मायावती को हराने को लामबंद हुई यूपी पुलिस, एसोसिएशन ने जारी की अपील

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देश के इतिहास में पहली दफा किसी भी चुनाव में किसी भी राज्य की पुलिस ने सत्तारूढ़ दल के खिलाफ मोर्चा खोल कर सरकार की मुश्किलें बढ़ाई हैं। पहली बार किसी राज्य में सीधे चुनाव में दखल किये जाने से पूरे राज्य के पुलिस अमले में हड़कंप मच गया है, पुलिस विभाग के आला अफसरान इस लामबंदी को लेकर सकते में हैं। अगर हकीकत में पुलिस की लामबंदी किसी भी स्तर पर कामयाब हो जाती है तो इसे चमत्कार के रूप में ही देखा जायेगा। पुलिस एसोसियेशन के मायावती हराओ आह्वान भरे पंपलेट सामने आने के बाद पुलिस अमले के साथ-साथ खुफिया विभाग भी सजग हो चला है, लेकिन सभी अभी यह नहीं जान पाये हैं कि मायावती हराओ का आह्वान करने वालों ने आखिरकार किस दल के पक्ष में मतदान करने की अपील की है, क्यों कि इस बात में ही छुपी हुई है असली राजनीति।

2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ बसपा सरकार की मुखिया मायावती को एक और करारा झटका उस समय लगा, जब उत्तर प्रदेश की पुलिस भी मायावती के खिलाफ चुनाव मैदान में लामबंद हो चली है। यह लामबंदी ऐसे ही नहीं हुई है, इस लामबंदी के पीछे उत्तर प्रदेश में तैनात पुलिसकर्मियों पर माया सरकार की ओर से किये गये कई किस्म के उत्पीड़न के चलते मायावती हराओ पुलिस बचाओ प्रदेश बचाओ के नारे की शक्ल में पुलिसजनों की यह मुहिम सामने आई है। मायावती के खिलाफ लामबंदी करने वाले उत्तर प्रदेश पुलिस एसोसियेशन नामक संगठन में इस समय 4 लाख के करीब पुलिस पदाधिकारी हैं, जिसमें चपरासी से लेकर इंस्पेक्टर तक शामिल हैं।

मायावती हराओ पुलिस बचाओ प्रदेश बचाओ के नारे के साथ उत्तर प्रदेश पुलिस एसोसिएशन ने पूरे उत्तर प्रदेश में आह्वान की शक्ल में पुलिस को जागरूक करने के लिये मायावती के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। माया हराओ इस आह्वान के साथ उत्तर प्रदेश पुलिस एसोसियेशन ने पंपलेट भी छपवाये हैं, जिसे पूरे राज्य में पुलिस एसोसियेशन के पदाधिकारी खुद-ब-खुद अपने स्तर पर बांटने का काम करेंगे। करीब एक लाख से अधिक तादात में यह पंपलेट छपवाये गये। पुलिस एसोसियेशन के पदाधिकारियों ने अपने खर्चे पर इन पंपलेटो को छपवाने का काम किया है। पुलिस एसोसियेशन के पदाधिकारी बाकायदा अपने खिलाफ कार्रवाई के लिए भी मनोवैज्ञानिक तौर पर तैयार हैं, क्यों कि उनको इस बात का इल्म है कि इस तरह का कदम लाजिमी है लेकिन कार्रवाई के दायरे मे आता है।

उत्तर प्रदेश पुलिस एसोसियेशन के अध्‍यक्ष सुबोध यादव ने कहा कि माया सरकार के खिलाफ पुलिस एसोसियेशन की ओर से जो पंपलेट बांट जा रहा है उसका शीर्षक ही है मायावती हराओ, पुलिस बचाओ, प्रदेश बचाओ। इस नारे के साथ ही पूरे राज्य की बहनों, भाइयों और जनता से अपीलात्मक भाव के जरिये मायावती को हराने की गुहार की गई है। 32 मांगों से भरे मांग पत्र के साथ जनता के बीच गई पुलिस एसोसियेशन के अध्यक्ष कहते हैं कि उनको भरोसा है कि उनकी मांगों पर आम लोगों का भी रूझान मायावती के खिलाफ जरूर होगा। उत्तर प्रदेश पुलिस एसोसियेशन के अध्‍यक्ष सुबोध यादव ने बताया कि उत्तर प्रदेश में 22 हजार सिपाहियों के भविष्य पर मायावती की लटकी तानाशाही की तलवार पर बर्खास्तगी विचाराधीन मामाला माननीय सुप्रीम कोर्ट से राज्य सरकार अपनी याचिका कर्मचारियों के भविष्य हित में वापस ले। इसके अलावा उनका कहना है कि यूपी पुलिस एसोसिएशन को यूपी सरकार द्वारा मान्यता दी जावे। उत्तर प्रदेश में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू की जावे।

