फर्रुखाबाद:(कमालगंज संवाददाता) शेखपुर की दरगाह अहसनी व महमूदी में कुरआन ख्वानी के साथ शनिवार को उर्स का आगाज होगा। तीन दिवसीय 122 वें उर्स की तैयारियां देर रात तक चलती रहीं थी| दूसरे दिन गागर व चादर चढ़ाने के लिए अकीदतमंदों का तांता लगेगा|
कमालगंज में स्थित शेखपुर दरगाह पर ख्वाजा अहसन अली शाह रह तु अलह का उर्स में जियारीन झूम झूम कर हाजिरी देने के लिए उत्साहित दिखे| प्रोग्राम का संचालन हाफिज खुर्शीद ने किया, हाफिज शकील, निराला राही, हाफिज आरिफ व मौलाना गयासुद्दीन आदि ने कलाम पेश किये| बाद नमाज जोहर मीलादुन्नवी की महफ़िल सजाई गयी जिसमें उलमाओ ने अपने अपने अंदाज कलाम पेश किये| दूसरे दिन गागर व चादर चढ़ाने के लिए अकीदतमंदों का तांता लगा रहेगा। कव्वालियों की गूंज के बीच अकीदतमंद सिर पर गागर रखकर दरगाह पहुंचेंगे।
शेखपुर दरगाह की बुनियाद वर्ष 1801 में डाली गई। यहां उर्स की रवायत 122 साल पुरानी है। इमारत की तामीर बंगाल के नवाब ने कराई और जीर्णोद्धार जो भी सज्जादा नशीन बना उसने कराया। उर्स में कुरआन ख्वानी के साथ कव्वालियों का कार्यक्रम होता है। शहर, देहात के अलावा बाहरी जनपदों के अकीदतमंद आते हैं। हिंदू अकीदतमंदों की भी हाजिरी लगती है। मुस्लिम समुदाय के लोग कुरआन की तिलावत के साथ फातिहा ख्वानी करते हैं। सज्जादा नशीन शाह आमिर अली शाह ने बताया कि शनिवार से देर रात तक कई कार्यक्रम होंगे। आने वाले जायरीनों की सुविधा के पुख्ता इंतजाम के लिए मुरीदों को जिम्मेदारी दी गई है।
ख्वाजा अहसन अली की करामात
1857 ईस्वी में आजादी की पहली जंग में नाकामी के बाद भारतवासियों का अंग्रेजों ने उत्पीड़न शुरू कर दिया। बताते हैं कि एक दिन अंग्रेज वायसराय की बेटी सख्त बीमार हो गई। तमाम जतन के बाद भी वह स्वस्थ नहीं हो पा रही थी। उसे ख्वाजा अहसन अली के पास ले जाया गया तो उनकी दुआ और खुदा की मर्जी से वह ठीक हो गई। अंग्रेज वायसराय की तरफ से उन्हें तमाम प्रलोभन दिए गए लेकिन ठुकरा दिये।