मथुरा के जवाहर बाग में 2 जून को क्या-क्या हुआ था, कहां हुई चूक?

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MATHURA, INDIA - JUNE 2: A file photo of Superintendent of Police Mukul Dwivedi, who died after clashes between police and encroachers, believed to be of Azad Bharat Vidhik Vaicharik Kranti Satyagrahi, who were being evicted from Jawaharbagh on June 2, 2016 in Mathura, India. 21 people including two senior police officers died in violence that erupted during a police drive to evict about 3,000 people who had encroached into the Jawahar Bagh park. The squatters belonged to Azad Bharat Vidhik Vaicharik Kranti Satyagrahi group and claimed to be true followers of Netaji Subhash Chandra Bose have illegally occupied public land from last two years. A cache of arms and several spent bullets of AK-47 assault rifles were seized by police from the site of the deadly clashes. (Photo by Anant Ram/Hindustan Times via Getty Images)नई दिल्ली: 2 जून का दिन मथुरा को बड़ा दर्द दे गया। पुलिस ने अपने दो होनहार अफसर खो दिया वहीं ये दिन 24 मौतों का गवाह बना। हर स्तर पर आरोप प्रत्यारोप जारी है। 2 जून की शाम का कड़वा सच क्या है, उस शाम को हकीकत में क्या हुआ था ये जानना बेहद जरूरी है। पेश है उस शाम का अनकहा सच-

4 जून को होनी थी अंतिम कार्रवाई
2 जून को मथुरा के जवाहर बाग में क्या-क्या हुआ था, कहां हुई चूक? पढ़ें इनसाइड स्टोरी
2 जून का दिन मथुरा को बड़ा दर्द दे गया। पुलिस ने अपने दो होनहार अफसर खो दिया वहीं ये दिन 24 मौतों का गवाह बना।
2 जून को जवाहर बाग में जो पुलिस कार्रवाई हुई वो दरअसल पुलिस की फाइनल कार्रवाई नहीं थी। पुलिस दरअसल जवाहर बाग में 4 तारीख को अंतिम कार्रवाई की योजना बना चुकी थी। अतिरिक्त पुलिस बल आसपास के जिलों से बकायदा मंगाया जा चुका था। जितने पुलिसकर्मी 2 जून को कार्रवाई करने पहुंचे उससे दोगुना संख्या में पीएसपी, आरएएफ मथुरा में अलग-अलग जगह डेरा डाले हुए थी। पुलिस का दरअसल एक प्लान ये था कि इस पूरे मामले में कम से कम लोग हताहत हों। शनिवार-रविवार को कार्रवाई की स्थिति में भीड़ कम होने की उम्मीद थी। साथ ही जवाहर बाग से अधिक से अधिक लोगों को पहले ही चेतावनी देकर बाहर निकालने की योजना थी। मंशा ये थी कि अंतिम कार्रवाई से पहले अधिक से अधिक लोग जवाहर बाग छोड़ कर निकल जाएं।

गुरुवार, 2 जून

इसी कड़ी में एसपी सिटी की अगुआई में 2 जून को एक बड़ी टीम जवाहर बाग पहुंची। साथ पहुंचे बुलडोजर ने बाग की दीवार तोड़ डालीं ताकि अगर कुछ लोग निकल कर भागना चाहें तो भाग सकें। पुलिस को ये भी अच्छी तरह पता था कि उनके पास काफी मात्रा में हथियार हैं। सीनियर अफसरों के बीच हुए पत्र व्यवहार में ये बात स्पष्ट रूप से कई बार रेखांकित हुई थी कि जवाहर बाग में जनहानि की आशंका बहुत ज्यादा है। इसी के चलते बकायदा पुलिस की ओर से प्लान बनाया गया था।

चूक कहां हुई

अब सवाल उठता है कि चूक कहां हुई। दरअसल ये आला अफसरों की रणनीतिक चूक का नतीजा था। गुरुवार की शाम 4.30 बजे एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी की अगुआई में 500 पीएसी, ट्रेनी जवान और पुलिस का अमला जवाहर बाग पहुंचा। इसमें एक एडिशनल एसपी, 4 सीओ और 6 एसओ स्तर के अफसर मौजूद थे।

4.45 बजे

एसपी सिटी जवाहर बाग के मेन गेट से न जाकर करीब 100 मीटर दूर जेल की ओर वाली दीवार के किनारे-किनारे आगे बढ़े। दीवार बुलडोजर से तोड़ दी गई। वहीं एसपी सिटी को फोर्स के साथ आगे बढ़ता देख सरगना रामवृक्ष यादव के लोगों को ये आभास हुआ कि पुलिस अभी अंतिम कार्रवाई करने जा रही है। पहले से अंदर मौजूद भीड़ ने पुलिस पर पत्थर फेंकना शुरू किया, जब पुलिस पीछे हटने लगी तब उनके हौसले बढ़ गए।

