मुंशी हरदिल अजीज चौक की पटिया पर बैठे कभी हाथ में लिया अखबार पढ़ने लगते, कभी अखबार को पंखा बनाकर उसे डुलाने लगते। बार-बार एक ही खबर को पढ़ते देख मियां झानझरोखे से नहीं रहा गया। मियां बोले क्या बात है मुंशी। सठिया गए हो या गर्मी सवार हो गयी है। बार-बार अखबार के एक ही पेज पर क्या ताक झांक कर रहे हो।
माननीयों कब सीखोगे सच बोलना!
मुंशी हरदिल अजीज मियां झान झरोखे की तरफ देखकर बोले बड़ी अच्छी खबर है। अब करोड़ों रुपयों से लड़े जाने वाले चुनावों के दिन गए। अब तो भले और अच्छे योग्य आदमी भी थोड़े से पैसे खर्च करके चुनाव लड़ सकेंगे। मियां से नहीं रहा गया। मुंशी के हाथ से अबखबार लेकर कानपुर से प्रकाशित होने वाले एक समाचार पत्र के पेज संख्या 6 पर छपी खबर पढ़ने लगे। परन्तु यह क्या मियां जैसे जैसे खबर पढ़ते गुस्से से उनकी भाव मुद्रा बदलती जाती। नथुने फूलने लगे और आंखें लाल होने लगीं। खबर के अंत तक पहुंचते ही उन्होंने अखबार मुंशी की ओर हिकारत से फेंक दिया। बोले यह खबर है मुंशी यह झूठ मक्कारी, धोखाधड़ी और पाखंड का नायाब नमूना है। इस खबर में विधानसभा चुनाव लड़ने वालों ने जो अपना कुल खर्चा दिखाया है उससे कई गुना रुपयों की विधानसभा चुनाव में इन महारथियों ने केवल दारू अपने अपने क्षेत्र में बंटवाई है। मुंशी समझ में नहीं आता संविधान की शपथ लेने वाले हारने जीतने वाले हमारे यह महारथी इतनी बेशर्मी से इतना बड़ा झूठ कैसे बोल लेते हैं।
मुंशी हर दिल अजीज मियां झान झरोखे को समझाने के अंदाज में बोले मियां काहे परेशान हैरान होते हैं। यह जो हमारे माननीय लोग हैं यह सच बोलने से डरते हैं। इनका सारा व्यापार ही झूठ पर निर्भर करता है। इन माननीयों के ऊपर जो माननीय हैं। वह झूठ बोलने में इन माननीयों के भी बाप हैं। चुनाव के दौरान जो लोग दल बदल करके टिकट पा जाते हैं। उनमें से शायद ही कोई मुद्रा के आदान प्रदान के बिना प्रत्याशी बन पाता हो। ऊपर और नीचे वाले दोनो माननीय और उनके खास चमचे अच्छी तरह जानते हैं, कितने पेटी और खोखों में सौदा हुआ है। अधिकांश माल सर्वोच्च माननीयों या उनके अधिकृत प्रतिनिधियों के पास जाता है। चूर चार सेटिंग कराने और करने वालों को मिल जाती है। अब आप कुछ कहोगे तब फौरन बाल बच्चों गाय और अपने आराध्य देवों की कसम खाकर पैसे के किसी प्रकार के लेनदेन से मना करेंगे। क्योंकि यह संविधान की शपथ केवल और केवल झूठ बोलने के लिए लेते हैं। कुछ तो इस मसले पर बेशर्मी से यह कहने तक से नहीं चूकते कि घोषणायें अमल के लिए नहीं होतीं।
मियां झान झरोखे बोले मुंशी इतना बड़ा झूठ बोलने वालों से आप सच्चाई की ईमानदारी सादगी की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। इस चुनाव में निर्वाचन आयोग ने खूब नाम कमाया। जमकर रिकार्ड मतदान हुआ। बहुत से दलबदलुओं का विस्तर भी बंध गया। परन्तु हारे जीते इन माननीयों ने चुनाव में अपना जो खर्चा दिखाया है यदि निर्वाचन आयोग ने बिना जांच पड़ताल के उसे यथावत स्वीकार कर लिया तब तो हमारे लोकतंत्र को झूठतंत्र का नाम देना ही ठीक होगा।
