भ्रष्टाचार को आखिर जनता ने मुद्दा बना ही लिया

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फर्रुखाबाद: पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों में भ्रष्टाचार एक निर्णायक मुद्दे के तौर पर उभर कर सामने आ गया है| आखिर भारत का लोकतंत्र घुटनों के बल चलना छोड़ कर छोटे-छोटे क़दमों से ही सही सीधे खड़े होकर चलने के शुरुआत करता नज़र आ रहा है| जाति और धर्म की बेड़ियों को तोड़कर इन चुनावों में जनता ने कुशासन और भ्रष्टाचार को मुद्दा बना लिया| तमिलनाडु के नतीजों में पहली बार भ्रष्टाचार के मुद्दे ने असर दिखाया और 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले से दागदार दामन वाली डीएमके को सत्ता छोड़ने का जनादेश मिला। वहीं केरल में भ्रष्टाचार के खिलाफ वीएस अच्युतानंदन भले ही सरकार न बचा पाए हों, लेकिन कांग्रेस की अगुवाई वाले यूडीएफ की जीत की चमक फीकी करने में जरूर कामयाब रहे। तमिलनाडु में 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन को लेकर भ्रष्टाचार के सीधे आरोपों के निशाने पर आए करुणानिधि परिवार ने डीएमके की शिकस्त में अहम भूमिका निभाई। साथ ही यह चुनावी मिथक भी तोड़ा कि तमिलनाडु में भ्रष्टाचार के मुद्दे का जमीनी असर नहीं होता। 2जी घोटाले के खलनायक पूर्व संचार मंत्री ए.राजा के गढ़ पेरांबलूर सीट डीएमके के हाथ से जाती रही जिसपर 1996 से लगातार पार्टी ने जीत दर्ज कराई थी। पेरांबलूर में ही ए. राजा के भाई ए. कालियापेरुमल को मतदाताओं को लुभाने के लिए धनबल प्रयोग के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

केरल में हमेशा या इस पार या उस पार का फैसला देने वाली जनता इस बार जरा उलझी नजर आई। मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन पाटी के भीतर से जारी खींचतान के बावजूद भ्रष्टाचार के खिलाफ योद्धा की अपनी छवि बनाने में कामयाब रहे। पामोलिन मामले, इडामलियार कांड और आइसक्रीम पार्लर सेक्स केस जैसे पुराने मामलों को उठाकर अच्युतानंदन ने कांग्रेस की अगुवाई वाले यूडीएफ की जीत का रथ डगमगा दिया। एंडोसल्फान और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के खिलाफ मुख्यमंत्री की सख्ती ने भी एलडीएफ को सरकार विरोधी लहर को काबू करने में मदद दी। इसी का असर था कि बीते बीस सालों के दौरान हुए चौथे विधानसभा चुनाव के दौरान पहली बार लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट और यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के बीच सीटों का अंतर इकाई का आंकड़े में दर्ज किया गया। ताजा चुनाव परिणामों में सत्ता छोड़ने वाले एलडीएफ के खाते में जहां 68 सीटें गई वहीं जीतकर आए एलडीएफ को 72 सीट हासिल हुई।

पश्चिम बंगाल में दीदी की जीत लेफ्ट फ्रंट के कुशासन के खिलाफ निर्णायक जीत के तौर पर देखी जा रही है| लेफ्ट फ्रंट के ३४ साल के शासन से छुटकारा पा कर परिवर्तन के लिए बंगालियों का वोट अपने आप में एतिहासिक घटना है|