मुलायम कर रहे हैं एक और पारिवारिक छत्रप को राजनीति में उतारने की तैयारी..

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लखनऊ – मुलायम सिंह यादव के समाजवाद की बानगी एक बार फिर आने वाले आम चुनावों में देखने को मिलेगी कि, किस तरह मुलायम सिंह यादव ने समाजवाद की बैसाखी को सहारा बनाकर कैसे परिवारवाद को बढ़ावा दे रहे हैं | आज मुलायम सिंह यादव प्रदेश के ही नही बल्कि देश के सबसे समृद्ध राजनीतिक परिवार का नेतृत्व करते है | अगर पूरे भारत के राजनीतिक परिवारों पर एक नज़र डाली जाए तो, देश का कोई कोना नही है जहा पर पारिवारिक राजनीतिक को विरासत के तौर पर एक पीढ़ी से अगली पीढ़ी को हस्तांतरित किया जा रहा है| नेहरू के समय शुरू हुआ ये रोग आज पारिवारिक व्यवसाय की तरह पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित हो रहा है | प्रदेश की सत्ता पर काबिज समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने अपनी विरासत अपने बेटे अखिलेश यादव को सौंप दी, हाल में हुए विधानसभा चुनावों से पहले जनता को क्या मुलायम सिंह यादव के संघर्ष के दिनों के साथी रहे पुराने समाजवादियो को भी इसकी भनक नही थी, कि मुलायम अपनी विरासत किसी समाजवादी को नहीं वरन अपने बेटे को देने जा रहे है |

भारत में तमाम राजनीतिक पार्टियों के मुखिया अपनी पार्टी की कमान अपने ही खून को सौंपने में ज्यादा विश्वसत दिखाई दे रहे है , राजनीति और सत्ता की पीढ़ी दर पीढ़ी विरासत सौंपने की बानगी उन्ही परिवारों में दिखाई दे रही है जिनका पेशा ही राजनीति है , दक्षिण हो या उत्तर , पूर्व हो या पश्चिम सभी राज्यों में कोई ना कोई राजनीतिक दल एक ही राजनेता या उसके परिवार के इर्द गिर्द घुमता नज़र आता है | साथ ही क्षेत्रीय पार्टियों का भी वर्चस्व भी उन राज्यों और वहा की जनता पर साफ़ दिखाई देता है, इसी बात का फ़ायदा उठाकर और जातिवाद को देखते हुए ये राजनेता अपने परिवार के सदस्यों को चुनाव लड़ाकर विधानसभा या संसद भेजने की तैयारी कर देते है या फिर सत्ता में आने के बाद उन्हें संगठन में ही ऐसे पद पर बैठा देते है जहा से वो सत्ता में रहने के दौरान अपना नियंत्रण बनाये रखे | आज देश और कई प्रदेशो के हालात ऐसे है कि पिता के राजनीति में किये गए कामो का फायदा उनके वो बच्चे उठा रहे है, जिनकी काबिलियत ही यही है कि, उन्होंने सिर्फ उस राजनीतिक परिवार में जन्म लिया है |

हम बात कर रहे थे, मुलायम परिवार के नए क्षत्रप के राजनीति में आने की, मुलायम सिंह यादव के भाई और नए समाजवादी चिन्तक कहे जाने वाले प्रो. रामगोपाल यादव के पुत्र अक्षय यादव का राजनीति में पदार्पण होने जा रहा है| अक्षय यादव मुलायम परिवार के सातंवा सदस्य होंगे जो अपना राजनैतिक करियर शुरू करने जा रहे है और अपना पहला चुनाव 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश की फिरोजाबाद सीट से लड़कर करेंगे | कहा जा सकता है कि , उसके ताऊ मुलायम सिंह यादव उसके राजनीति में प्रवेश का रास्ता बनाने जा रहे है | प्रदेश कि सत्ता पर काबिज समाजवादी परिवार के सात सदस्य इस समय विधानपरिषद , विधानसभा , राज्यसभा , लोकसभा के सदस्य है , वही अखिलेश यादव और उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव के हाथो में प्रदेश सरकार की बागडोर है | अगर हम दिवंगत सुपरस्टार राजेश खन्ना कि प्रसिद्ध फिल्म ” आनंद ” के उस डायलाग को याद करे जो खुद फिल्म में राजेश खन्ना ने अमिताब बच्चन को लेकर बोला था कि, “बाबू मोशाय हम सब तो रंगमंच कि कठपुतलिया है , हमारी डोर तो ऊपर वाले के हाथ में है , वो जैसे चलाता है हम चलते है ” ये डायलाग आजकल मुलायम परिवार पर सटीक बैठता है , मुलायम सिंह यादव के पारिवारिक सदस्यों की डोर खुद मुलायम सिंह यादव के हाथ में है , वो जिस डोर को खीचते है , वो सत्ता का संचालन करने लगता है और जिसे ढील देते है | वो प्रदेश या देश की राजनीति में हासिये पर चला जाता है | यही हाल आजकल मुलायम के परिवार का है , मुलायम सिंह यादव इस समय वो पारस पत्थर है जिसे छू ले वो सोना बन जाता है, ये बात इस समय मुलायम परिवार के सभी सदस्य बखूबी जानते है, ” गंगा बह रही है “, उसमे सभी हाथ धोने के लिए बेताब है तो रामगोपाल यादव क्यों पीछे रहे, उन्हें भी अपने पुत्र का भविष्य सुरक्षित करने का इससे बढ़िया समय और मौका हाथ नही आने वाला |

मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक कुनबे के सबसे छोटे सदस्य अक्षय की ताजपोशी की तैयारी उसी फिरोजाबाद सीट से कराने की बात चल रही है, जहाँ मुलायम के पुराने साथी रहे प्रसिद्द फिल्म अभिनेता व कांग्रेस सांसद राज बब्बर का कब्ज़ा है| सपा सुप्रीमो अक्षय को उन्ही के खिलाफ चुनाव लड़ाने पर विचार कर रहे है | इस सीट और समाजवादी पार्टी के चुनावी इतिहास की दिलचस्प बात भी जुडी हुई है | बीते लोकसभा चुनाव में रिकार्ड मतों से जीतकर अखिलेश यादव ने दो जगहों से चुनाव जीता था, अखिलेश यादव ने अपनी पारम्परिक सीट कन्नौज को अपने पास रख इस सीट से इस्तीफा दे दिया था| अखिलेश के इस्तीफे के बाद फिरोजाबाद में हुआ उपचुनाव मुलायम सिंह यादव के लिए सबसे बड़ी राजनीतिक भूल साबित हुई थी क्योंकि इस उपचुनाव में उनकी पुत्र वधू डिम्पल यादव को कांग्रेस प्रत्याशी राजबब्बर ने हरा दिया था| अब एक बार अपने प्रभाव वाली इस सीट को वापस पाने को तैयार मुलायम एक बार फिर अपने पारिवारिक सदस्य को दाँव पर लगाने की तैयारी में है | अब देखना है कि प्रदेश की सत्ता पर काबिज और कांग्रेस के संकटमोचक मुलायम इस सीट को वापस जीत पाते हैं कि नही या फिर अक्षय यादव को भी अपनी भाभी डिम्पल कि तरह हार से ,राजनीति की शुरुवात करनी पड़ेगी..?