4.55 बजे

पेड़ों पर बैठी महिलाओं ने रामवृक्ष के आदमियों को कवर फायर देना शुरू किया। इसी फायरिंग में एक गोली एसएचओ संतोष यादव को लगी। संतोष यादव वहीं गिर गए। पुलिस बल ने फायरिंग के आदेश न होने के कारण पीछे हटना शुरू किया। इसी बीच भीड़ ने एसपी सिटी मुकुल द्वीवेदी को खींच लिया। ये देखकर उनके साथ मौजूद पुलिसकर्मी भाग खड़े हुए। भीड़ ने एसपी सिटी पर लाठी डंडों से बुरी तरह हमला करना शुरू कर दिया।

5.10 बजे

बाउंड्री के पास मौजूद पत्रकारों ने जब हल्ला मचाना शुरू किया तब पुलिस एकजुट होकर लौटी। लेकिन तब तक बुरी तरह हुई पिटाई से एसपी की मौत हो चुकी थी। पुलिस ने एसपी के शव को कब्जे में लिया और सिटी मजिस्ट्रेट की गाड़ी में तुरंत अस्पताल लाया गया।

गोली चलाने के आदेश

दरअसल, मामला बिगड़ने की असली जड़ गोली चलाने का आदेश जल्द न मिलना बताया जा रहा है। जब ये साफ था कि रामवृक्ष के लोगों के पास भारी मात्रा में हथियार हैं तो डीएम या सिटी मजिस्ट्रेट की ओर से गोली चलने की स्थिति में जवाबी गोलीबारी की पूर्व अनुमति क्यों नहीं दी गई। इस बात का जवाब अभी तक रहस्य बना हुआ है। बताया जाता है कि सिटी मजिस्ट्रेट से एक आला अधिकारी और पीएसी के जवानों की गोली चलाने के आदेश को लेकर बहस हुई। आखिर में फायरिंग का आदेश मिलने पर पुलिस ने जोरदार कार्रवाई शुरू कर दी।

करीब एक घंटे चली कार्रवाई

अपने दो साथियों की मौत के बाद पुलिस ने जोरदार कार्रवाई करते हुए करीब एक घंटे गोलियां चलाईं। पुलिस की कार्रवाई के दौरान बाग में मौजूद भीड़ ने फायरिंग के साथ-साथ पेट्रोल बम भी चलाए। इसी बीच पूरे बाग में मौजूद गाड़ियों में आग लगा दी गई। इसमें एक दर्जन से ज्यादा गाड़ियां जल कर स्वाह हो गईं।

कहां गए वो 2 हजार लोग?

इस विवाद में जो चीज अभी तक खुलकर सामने नहीं आ रही है वो ये कि जवाहर बाग में कितने लोग मौजूद थे। मथुरा के आला अधिकारी कई बार कह चुके हैं कि बाग में 2 हजार से ज्यादा लोग मौजूद थे तो पुलिस कार्रवाई के बाद वो कहां उड़न छू हो गए। क्यों पुलिस ने करीब 350 लोगों की गिरफ्तारी की बात कही है। इससे इस बात की आशंका और बलवती होती है कि जितने लोगों के इस कार्रवाई में मारे जाने की बात चल रही है, कहीं उससे ज्यादा मौतें तो नहीं हुई हैं। अनहोनी की आशंका इसलिए भी प्रबल हो रही है कि जवाहर बाग के चारों तरफ सदर 33, जजेस कंपाउंड, जेल, कलेक्ट्रेट, पीछे बालाजी पुरम और पुलिस लाइन की दीवार पर पुलिस मौजूद थी। हालात इस कदर खराब थे कि बाहर भागते कई लोगों को जनता ने ही खूब धुना। कई को पुलिस के हवाले किया।

ये घटना यूपी सरकार, प्रशासन की कलई खोलने वाली है। गोली चलाने का आदेश क्यों देर से दिया गया, किसके दम पर रामवृक्ष 2 साल से करोड़ों की उस जमीन पर कब्जा जमाए न सिर्फ बैठा रहा बल्कि सबके साथ मारपीट कर आतंक फैलाता रहा, 2 जून की रात बाग में क्या कार्रवाई हुई। आग कैसे लगी और अगर वहां 2 हजार लोग थे तो सिर्फ 4-5 सौ लोग ही कैसे पकड़ में आए, इनके जवाब मिलने बाकी हैं। बहरहाल, ये घटना सीएम अखिलेश की राजनीतिक फजीहत तो कर ही गई साथ उनके 5 साल के शासनकाल पर एक और दाग लगा गई।