गंगा-जमुनी तहजीब की अजब मिशाल है अलीगढ़ की रामलीला

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ramlal-aफर्रुखाबाद:(राजेपुर) विकास खंड के मुस्लिम बाहुल्य गाँव अलीगढ़ में तकरीबन 102 वर्ष से लगातार जय श्रीराम-जय हनुमान के जयकारे लगते चले आ रहे| लेकिन वर्ष गुजर जाने के बाद आज तक हिन्दू मुसलमानों में किसी भी तरह का मन मुटाव नही हुआ| गाँव के लोग ही रामलीला का मंचन करते है| और सभी एक साथ मिल बैठकर रामलीला का लुफ्त उठाते है| देखा जाये तो अलीगढ़ में होने वाली रामलीला गंगा-जमुनी तहजीब का अजब उदाहरण है|

जानकारो की माने तो वर्ष 1914 में रामलीला का मंचन शुरू हुआ| जिसमे स्वर्गीय प० राजाराम दुबे निवासी कड़क्का का काफी सहयोग रहा| शुरुआती दौरा में अलीगढ़ के स्वर्गीय उमाशंकर महाजन ने अपने निर्देश में रामलीला करायी| समय बदलता चला गया और रामलीला के संरक्षक के साथ ही साथ कलाकार भी बदलते चले गये| पूर्व व्लाक प्रमुख रहे बलवीर सिंह ने भी रामलीला की देखरेख की| हिन्दू-मुस्लिम और गंगा-जमुनी तहजीब का उदय तब लोगो को नजर आया जब मुस्लिम बाहुल्य गाँव अलीगढ के ही स्वर्गीय मुजीब खां को क्षेत्रीय श्रीरामलीला परिषद अलीगढ़ का अध्यक्ष बनाया गया| उन्होंने अपनी देखरेख में कई वर्षो तक रामलीला का आयोजन कराया|

बुजुर्गो द्वारा डाली गयी आस्था और एकता की इस नीब को आज क्षेत्रीय लोगो ने बुलंद इमारत में तब्दील कर दिया है| वर्तमान में भी वही नजारा है| ग्रामीण रामलीला के कलाकार सुबह मजदूरी करने जाते है और शाम तक कड़ी मेहनत कर अपने परिवार के लिये दो जून की रोटी का जुगाड़ करते है|और शाम को आकर रामलीला में किरदार बन धर्म और कौमी एकता की मिशाल पेश करते है| रामलीला के कलाकार राजेन्द्र, रामदास, महेन्द्र, भानू अमर सिंह बलवीर आदि ने बताया कि रामलीला में उनके गाँव का मुस्लिम समाज बढ़-चढ़ भागीदारी करता है और दर्शको में भी मुस्लिम समाज बड़ी मात्रा में एकत्रित होक्र रामलीला का लुफ्त उठाता है|16 अक्टूबर को रामलीला का मंचन होना है और 17 अक्टूबर को रामबारात निकाली जायेगी| वर्तमान में आधुनिक रामलीला में 20 कलाकार विभिन्य किरदारों को वर्षो से अदा करते चले आ रहे है| (शिवा दुबे राजेपुर)