लखनऊ| इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने शुक्रवार को एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को आदेश दिया है कि वह बताए कि पूरे प्रदेश में कुल कितनी अवैध कालोनियां हैं।
न्यायमूर्ति उमानाथ सिंह और न्यायमूर्ति वी. के. दीक्षित की खंडपीठ ने सामाजिक संस्था इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च एंड डोक्युमेंटेशन इन सोशल साइंसेज की तरफ से दायर जनहित याचिका पर राज्य सरकार के आवास एवं शहरी विकास विभाग को नोटिस जारी किया।
अदालत ने आवास एवं शहरी विकास विभाग से इन अवैध कॉलोनियों को बनने से रोकने की दिशा में किये गए प्रयासों के बारे में भी बताने के आदेश दिए। साथ ही अदालत ने अब तक विनियिमत किये गए अवैध कॉलोनियों की संख्या भी पूछी है।
जनहित याचिका में यह कहा गया था कि उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन एवं विकास अधिनियम 1973 की धारा 4 के अंतर्गत प्रदेश भर में कई विकास प्राधिकरण बनाए गए हैं। इन विकास प्राधिकरणों को यह दायित्व दिया गया है कि उनके विकास क्षेत्रों का विकास अनुमोदित योजना के अनुसार ही हो तथा कोई भी निर्माण बिना विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष की लिखित अनुमति के न हो।
इन विकास प्राधिकरण को उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन एवं विकास अधिनियम की धारा 25, 26, 27, 28 तथा 28ए के अंतर्गत सुनियोजित विकास सुनिश्चित करने के लिए तमाम अधिकार दिये गए हैं। इनमे किसी निर्माण की जगह में घुसने, उसे रोकने, उसे सील करने और गिराने तक के अधिकार शामिल हैं। विकास प्राधिकरण इसके लिए पुलिस को भी आदेश दे सकते हैं। इन सभी अधिकारों के बाद भी विकास प्राधिकरण अवैध कॉलोनियों के निर्माण को नहीं रोक पा रहे हैं।
याचिका में आग्रह किया गया कि अदालत द्वारा सभी विकास प्राधिकरण को यह आदेश निर्गत किया जाए कि वे यह सुनिश्चित करें कि उनके विकास क्षेत्र में कोई अवैध कॉलोनी नहीं बन सके लेकिन यदि अवैध कॉलोनी बन जाती हैं तो इसके लिए विकास प्राधिकरण के सम्बंधित अधिकारी दण्डित किये जाएं। साथ ही इस तरह से बन चुकी अवैध कॉलोनियों को भी शहरी नियोजन एवं विकास अधिनियम की धारा 33 के अधीन नियिमत की जाएं ताकि वहां बसने वाले लोगों को उचित सुविधा मुहैया हो सके।