मियां बोले मुंशी जो खबरें काना फूसियां आरोप प्रत्यारोप में यह माननीय एक दूसरे पर लगा रहे हैं। उसके मोटा मोटा मोटी अंदाज से चारो विधानसभाओं में हारे जीते माननीयों ने एक अरब (सौ करोड़) के आस पास खर्चा किया है। मुंशी बीच में ही बोल पड़े यह खर्चा तो नामांकन के बाद और मतदान के दिन तक का है। जिले भर में साल भर पहले से चले भ्रमण, होर्डिंग, बाल पेंटिंग, शादी विवाह में सहयोग, सहायता आदि भी जोड़ लोग तब तो आंकड़ा और ऊपर चला जाएगा।
मुंशी हरदिल अजीज मियां से कानाफूसी के अंदाज में बोले जमानत जप्त करा चुके एक दलबदलू माननीय ने स्वयं मेरे से कहा पूरे पौने चार करोड़ रुपये खर्चा हुए मुंशी जी। एक साहब चुनाव के बाद बचा पैसा बैंक खाते में जमा कराने पहुंचे। लोगों की आंखें फटी की फटी रह गयीं। नोटों की बोरी बैंक में छोड़ दी। जल्दी-जल्दी यह कहते हुए निकल लिए। गिन लेना काउंटर फाइल मंगवा लेंगे। बैंक से बाहर निकलते ही एक और जमानत जप्त माननीय मिल गए। पूछा कहो कैसी रही। बेशर्मी से बोले नेता बेईमान बने रहें, ठेके मिलते रहें। हर साल ऐसा ही एक चुनाव लड़ सकते हैं।
खबरीलाल बहुत देर से चुपचाप खड़े खड़े मुंशी हरदिल अजीज और मियां झानझरोखे की बातें सुन रहे थे। नहीं रहा गया बातचीत के बीच में कूद पड़े। बोले आप दोनो लोग बड़े भोले हो। यह चुनाव नहीं है। घोड़ों की रेस है रेस। इसमें इतने अजब गजब खेल हैं कि देखोगे चक्कर खा जाओगे। इस मैदान में जनता की सेवा के लिए इतने माननीय सजधज कर आ जाते हैं कि मतदाता कुछ समझ ही नहीं पाता। बातें चाहें जितनी अच्छी-अच्छीं, मीठी-मीठी हों लेकिन सबके बीच में है केवल रुपया। खबरीलाल बोले हारे जीते माननीयों के कुल चुनाव खर्चे की जो खबर छपी है। वह तो वयाने के बराबर भी नहीं है। एक माननीय ने अपनी पार्टी से गद्दारी करने के लिए बीस लाख रुपये एक माननीय से मांगे। देने वाले माननीय घाटघाट का पानी पिए हुए थे। बोले नकद चालिस लाख देंगे गद्दारी बंद नहीं खुली चाहिए। हमारी प्रचार गाड़ी में बैठो चालिस लाख गिनो। कई माननीयों ने कई का वयाना थामा और शान्ती से बैठ गए बोल दिया घबड़ाइए नहीं नतीजे आयें तब देखना। काम तजी से हो रहा है।
मुंशी और मियां बोले खबरीलाल यह क्या लंतरानियां हांक रहे हो। खबरीलाल बोले हमारा नाम खबरीलाल कोई ऐसे वैसे नहीं हैं। खोद के लाते हैं खबर है। खबर है पक्की और सच्ची खबर। खर्चों की बात चली तब फिर डील और पेड न्यूज का भी खर्चा भी लगे हाथों बता दीजिए। हारे जीते माननीयों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और चौथे खंभे के सेनापतियों। हम जानते हैं आपकी बोलती बंद हो जाएगी। पेड न्यूज और डील का व्यापार बिलकुल हवाला व्यापार की तरह है। बिल बाउचर से लेकर सब फर्जी ही फर्जी। हाथ का बिल, नकद दाम, जनसम्पर्क की खबर फोटू सहित। अगर आपके पास चांदी का जूता है। तब फिर चौथे खंभे का सर तैयार है। चांदी का जूता खाकर ब्रहन्नलाओं की तरह आपकी गायेंगे ही। चांदी का जूता और भारी कर दोगे तो आपके विरोधी की भी ऐसी तैसी कर देंगे। साला ठेकेदार खाए अफसर खाये नेता खाए और हम नारद जी की तरह कड़ताल बजायें ऐसे अब चलेगा नहीं। खबरीलाल बोले चुनाव आयोग सब जानता है। परन्तु कर कुछ नहीं सकता। जब जूता (चांदी का ही सही) खाने वाला तैयार और मारने वाला तैयार फिर आप क्या कर सकते हैं। मियां बीबी राजी तब फिर क्या करेगा काजी।
