसका मुख्य कारण रहा कि फर्रुखाबाद में बिजली का न होना, छपाई के लिए रंगों का महंगा होना, कच्चे माल को लाने व छपे हुए माल की सप्लाई करने में अधिक भाड़े का आना रहा है। जोकि फर्रुखाबाद के जनप्रतिनिधियों की अनदेखी का ही नतीजा रहा है। यदि फर्रुखाबाद के जनप्रतिनिधि चाहते तो जिले में राज्य व केन्द्र से दो दो मंत्री होने के बावजूद बिजली को तो सुचारू रूप से दिलवा ही सकते थे। लेकिन अब उन्हें भी इस धंधे से हाथ खींचने पड़ेंगे।
सधवाड़ा मोहल्ले में मुख्य कारोबारी एच एस सन्स के मालिक भूरा साध के पुत्रों ने कारोबार से तौबा कर अपने मकान व कारखाने को छोड़कर दिल्ली बम्बई चले गये। वहीं एस एस सन्स जोकि फर्रुखाबाद में जानी मानी बड़ी फर्म मानी जाती थी लेकिन उसमें भी आज की तारीख में ताले पड़े हुए हैं। जिससे हजारों मजदूरों की रोजी रोटी छिन चुकी है।
छपाई कारोबारियों से जेएनआई द्वारा की गयी बातों से तो यही लगता है कि जनपद का मुख्य कारोबार अब अपनी अंतिम सांसे ले रहा है। वहीं जनप्रतिनिधि उसे आक्सीजन देने की बजाय उसके सीने पर लातें रखते हुए कुचलते चले जा रहे हैं। यदि जनप्रतिनिधियों की इतनी ही अनदेखी रही तो जिले में हजारों लोगों को रोजगार देने वाला कारोबार ठप हो जायेगा जिससे महंगाई के दौर में गरीबों को शहर में दो वक्त की रोटी जुटाने के भी लाले पड़ने की नौबत आ सकती है।