फर्रुखाबाद:(दीपक शुक्ला) मुख्य चौक पर लोहाई रोड जाने वाले मार्ग की तरफ बनी पटिया ऐतिहासिक पटिया थी| जहाँ से जिले की राजनीति की रूप रेखा तय होती थी| जिस पर कभी पूर्व मंत्री स्वर्गीय ब्रह्मदत्त द्विवेदी नें राजनीति की महफिल सजायी थी| आज अतिक्रमण की बयार में टूट गयी| इतिहास इस बात का गवाह है कि इस पटिया पर बैठकर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, राममनोहर लोहिया आदि राजनैतिक सूरमा अपनी राजनीति को दिशा दे चुके है| पढ़े पटिया का पूरा इतिहास-
दरअसल इतिहास के पन्नो में यह बात आज भी दर्ज है कि त्रिपौलिया चौक पर स्थित चार फीट लम्बी पटिया अपने भीतर ना जाने कितने राज दफन किये है| इस पटिया नें चौक से नाला तक का राजनैतिक पांसा पलटते देखा| लेकिन यह सर्व धर्म और सर्वराजनीति के लिए एक बेहद खास जगह रही| चौक के घंटा घर का शिलान्यास तत्कालीन गवर्नर जनरल सर मौरेस हैलट ने 6 मार्च 1941 ने किया था| जिसके नीचे एक पटिया बनायी गयी थी और पटिया के नीचे लोकार्पण का पत्थर लगा था| लेकिन जब देश आजाद हुआ इसके बाद इसे गुलामी की एक मोहर जानकर ध्वस्त कर दिया गया| जिसका पुन: निर्माण भगवती प्रसाद सक्सेना एडवोकेट के पुत्र मैकूलाल ने अपने पिता की स्मृति में बनवाया।
जिसके बाद चौक की पटिया राजनैतिक लोगों के लिए एक केंद्र बन गयी| जिसके बाद राजनीति से जुड़े लोग चौकीकी पटिया पर ही अपना जमघट लगाने लगे| बिना टीवी और रेडियों के भी चौक की पटिया से हर किस्म की जानकारी साझा होती थी| शाम को शहर के लोग भी इसी के इर्द-गिर्द एकत्रित होते थे| वर्ष 1952 में पंडित जवाहर लाल नेहरु कांग्रेस की रैली में सरीख होनें आये तो इसके बाद उनका चौक की इसी पटिया पर खड़े होकर स्वागत किया गया था| वापस आने के दौरान उनका चौक चौराहे से घुमना होते हुए काफिला गुजरा था| जिस पर इस मार्ग का नाम नेहरु रोड़ हो गया| पूर्व में नेहरु रोड को अहमद रोड़ बोला जाता था| लोग बिना टीवी और रेडियों के चौक की पटिया पर ताजा हाल जानने पंहुचते थे| नेताओं की मृत्यु पर चौक में जमघट लग जाता लोग अपनी अपनी तरह शोक व्यक्त करते।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजेपयी, डॉ० राममनोहर लोहिया, स्वर्गीय ब्रह्मदत्त द्विवेदी, स्वर्गीय विमल तिवारी आदि बड़े नेता बैठ कर राजनीति कर चुके है| 84 के दंगों की गवाह भी यह पटिया रही है|
यह पटिया फर्रूखाबाद की धरोहर होनी चाहिए थी उसे सजेहने की वजय तोड़ दिया गया| उसे अतिक्रमण का रूप नही दिया जा सकता| वह पटिया सब की थी सभी के लिए उसके ऊपर जगह थी| लेकिन आखिर पटिया टूट गयी और भावी राजनीति के कर्णधार कुछ भी नही बोले क्यों नही बोले यह सबाल सबके जहन में है! भावी राजनीति में कहीं ना कहीं इसकी कमी खलेगी जरुर! लेकिन पटिया को यह दर्द रहेगा जिन्होंने उसके ऊपर बैठकर राजनीति की रोटियां सें की जब उस पटिया को टूटने का नम्बर आया तो सब दगा दे गये|