मुंशी हरदिल अजीज बोले सुना तो खबरीलाल हमने भी है। खबरीलाल बोले क्या खाक सुना है। यहां आकर चौक की पटिया पर बैठ जाते हो। यहीं बैठे-बैठे जोड़ घटाना करते रहते हो। जरा घूम फिर कर देखो जो बातें खर्चे और लेनदारियां देनदारियां बच्चों तक को मालूम है। हमारे हारे जीते माननीयों की जो कहानियां गली मोहल्लों में तैर रही हैं। उनका पांचवा हिस्सा भी यह दिखाया गया चुनाव खर्च नहीं है। एक साहब का सहारा ही पैसा और केवल पैसा है। आप सर पटक कर रह जाओगे यह जान ही नहीं पाओगे कि वह निर्दली है हाथ वाले हैं, हाथी वाले हैं या साइकिल वाले। ऊपर से इतना साफ दिखता है कि कमलधारी नहीं है। अंदर ही अंदर सहयोग राशि के बल पर वहां भी खेल कर देते हैं। छेद कर देते हैं। बहुत अच्छे आर्थिक सहयोगी हैं। सब सलाम ठोंकते हैं तारीफ करते हैं। जिले से लेकर ब्लाक तक प्रधान से लेकर बीडीसी तक सब जेब में रखते हैं। कहते हैं क्या करें सब करना पड़ता है। भाई हम तो व्यापारी हैं। यह सब न करें तब सरकारी विभागों के घाघ अफसर ठेकेदार नेता हमें कुत्तों की तरह नोच डालें। अब इस खेल में सब हमारी सलाम बजाते हैं। तारीफ करते हैं। झूठा ही सही इकबाल कायम है।
मियां और मुंशी चुपचाप सब सुन रहे थे। जानते हैं कि खबरीलाल जब बोलते हैं तब फिर चुप रहना ही ठीक है। बोले भैया अबकी बार गजब गजब हो गया। तुम्हारी यह खबर हमने भी पढ़ी है। हकीकत वयान कर देंगे। तब फिर चारो ओर गंदगी ही दिखायी देगी। पैसे की चमक ने इस बार चुनाव सबको अंधा कर दिया अंधा और कुछ को मजबूर कर दिया। एक माननीय कंजूसी की मिशाल स्वयं हैं। जिला पंचायत चुनाव से बेईमानी की लाइन में भी इन्ट्री हो गई। मजबूरी का हवाला देते हुए कहते हैं। क्या करें बच्चे बड़े हो गए हैं। वह सब करना पड़ेगा जो अभी तक नहीं किया। बाप दादों के टाइम के अखाड़ची हैं। चुनावी वस्तों में पैसा नहीं रखते। किसी को पैसा बांटना हराम की तरह है। ठसक इतनी कि बाप ताऊ की उमर के लोगों से पैर धुलाना अपनी शान समझते हैं। खबरीलाल बोले इस बार चुनाव में सारी हेकड़ी निकल गई। वह सब करना पड़ा जिसे कभी न करने की डींगे मारते अपने दरबार में कभी थकते नहीं थे। बाप बेटों की पैर छूते-छूते कमर दुखने लगी। पैसे बांटते-बांटते दानवीर हो गए। दरबारी ताल ठोंक कर कहने लगे कि कौन कहता है कि अपने नेता जी मख्खीचूस हैं। अब हराम की कमाई हराम में जा रही है। तब फिर तुम्हें दो शब्द तारीफ में कहने में भी दम क्यों निकलती है।
