फर्रुखाबाद:(मेला संवाददाता) सनातन धर्म में माघ में मौनी आमवस्या पर स्नान एवं दान-पुण्य का विशेष महत्व है। गुरुवार को मौनी अमावस्या पर गंगा के किनारे बसी रामनगरिया में घाटों के किनारे लोग पुण्य डुबकी लगाते नजर आये| इसके साथ ही नागा साधुओं नें शोभायात्रा निकाल शाही स्नान किया|
गुरुवार को मेले की छठी सीढ़ी अमैयापुर क्षेत्र से सनातन धर्म संन्यास परंपरा के ध्वजवाहक श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा के से शाही स्नान को शोभायात्रा आगे बढ़ी तो हर कोई कौतूहल व आनंद से ओतप्रोत हो उठा। अचरज भरे करतबों का प्रदर्शन कर रहे संतों पर खूब पुष्प वर्षा हुई। माथे पर चंदन का तिलक, हाथ में कड़ा, जटाधारी, लंबी दाढ़ी, त्रिशूल लिए नागा साधु-संतों ने भगवा छटा के बीच शाही सवारी (नागाओं की भाषा में स्याही) निकाली। सड़कों पर शस्त्र प्रदर्शन कर रहे संतों के दर्शन को जनता की भीड़ उमड़ती रही। नागा साधु भभूत लगाए थे, तो अन्य साधु-संत अलग-अलग वेषभूषा में थे। नगाड़े, घंटे-घडिय़ाल, दुंदुभी की गूंज के साथ हाथों में त्रिशूल, तलवार, फरसा लिए नागाओं की यात्रा निकली| लोगों ने पुष्प वर्षा कर नागा संतों का स्वागत किया।
नागा साधु संत किसी आर्मी रेजीमेंट के सदस्य से कम नहीं लगते। अनुशासित होकर चलना, शस्त्र प्रदर्शन और उनका संचालन उन्हें विशेष बनाती है। शस्त्र इनके आभूषण माने जाते हैं। सजे-संवरे इन एक दिन के राजाओं ने जमकर करतब दिखाए। शाही जुलूस में राधा-कृष्ण के स्वरूपों का नृत्य का प्रदर्शन आकर्षण रहा। देश के कई स्थानों से नागा संत शाही स्नान के लिए शनिवार को ही पहुंच चुके थे। शोभायात्रा में घुडसबारी भी आकर्षण का केंद्र रही| यह यात्रा लगभग 60 वर्षो से लगातार निकाली जा रही है। मेलारामनगरिया समिति द्वारा प्रशासनिक गेट के सामने सभी महंतो और साधुओ का माला पहनाकर स्वागत किया गया।पूरी यात्रा की पुलिस के साथ ड्रोन कैमरे से निगरानी की
प्रशासनिक व्यवस्था से खफा दिखे नागा साधू
जूना अखाड़ा संत समिति सचिव महंत सत्यगिरि नें बताया कि शाही स्नान को शोभायात्रा निकाली गयी| लेकिन यात्रा मार्ग में व्यवस्था बेहद खराब थी| उन्होंने कहा कि ना ही परिक्रमा मार्ग बनाया गया ना ही चूना डालकर संकेत दिया था| जिससे आधे साधू भटक गये| इस सम्बन्ध में एसडीएम से वार्ता की जायेगी| यदि आगे से व्यवस्था ठीक नही हुई तो आंदोलन होगा|
इस दौरान गिरी,पूरन गिरी,सोमवारपुरी,मंगलगिरी,रामानन्द गिरी,सोमगिरि,सहित हजारो साधु संतों के साथ कल्पवासी मौजूद रहे है।