यूपी विधानसभा चुनाव में उमा से टक्कर लेंगे दिग्विजय

Uncategorized

लखनऊ। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और उमा भारती अब उत्तर प्रदेश में वर्ष 2012 में होने वाले विधानसभा चुनावों में आमने-सामने होंगे। कुछ समय से सभी प्रमुख राजनीतिक दलों की निगाहें उत्तर प्रदेश में होने वाले वर्ष 2012 के विधानसभा चुनावों पर न केवल लगी हैं, बल्कि वे पूरे दम-खम से इस चुनावी जंग को जीतने में जुट गए हैं।

प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य में दो बड़े राष्ट्रीय दल काग्रेस और भारतीय जनता पार्टी लंबे समय से अंदरुनी खींचतान के चलते प्रदेश की राजनीति में हाशिए पर हैं। काग्रेस ने मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को उत्तर प्रदेश में चुनावी जंग जीतने की जहा दोबारा जिम्मेदारी सौंपी है, वहीं भाजपा ने भी मध्य प्रदेश में दिग्विजय को मात देने वाली साध्वी उमा भारती को ‘दिग्गी राजा’ के मुकाबले महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने का ऐलान करके राज्य की सियासत में गर्माहट ला दी है।

उमा भारती की अगुवाई में भाजपा ने मध्य प्रदेश के वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में काग्रेस को बुरी तरह पराजित कर दिग्विजय सिंह को मध्य प्रदेश की सियासत से बाहर का रास्ता दिखाया था। इसे संयोग ही कहा जाएगा कि उत्तर प्रदेश में खोया जनाधार वापस पाने की जद्दोजहद कर रही काग्रेस और भाजपा इस सूबे में अपनी चुनावी नैया पार लगाने के लिए मध्य प्रदेश के इन्हीं दो दिग्गजों पर आस लगा रही हैं।

राज्य में जहा दो दशकों से हाशिए पर खड़ी काग्रेस ने अपना खोया जनाधार वापस पाने के लिए दिग्विजय सिंह को प्रदेश प्रभारी बनाकर ‘मिशन 2012’ की कमान सौंपी है, वहीं भाजपा ने भी अपनी खोई हुए जमीन वापस पाने के लिए भाजपा के दिग्गजों को सरेआम आइना दिखाने वाली उमा भारती को न केवल पार्टी में वापस ले लिया बल्कि उत्तर प्रदेश में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देने की तैयारी भी कर ली।

उमा भारती के नेतृत्व मे भाजपा ने मध्य प्रदेश में 2003 के विधानसभा की 173 सीटें जीत कर वहा अर्से से जमी काग्रेस की जड़ों को न केवल कमजोर कर दिया था बल्कि 230 सीटों वाली विधानसभा में काग्रेस को मात्र 38 सीटों पर ही समेट कर शर्मनाक पराजय भी दिलाई थी।

हालाकि उमा भारती भी एक वर्ष से ज्यादा समय तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के पद पर नहीं रह सकीं। कर्नाटक के हुबली में निषेधाज्ञा का उल्लंघन करते हुए एक विवादित स्थल पर झंडा फहराने के बाद हुई साम्प्रदायिक हिंसा को लेकर उनके विरुद्ध गिरफ्तारी वारट जारी किए जाने के चलते अगस्त 2004 मे उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।

लगभग एक दशक से उत्तर प्रदेश की राजनीति में हाशिए पर चल रही भाजपा ने उमा का कार्ड खेल कर एक तीर से तीन निशाने साधे हैं। उत्तर प्रदेश में वर्ष 2012 में होने वाले विधानसभा चुनाव में सत्तारुढ़ बसपा की अध्यक्ष मायावती का दलित वोट बैंक पर अधिकार है तो काग्रेस ने ब्राह्मण कार्ड खेलते हुए डा. रीता बहुगुणा जोशी को तमाम विरोधों के बावजूद दोबारा प्रदेश काग्रेस अध्यक्ष बनाया है।

भाजपा ने उमा भारती को उत्तर प्रदेश की राजनीति में लाने का फैसला कर जहा उन्हें एक तरफ मायावती और डा. जोशी के मुकाबले खड़ा किया तो सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के पिछडे़ वोट बैंक में सेंध मारने की जुगत लगाई है। इसके अलावा वह इन दिनों भाजपा पर तीखे प्रहार कर रहे दिग्विजय सिंह के मुकाबले में उमा भारती के जरिए काग्रेस पर पलटवार कराएगी।