धारा प्रवाह बोलने के बाद खबरीलाल थोड़ा धीमे हुए। पानी पीने के बाद बोले कहां तक कहें भैया। बड़ी लंबी कहानियां हैं इन हारे जीते माननीयों की। सुन नहीं पाओगे। हम तो इस चुनाव में ही यह जान पाए कि झूठ बोलने वाले हारे जीते माननीय अन्ना हजारे के नाम पर भड़क क्यों जाते हैं। हकीकत यह है कि अन्ना हजारे इन्हें आइना दिखाते हैं जिसमें इनका असली चेहरा सामने आ जाता है।
मुंशी हर दिल अजीज और मियां झान झरोखे खबरीलाल का लोहा मानने के अंदाज में बोले सच कहते हो भाई। सचमुच बहुत लंबी कहानी है। फिर भी कहानियों के इस सागर में तुम्हें जिस बात ने सबसे ज्यादा अपील किया हो उसके विषय में बताकर आज की परिक्रमा खत्म करो। फिल्म/कहानी इतनी भी अच्छी क्यों न हो लोग ज्यादा लंबी फिल्म/कहानी देखना पढ़ना पसंद नहीं करते।
खबरीलाल बोले एक नहीं दो बतायेंगे। संक्षेप में बांकी अंदाजा आप लगा लेना। एक पूर्व माननीय हैं- कछू बिक जाए हमें लटकन लइदेओ- के अंदाज में उन्हें चुनाव मैदान में ताल ठोंकने का शौक है। एक चुनाव खत्म होता है अगले की तैयारी शुरू हो जाती है। पैसा साधन आपके श्रोत इतने कि कोई शुमार ही नहीं। चुनाव अभियान में धमाकेदार इन्ट्री के लिए सबसे बड़े नेता की सभा से शुरूआत करा दी। परन्तु यह क्या सर मुड़ाते ही ओले पड़े। सभा हो गई सुपर फ्लाप। परन्तु माननीय की हिम्मत और मर्दानगी का तो कोई ओर छोर ही नहीं। पूरा परिवार पार्टी नेता अभिनेता सबके सब लगे रहो मुन्नाभाई के अंदाज में लगे रहो। परन्तु शंकर जी के धनुष की तरह चुनाव अभियान नहीं उठा। आखिर सप्ताह में शानदार जीत के स्थान पर शानदार हार के लिए रणनीति बनने लगी। सैंयां भए कोतवाल अब डर काहे का। शानदार हार के लिए पूरी शान के साथ तीन दिन तीन रात में बंटे केवल सात करोड़ रुपये। जमानत फिर भी नहीं बची। अब यह आप सोंचकर बताइए कि हार शानदार हुई कि नहीं। लगता है हार सम्मान जनक है। तभी तो चुनाव परिणाम के बाद ही अगला चुनाव दमदारी से लड़ने की घोषणा हो गई।
आज की अंतिम बात थोड़ी अलग है। यह इस चुनावी कामेडी की ट्रेजडी है। हर कोई हर तरफ यही कह रहा है चुनाव की व्यवस्था ही नहीं की। पूरा परिवार और सहायक नवरत्न चंदा बटोरने में लगे रहे। हर जगह पार्टी हाईकमान से लेकर जिले के धन्ना सेठों से यही रोना बहुत महंगा चुनाव है। अरब पतियों से मुकाबला है। आपने हमेशा सहयोग किया है। खूब सहयोग मिला। चंदे का धंधा चला ही नहीं दौड़ा। सिंह गर्जना भी खूब हुई। पैसा खर्च ने सबके सहयोग से चुनावी व्यवस्था बनाने के अलावा वह सब कुछ हुआ जो चुनाव में नहीं होना चाहिए था। अब ऊपर- ऊपर बेशुमार गुस्सा है आक्रोश है। रुसवाई पर गालियां हैं। बेबफाई पर तालियां और गालियां मिलीजुली हैं। हारे हुए माननीय कुछ नया ड्रामा बनाने में लखनऊ दिल्ली एक कर रहे हैं। कम्प्यूटर प्रतिदिन दर्जनों समर्थन प्रस्ताव पत्र उगल रहा है। भारतीय डाक विभाग का भला हो रहा है। कहा भी सही है घर की मुर्गी दाल बराबर। खबरीलाल बोले तो बोलते ही चले गए। मुंशी हर दिल अजीज तथा मियां झान झरोखे उन्हें ताकते ही रह गए। उनका बहुत सा कहा हुआ कटु सत्य उन दोनो ने सुना ही नहीं। इसलिए उस सबको लिखने का कोई मतलब और मौका नहीं है।
हिम्मत हो तो चौक की पैमाइश कराइए!
