व्यक्ति पुण्य करना नहीं पुण्य भोगना चाहता

FARRUKHABAD NEWS धार्मिक सामाजिक

फर्रुखाबाद: 29 वें मानस सम्मेलन के तीसरे दिन मानस विद्वानों ने कहा कि चींटी से लेकर हाथी तक में परमात्मा का अंश है अतः इस शरीर को हमें परमात्मा के चरणों में लगाना चाहिए। रामकथा के मुख्य अतिथि डाॅ0 अनुपम दुबे एडवोकेट ने सभी मंचासीन मानस विद्वानों को माल्र्यापण कर रामनामी दुपट्टा ओढ़ाकर सम्मानित किया।
मोहल्ला अढ़तियान स्थित मिर्चीलाल के फाटक में मानस के संयोजक डाॅ0 रामबाबू पाठक के सानिध्य में चल रहे मानस सम्मेलन में औरैया से पधारे मानस मर्मज्ञ स्वामी प्रेमदास ने कहा ‘‘ईश्वर अंश जीव अविनाशी, चेतन अमन सहज अविनाशी‘‘ अर्थात् हम सभी ईश्वर के अंश हैं। चींटी से लेकर हाथी तक में परमात्मा का अंश है। 84 लाख योनियों में भ्रमण करने के बाद बहुत ही भाग्य से यह शरीर मिला है। इस शरीर को हमें परमात्मा के चरणों में लगाना चाहिए। जबकि मानव इस शरीर को वासना में और भौतिकवादी आडम्बर में लगा देता है। ऐसे मानव जीवन को धिक्कार है। झांसी से पधारे मानस विद्वार अरूण गोस्वामी ने कहा कि व्यक्ति पुण्य करना नहीं चाहता बल्कि पुण्य भोगना चाहता है। व्यक्ति पाप छोड़ना नहीं चाहता पर पुण्य में भागीदारी चाहता है। उन्होने भजन प्रस्तुत किया ‘‘तुमने आंगन नहीं बुहारा, अपने मन को नहीं सुधारा, कैसे आएंगे भगबान, कैसे आएंगे भगबान‘‘।
कानपुर से आये मानस मनोहर आलोक मिश्रा ने ‘‘माण्डवी श्रुतिकीरति उर्मिला कुंअरि लईहकारि‘‘ के प्रसंग की दूसरे दिन व्याख्या करते हुए कहा कि भगवती सीता ने परशुराम के धनुष को महल में सफाई के दौरान एक हाथ से उठाकर दूसरी तरफ रख दिया। इस पर राजा जनक ने प्रण किया जो परशुराम के धनुष को उठा लेगा वही मेरी पुत्री सीता का योग्य बर होगा। सभी देश के राजाओं, राजकुमारों को निमन्त्रण भेजा गया। गुरू विश्वामित्र के साथ श्रीराम लक्ष्मण भी स्वयंवर में शामिल होने पहंचे। सभी देश देशों के राजा परशुराम का धनुष उठाने मंे हार गये तो अन्त में गुरू विश्वामित्र की आज्ञा से श्रीराम ने धनुष पर प्रत्यंजा चढ़ाई, प्रत्यंजा चढ़ाते ही धनुष टूट गया। उन्होने कहा कि श्रीरामजी 15 वर्ष के और सीता जी 6 वर्ष की थीं। छोटे कद की सीता जब लम्बे कद के श्रीराम के गले में जयमाल डालने गयीं तो असहज हो गयीं। इस पर माता सुनयना ने श्रीराम से कहा कि ‘‘झुक जाओ श्री रघुवीर, लली मेरी छोटी सी‘‘। श्रीराम झुके और सीता ने उन्हें जयमाल डालकर अपना जीवनसाथी चुना।
संचालन पं0 रामेन्द्रनाथ मिश्र व बी0के0 सिंह तथा तबले पर संगत नन्दकिशोर पाठक ने दी। मानस पे्रमियों में धु्रवनरायण पाण्डेय, रामनरायण दीक्षित, अंजुम दुबे, ईश्वरी पाठक, भारत सिंह, अशोक रस्तोगी, ज्योतीस्वरुप अग्निहोत्री, अजय कृष्ण गुप्त, दिवाकर लाल अग्निहोत्री, राधेश्याम गर्ग, सुजीत पाठक बंटू, अपूर्व पाठक, रजनी लौंगानी, आलोक गौड़, शशि रस्तोगी, विजय लक्ष्मी पाठक, माण्डवी पाठक, सुषमा दीक्षित, सहित सैकड़ों लोग मौजूद रहे।