रेल से राजनीति चमकाते फर्रुखाबाद के नेता

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दिसम्बर महीने के दूसरे सप्ताह से जनवरी की 25 तारीख तक फर्रुखाबाद में पिछले 10 साल से एक ही मुद्दे पर राजनीती होती है| कालिंदी एक्सप्रेस रेल को चालू करो| पहले व्यापार मंडल के पास ये ठेका था अब सामाजिक संगठन भी उतर आये है| पहले ज्ञापन फिर पुतला फूक कार्यक्रम और सड़क जाम से लेकर अनशन तक| इतना करते करते महीना बीत जाता है और रेल अपने समय से चलने लगती है| ऐसा नहीं कि आन्दोलन या धरने की वजह से चली हो ये रेलवे का कार्यर्कम होता है| केंद्र में मंत्री सलमान खुर्शीद को कोस कोस कर नेतागिरी चमकाने का बेहतरीन मौका इस साल भी लोग गवाना नहीं चाहते|

फर्रुखाबाद को दिल्ली तक जोड़ने वाली एक मात्र रेल सेवा कालिंदी एक्सप्रेस को कोहरे के कारण या फिर किसी मेला में अतिरिक्त सेवा की वजह से एक महीने के लिए बंद किया जाता है| इस ट्रेन के बंद होते ही फर्रुखाबाद नगर के नेताओ को एक महीने तक सुर्खियाँ बटोरने के लिए मुद्दा मिल जाता है| ज्ञापन, धरना, बाजार बंद, पुतला फूको आदि आदि तमाम तरीके से आन्दोलन होता है| कई बार तो रेल का ही पुतला फूका जाता रहा है| मीडिया में खबरे छपती है और मामला सुर्ख़ियों में आता है| कई साल पहले पुतला फूकते समय व्यापार माडल के नेताओ में आगे रहकर फोटो खिचाने को लेकर गली गलौच हो गया था एक युवा नेता का जूता एक कांग्रेसी सह व्यापारी नेता के जूते के ऊपर चढ़ गया था| ये कार्यक्रम चलते चलते एक महीना बीत जाता है और रेल टी समय से चलने लगती है|

कालिंदी पर ही नेतागिरी क्यूँ

सवाल इस बात का नहीं कि कालिंदी ट्रेन बंदी पर आन्दोलन होना चाहिए या नहीं? सवाल तो इस बात का है कि अन्य जनसमस्याओं को अनदेखा कर कालिंदी पर ही नेतागिरी क्यूँ| क्या नगर में बाकी सब ठीक है| क्या नगर में साफ़ पानी पीने को मिलता है? कई साल से नगरपालिका बिना क्लोरीन का पानी पिला रही है| सरकारी स्कूलों में नगर में भी बच्चो को समय से किताबे ड्रेस और मेनू के अनरूप मिड डे मील नहीं मिलता है| नगर के भीड़ भाड़ बाजार में लोग अपने वहां बेतरतीब खड़े कर जाम लगते है| चौराहे तिराहे पर पुलिस वाला वसूली कर टेम्पो चालको को मनमानी करने देता है| नगरपालिका कि बनायीं सड़के साल भर भी नहीं चलती| सफाई कर्मी सफाई नहीं कर रहा है| बरसात आते ही नगर तलब बन जाता है, जगह जगह जलभराव हो जाता है| अस्पताल में स्वास्थ्य सेवाएं सुचारू रूप से नहीं चल रही है| व्यापारी को हर दफ्तर में घूस देनी पड़ रही होगी| कोटेदार राशन सही नही बात रहा होगा| सरकारी दफ्तरों में प्रमाण पत्र बिना घूस के नहीं मिल रहे होंगे|

क्या ये मुद्दे नहीं हो सकते? आखिर इन पर नेतागिरी क्यूँ होती? क्यूँ नहीं पुतले फूके जाते? क्यूँ नहीं अभियान चलाये जाते?