पूरे एक सप्ताह से नगर क्षेत्र में बुलडोजर अभियान था कहिए अतिक्रमण विरोधी अभियान चल रहा है। सब अपने अपने अंदाज में खुश और नाराज हैं। एक बोले अब लो मजा पतंग उड़ाने का। सायकिल की सवारी की होती तब फिर यह दुर्दिन देखने को नहीं मिलते। मौका आता भी तो सायकिल वाले लाल हरी बिग्रेड के साथ अतिक्रमण हटाओ दस्ते पर ही हल्ला बोल देते। उनका नारा है बंद तुम्हारी खुली हमारी।
दूसरा बोला चुप रह बेबकूफ। यह सब क्या पहली बार हो रहा है। यह वार्षिक कर्मकाण्ड है हर बार होता है। शहर की धरती पर अतिक्रमण अमर बेल की तरह पसर जाता है। इस बार ढोल ताशा ज्यादा बज रहा है। सरकार बदली है। शहर में हाथी, हाथ, सायकिल, कमलधारियों की दुर्दशा हो चुकी है। पतंग वालों की यहां उड़ी। परन्तु सैफई, जसवंत नगर, इटावा, लखनऊ दिल्ली में टेलीफोन की सारी कलाकारी और बातों की पूरी ऐटयारी के बाद भी उड़ नहीं पा रही है। अब व्यापार मण्डलों के कमंडलधारी अखबारी विरोध करके अपनी इज्जत बचायें या तुम्हारी पैरवी करके अपनी फजीहत करायें। नई सरकार नए हाकिम हुक्काम। न किसी से दुआ न किसी से सलाम। वह कर रहे हैं अपना काम हम कर रहे हैं अपना काम।
तीसरा बोला ज्यादा बकबक मत कर। अभी तेल देखा है तेल की धार नहीं देखी है। अतिक्रमण करने वाले कोई अपराधी नहीं है। नगर के व्यापारी हैं। नगर पालिका की कुर्सी पर जो लोग बैठे उन्होंने कभी भी अपने प्यारे और दुलारे शहर को सजाने और संवारने की कोशिश ही नहीं की। कमीशन, लूट, ट्रांसफर, पोस्टिंग से फुर्सत मिले तब न। अब फिर जुलाई में चुनावी घमासान की तैयारी है। जो शिकायत लेकर पहुंचा उसे समझाने के अंदाज में सभी संभावित चेयरमैन यही कह रहे हैं। कुछ ही दिनों की बात है। जीतने भर दो गलियां रहेंगी नहीं सड़कें पग डंड़ियां बन जायेंगीं। जाम लगता है लगने दो लेकिन हमारे व्यापारी भाइयों को किसी तरह का कोई कष्ट नहीं होना चाहिए। लोग हमें वोट देते हैं। परन्तु हमारा खाना खर्चा दरबार व्यापारी भाइयों से ही चलता है। व्यापारी एकता जिन्दाबाद।
अतिक्रमण विरोधी दस्ते के कमांडरों तक यह बातें पहुंची। सब एक साथ मीडिया के सामने गरजे। हिम्मत भी मत करना दुबारा अतिक्रमण करने की। वह हाल करेंगे जिसकी कल्पना भी नहीं की होगी।
