क्या संदेश देता है नागपंचमी का पर्व?

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हिन्दू धर्म के अंतर्गत प्रकृति में शामिल प्रत्येक प्राणी, वनस्पति आदि को भगवान के रूप में देखा जाता है। हमारे ऋषि-मुनियों ने उनमें धर्म भाव पैदा करने के लिए धर्म से जोड़कर किसी विशेष तिथि, दिवस या अवसर का निर्धारण किया है। इसी क्रम में नाग को देव प्राणी माना गया है इसलिए श्रावण शुक्ल पंचमी को नागपंचमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन नागों का पूजन किया जाता है। इस बार यह पर्व 4 अगस्त, गुरुवार को है।

नाग पूजा उसी प्रकृति पूजा का ही अंग है, जिसमें रोम-रोम में ईश्वर का वास माना जाता है। ईश्वर का यह प्राकृतिक स्वरूप भगवान शिव के रूप में पूजनीय है। यही कारण है कि सावन माह में आने वाली नागपंचमी (4 अगस्त) की शुभ घड़ी पर नाग पूजा साक्षात् शिव पूजा भी मानी जाती है।

वैसे भी भगवान शंकर को नागों का अधिपति माना गया है। नाग उनका आभूषण माने गऐ हैं। इसलिए नाग पूजा शुभ और मंगलकारी मानी गई है। दरअसल, नाग पूजा में पेड़-पौधों, जल, वायु, अन्न, जीव-जन्तुओं आदि के द्वारा मानव पर मेहरबान प्रकृति के सम्मान और उसके साथ तालमेल बैठाकर सुखी जीवन जीने का संदेश है।

नागपंचमी का यह पर्व यह संदेश देता है कि स्वाभाविक रूप से नाग जाति की उत्पत्ति मानव को हानि पहुंचाने के लिए नहीं हुई है।जबकि वह पर्यावरण के संतुलन को बनाए रखते हैं। चूंकि हमारा देश कृषि प्रधान देश है एवं नाग खेती को नुकसान करने वाले चूहे एवं अन्य कीट आदि का भक्षण कर फसल की रक्षा ही करते हैं। इस प्रकार यह हम पर नाग-जाति का उपकार होता है। अत: नाग को मारना या उनके प्रति हिंसा नहीं करना चाहिए ।

मूलत: नागपंचमी नाग जाति के प्रति कृतज्ञता के भाव प्रकट करने का पर्व है । यह पर्व नाग के साथ प्राणी जगत की सुरक्षा, प्रेम, अहिंसा, करुणा, सहनशीलता के भाव जगाता है । साथ ही प्राणियों के प्रति संवेदना का संदेश देता है