सुबोध ने अपने मांग पत्र में इस बात का भी उल्लेख किया है कि देश की सेना को वोट करने का अधिकार मिला है, ऐसे में पुलिस को वोट डालने का अधिकार ना देना यह बताता है कि पुलिसजनों के अधिकारों पर कुठाराघात किया जा रहा है, इसलिये उत्तर प्रदेश की पुलिस को भी देश की सेना की तर्ज पर वोट डालने का अधिकार दिया जाए। सुबोध अपने मांगपत्र में यह भी कहने से नहीं चूके कि पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह द्वारा रिट माननीय सुप्रीम कोर्ट ने विचारोपरान्त सम्पूर्ण भारत वर्ष में पुलिस सुधार आयोग के गठन का पालन किया जाये। बार्डर स्कीम के तहत स्थानान्तरण हुये उन्हें तत्काल निरस्त किया जावे। उत्तर प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह द्वारा नकदीकरण बन्द किया गया, उसको तत्काल बहाल किया जाये।

वे कहते है कि उपनिरीक्षक/ उसके समकक्ष एपीओ एवं अन्य को राजपत्रित अधिकारी का दर्जा एवं वेतनमान प्राप्त हुआ और हमारे उपनिरीक्षक/ अन्य इकाइयों के समकक्ष को सिपाही का वेतनमान दिया गया। इसके अलावा निरीक्षक/ आरआई/ कम्पनी कमाण्डर/टीआई/ आरआई रेडियो/इंस्पेक्टर (एम) और इनके समकक्ष को आज तक राजपत्रित का दर्जा प्राप्त नहीं। जिसको तत्काल दिया जाये। सुबोध का कहना है कि सिपाही, फालो वर, सफाई कर्मचारी को और इनके समकक्ष को चतुर्थ श्रेणी के समकक्ष छठवें वेतन में सिपाही को रख दिया। कोई अन्तर नहीं रखा। कभी प्राइमरी शिक्षक के समकक्ष सिपाही का वेतनमान था, इस वेतन विसंगति दूर की जावे। उन्होंने पुलिस कर्मियों से गुहार की है कि पुलिस कर्मी फर्जी एनकाउन्टर न करें।

उनका कहना है कि पुलिस पे कमीशन सेना की भांति अलग से गठित की जावे। पुलिस कर्मियों की मंशा के तहत उनके हितों की बात करने वाले सुबोध ने इस मांग के जरिये चपरासी से इंस्पेक्टर पद तक की तैनाती गृह मण्डल में ही करने को कहा है। बडे़ पुलिस अफसरों के विवेचनाओं में किये जाने वाले दखल को लेकर विवेचना अधिकारी को हस्तक्षेप से दूर रखा जावे तभी पीड़ित को न्याय मिल सकता है। दिल्ली पुलिस की तर्ज पर स्थानान्तरण तैनाती रुटीन वाइज सभी इकाइयों में हो। पी.ए.सी जवानों की सहानुभूति बटोरने के लिये पीएसी के जवानों को 10 वर्ष सेवा के बाद स्वतः सिविल पुलिस में समाहित कर दिया जाने की भी मांग रखी गई। पीएसी जवानों को असमय ड्यूटी से बचाया जावे और तैनाती मण्डल में ही कम्पनियां भेजी जावे। पीएसी को नये टेण्ट/सामान उपलब्ध कराया जावे। अन्य सरकारी विभागों की तरह कर्मचारियों की ड्यूटी आठ घंटे की निर्धारित की जावे और ओवर टाइम का ओवर पैसा दिया जावे। पुलिस कर्मियों का जीपीएफ 90 प्रतिशत तक निकालने की सहज सुविधा उपलब्ध कराई जावे।

सुबोध ने इस मांग को भी रखा, जिसमें पुलिस के अराजपत्रित कर्मचारियों की बिना स्वीकृति प्रति माह वेतन से कटौती पर तत्काल रोक लगाई जावे। यह प्रकरण 14 अक्टूबर 2011 को परिवाद संख्या 3521 माननीय लोकायुक्त के यहां दर्ज है। अंग्रेजों के समय मे बनाये गये कानून को बदलने की मांग रखते हुये अंग्रेजों द्वारा बनाये गये पुलिस एक्ट को बदले जाने की भी मांग रखी गई है। सुबोध ने कहा कि किसी भी कर्मचारी को आपराधिक मुकदमे में जब तक माननीय न्यायालय द्वारा दोषी न ठहराया जावे तब तक विभाग से न निकाला जावे। चिकित्सा सुविधा सेना की भांति कर्मचारियों/उनके परिवार के सदस्यों को उपलब्ध कराई जावे। आईपीएस अफसरों पर कड़ी नाराजगी जताते हुये सुबोध ने कहा कि मौजूदा आईपीएस अधिकारियों/ रिटायर्ड आईपीएस अधिकारियों के यहां लगे फालोवरों को तत्काल हटाया जावे। यह सुविधा शासन द्वारा उन्हें प्राप्त नहीं है। इससे अरबों रुपये का प्रतिवर्ष सरकार का नुकसान हो रहा है। नदियों मे बहाये जाने वाले अनजान शवों की बेकदरी को लेकर सुबोध ने कहा कि अज्ञात शव दाह संस्कार का 1500 रुपया शासनादेश होने के बावजूद पुलिस कर्मियों को उपलब्ध नहीं कराया जाता, तत्काल जांच कराकर दोषियों को सजा दिलाई जावे।
साभार- दिनेश शाक्य पत्रकार (इटावा)