फर्रुखाबाद:(जेएनआई ब्यूरो) संस्कृति विभाग उत्तर प्रदेश द्वारा महाकुंभ पूर्व आयोजन के अंतर्गत प्रान्तीय कला साधक संगम के द्वितीय दिवस में राष्ट्रीय संगोष्ठी भारतीय ज्ञान परंपरा में कला एवं संस्कृति का योगदान विषय पर द्वितीय सत्र के साथ संपन्न हुई।
मुख्य अतिथि प्रो. डॉ. साहित्य कुमार नाहर पूर्व कुलपति राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय ग्वालियर, विशिष्ट अतिथि डॉ. मिथिलेश तिवारी उपाध्यक्ष बिरजू महाराज कथक संस्थान लखनऊ तथा अध्यक्ष डॉ. विनोद कुमार वशिष्ठ रहे।
कार्यक्रम संचालन डॉ. रजनीश कुमार सिंह रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय चित्रकूट द्वारा किया गया। डॉ. संध्या पाण्डेय, डॉ. आलोक बिहारी शुक्ला, ने शोध पत्र प्रस्तुत किया। अखिलेश पाण्डेय, डॉ. हरिमोहन पुरवार, भूपेंद्र प्रताप सिंह, पद्माकांत शर्मा प्रभात तुषमुल
मिश्रा ने विचार प्रस्तुत किये। विशिष्ट अतिथि कुलपति मेजर एस. डी. सिंह विश्वविद्यालय फर्रुखाबाद, डॉ. रंगनाथ मिश्र ने शिक्षा के साथ साथ कला संस्कृति के विकास पर कार्य करने के लिए कहा। डॉ. मिथिलेश तिवारी ने भारतीय ज्ञान परंपरा से ओत प्रोत लोक कलाओं में जीवन के रंगों पर प्रकाश डाला। मुख्य अतिथि प्रो. पंडित साहित्य कुमार नाहर ने अपने उद्बोधन में कहा साधना और संगीत के साथ सभी कलाओं में ज्ञान पिरोया हुआ है जो समाज को गतिमान करता है। अखिलेश पाण्डेय ने शिक्षा को भारतीयता से जोड़े जाने की आवश्यकता पर बल दिया। तुषमुल मिश्रा ने भारतीय ज्ञान परंपरा को आत्मा की पूर्ण रूप से जीवंत करने और दिव्य रूप में अभिव्यक्त करने का मार्ग बताया जो कला और संस्कृति के रूप में प्रकट होता है। श्री विनोद कुमार वशिष्ठ ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कला, संस्कृति ज्ञान और स्त्री को समाज की धुरी बताया।