कुछ दिलजलों से नहीं रहा गया। बेनामी बिना हस्ताक्षरों की चिट्ठी लिख दी। भाई साहब आपने अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाकर हम सब पर बहुत उपकार किया है। आपको बार-बार बधाई। परन्तु आपसे एक बात कहनी है। पूरे हिन्दुस्तान में घूम आइए- आपको इतना बड़ा साफ सुथरा हवादार चौक वह भी त्रिपौलिया चौक हमारे फर्रुखाबाद जैसा कहीं नहीं मिलेगा। अब लोगों का क्या वह तो कहते ही रहते हैं। त्रिपौलिया चौक पर सबसे ज्यादा अतिक्रमण है। इसे क्यों नहीं हटाते। हिम्मत है चौक का अतिक्रमण हटाने की। हमारी मोमिया खोखे तको हटाते बड़ी बहादुरी दिखाते हो। अपने ही नक्शे से अपने ही फीते से चौक त्रिपौलिया चौक की पैमाइश करके दूध का दूध और पानी का पानी कर दो। हम जिंदगी भर तुम्हारा एहसान मानेंगे।
दूसरे ने हां में हां मिलाई सही कहते हो भाई। हम कब कहते हैं कि अगर कोई कोर्ट कचहरी का फंडा है। स्टे है फैसला है तब फिर उसे जनता को बताने में क्या परेशानी है। एक बार बात साफ हो जाए हमारे चौक त्रिपौलिया का गुनाह माफ हो जाए। सीएम साहब, सीओ साहब, राम सक्सेना साहब, क्या इतनी हिम्मत दिखाओगे अतिक्रमण विरोधी अभियान के दौरान चौक त्रिपौलिया की गुत्थी सुलझाओगे। चलते-चलते खबर मिली राम सक्सेना साहब का स्थानांतरण कानुपर नगर निगम के लिए हो गया है।
और अन्त में – आप आए आपका स्वागत है!
सरकार क्या बदली सब कुछ बदल गया। हाकिम, हुक्काम सब बदले। पांच साल ताश के पत्तों की तरह फेंटे ही जाते रहे। अब नया युवा मुख्यमंत्री आया है। उम्मीद करनी चाहिए कि कोई अनहोनी न होने की स्थिति में नए आने वाले सभी हाकिमों को कम से कम तीन साल निष्ठा से ईमानदारी से मेहनत से काम करने का मौका मिलेगा। कोई भी अधिकारी बेईमान ठेकेदारों, शिक्षामाफिया, तुनक मिजाज जनप्रतिनिधियों के स्वार्थी गुस्से का शिकार होकर अपना बोरिया विस्तर बांधने को मजबूर नहीं होगा।
रही बात जिले में आने वाले नए अफसरों की उन्हें भी इस किंवदंती को झूठा साबित करना होगा कि हम क्या करें साहब। इतनी रकम देकर फेस्टिंग पाई है। अब कमायेंगे नही तो पहुचायेंगे क्या। हम विध्न संतोषी नहीं हैं। हमें अपनी योग्यता निष्ठा और ईमानदारी पर कोई शक नहीं है। आप हमारे जिले और शहर को सुधारने सजाने और सवारने आए हैं। हम आपके हर सार्थक रचनात्मक विश्वास परक कार्य में आपके साथ होंगे। परन्तु इसके विपरीत स्थिति में हम आपको मिलने वाली हर सजा को सराहेंगे।
जो पीकर जहर अमर होना चाहें आयें,
वो बेहोशी चाहें वह हमसे दूर रहें,
जो जूझ सकें मझधारों से वह चलें साथ,
जो कूल कूल चाहें वह अपनी राह वहें।
हय हिन्द!
(सतीश दीक्षित)
एडवोकेट
1/432 शिव सुन्दरी सदन
लोहिया पुरम- आवास विकास कालोनी
बढ़पुर फर्रुखाबाद