लखनऊ: कोविड-19 के मद्देनजर उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव को लेकर फैली अनिश्चितता फिलहाल राज्य निर्वाचन आयोग के एक आदेश से खत्म होती दिख रही है। आयोग ने एक सितंबर से मतदाता सूची के वृहद पुनरीक्षण संबंधी अपने ही आदेश को निरस्त कर दिया है, जिससे अब यह तय माना जा रहा है कि पंचायतों का समय से गठन नहीं हो सकेगा।
उत्तर प्रदेश में मौजूदा पंचायतों का पांच वर्ष का कार्यकाल 25 दिसंबर को पूरा हो रहा है। समय से चुनावी प्रक्रिया पूरी करने के लिए राज्य निर्वाचन आयोग को सामान्यता छह माह चाहिए होते हैं। विशेष परिस्थितियों में आयोग न्यूनतम चार महीने में भी चुनाव करा सकता है। परिसीमन के आंकड़े मिलने के बाद मदर रोल तैयार करने में जहां 10-15 दिन लगते हैं, वहीं मतदाता सूची के पुनरीक्षण में 75-90 दिन और चुनाव प्रक्रिया के लिए 35-45 दिन चाहिए होते हैं। ऐसे में आयोग ने 19 अगस्त को सभी जिलाधिकारियों (जिला निर्वाचन अधिकारी) को आदेश जारी कर पहली सितंबर से मतदाता सूची का वृहद पुनरीक्षण करने संबंधी अपने विचार बताते हुए तैयारियां करने के लिए कहा था।
राज्य निर्वाचन आयोग के इस आदेश से लगने लगा था कि समय से ही पंचायत चुनाव हो जाएंगे, लेकिन कुछ घंटों के अंतर पर ही आयोग की ओर से अपर निर्वाचन आयुक्त वेदप्रकाश वर्मा ने पहले जारी आदेश को शून्य यानी रद करते हुए एक और आदेश जारी कर बताया कि वह तो त्रुटिवश जारी हो गया था। आयोग के इस चौंकाने वाले रुख को देखते हुए जानकारों का मानना है कि पहली सितंबर से सूची का काम न होने से 25 दिसंबर तक पंचायतों का गठन भी संभव नहीं होगा।
सूत्रों के मुताबिक राज्य निर्वाचन आयोग ने तो चुनाव संबंधी तैयारी कर ली है, लेकिन राज्य सरकार की ओर से उसे हरी झंडी नहीं मिल रही है। आयोग ने अपनी ओर से दीपावली के बाद 16 नवंबर से 20 दिसंबर के बीच चुनाव प्रस्तावित कर रखा है। सूत्र बताते हैं कि चुनाव कराने को लेकर पिछले दिनों राज्य निर्वाचन आयुक्त मनोज कुमार, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिले भी हैं। माना जा रहा है कि मौजूदा परिस्थितियों को देखते हुए सरकार नवंबर-दिसंबर में चुनाव नहीं कराना चाहती है। परिस्थितियां बेहतर होने पर जनवरी से मार्च के बीच चुनाव कराए जा सकते हैं।