सदकाए फित्र न देने वाले का रोजा कबूल नहीं होता है। माह रमजान में रोजा, नमाज आदि के साथ सदकाए फित्र व जकात देना जरूरी है। प्रत्येक मालिके निसाब(मालदार) पर सदकाए फित्र व जकात देना वाजिब है।
सदकाए फित्र
सदकाए फित्र प्रत्येक मालिके निसाब पर वाजिब है। अपने व छोटे बच्चे की तरफ से सदकाए फित्र देने का हुक्म है, जबकि बच्चा मालिके निसाब न हो। अगर बच्चा मालिके निसाब हो तो उसी के माल से सदकाए फित्र अदा किया जाये(बहारे शरियत)। सदकाए फित्र हर साहिबे निसाब के लिए वाजिब है, वह रोजा रहे या न रहे। इसके लिए बहारे शरियत में है कि सदकाए फित्र वाजिब होने के लिए रोजा रखना शर्त नहीं है। अगर किसी मजबूरी मसलन सफर की वजह, मर्ज बढ़ जाने की वजह से या बुढ़ापे की वजह से रोजा न रखा, फिर भी उस शख्स के लिए सदकाए फित्र वाजिब है।
साहिबे निसाब कौन
सदकाए फित्र के मामले में मालिके निसाब वह शख्स है, जो साढ़े बावन तोला चांदी, साढ़े सात तोला सोना का मालिक हो, या इतनी कीमत (इसकी कीमत मौजूदा समय में लगभग ढाई लाख रुपये बनती है) का माल उसके पास एक साल तक से हो।
सदकाए फित्र कितना दें
ओलमाए कराम का फैसला है कि इस साल सदकाए फित्र प्रति व्यक्ति लगभग 24 रुपये है। इस राशि का निर्धारण बाजार में मौजूदा गेहूं के (1 सेर 13 छटांक) 1 किलो 70 ग्राम की 14 रुपये प्रति किलो की कीमत के हिसाब से है।
जकात
सदकाए फित्र की तरह जकात उस शख्स पर वाजिब है, जो मालिके निसाब हो।
कितना दें जकात
प्रत्येक साहिबे निसाब को एक सौ रुपये में ढाई रुपये निकालने का हुक्म है। इसी हिसाब से जितना माल हो उतना जकात निकालना होगा। हदीस तिरमिजी में है कि हजरत इब्ने उमर रजि अल्लाहो अन्हो ने कहा है कि रसूल सल्लाहो अलैहे वस्सलम ने फरमाया कि जो शख्स माल हासिल करे, उस पर उस वक्त तक जकात नहीं, जब तक एक साल न गुजर जाये। मतलब ये कि अगर कोई शख्स कुछ दिनों से मालदार हो गया तो उस शख्स पर उस वक्त वाजिब नहीं होगा, जब एक साल न गुजर जाये।
सदकाए फित्र व जकात किसको दें
सदकाए फित्र गरीब, यतीम, मिस्कीन, लाचार, मजबूर आदि को देने का हुक्म है। ऐसे मदरसों जहां पर बच्चे दूर-दराज से इल्म सीखने के लिए आते हैं, उनको भी देना जायज है।
सदकाए फित्र निकालने का बेहतर वक्त
सदकाए फित्र निकालने का बेहतर वक्त ईद की नमाज के पहले है। बुखारी शरीफ में है कि जब तक बंदा सदकाए फित्र नहीं निकालेगा, उसका रोजा जमीन व आसमान के बीच अटका रहेगा। यानी उसका रोजा कबूल नहीं होगा।
जो लोग जकात नहीं देंगे, मरने के बाद कब्र में उनके दोनों जबड़ों को गंजा सांप खीचेंगा और कहेगा कि मैं तुम्हारा माल हूं, जिसका तुमने जकात नहीं निकाला। यह सांप इतना जहरीला होगा कि जिस हरी घास पर वह चल देगा उस जमीन पर हरी घास कयामत तक नहीं उगेगी। उन्होंने फितरा के बारे में कहा कि ईद की नमाज के पहले फितरा अदा कर देना चाहिए।
मुस्लिम शरीफ में है कि हजरत अबु हुरैरह रजि अल्लाहो अनहो ने कहा कि नबी सल्लाहो अलैहे ने फरमाया है कि जो शख्स मालिके निसाब हो और वह जकात अदा नहीं किया तो क्यामत के दिन इसके लिए इस सोने या चांदी की सीले बनाई जायेंगी और उन्हें आग में तपाया जायेगा। फिर उन सीलों से उसके पहलु, पेशानी व पीठ को दागा जायेगा। यह जब ठंढी हो जायेंगी तो फिर तपाकर इसे दागा जायेगा। इस तरह बार-बार होता रहेगा।