नई दिल्ली: जो पैदा हुआ है, एक दिन उसका अंत भी होगा, यही कुदरत का कायदा है। विज्ञान भी नहीं मानता कि कोई मरने के बाद फिर पैदा हो सकता है। इंसान का पुर्नजन्म भी होता है। लेकिन एक कहानी है, जो विज्ञान की आंख से आंख मिलाकर खड़ी है, जिसके सामने वैज्ञानिकों के सारे तर्क बेमानी दिखाई देते हैं। ये कहानी है टीटू की। एक पांच साल के मासूम की, जो कहता है उसने मौत के बाद फिर जन्म लिया है, जो कहता है कि वो अपने पिछले जन्म के कातिलों को पहचानता है, जो लौटना चाहता है कि उस जिंदगी में जो बरसों पहले ही खत्म हो चुकी है।
आगरा के पास करीब डेढ़ हजार की आबादी वाला एक छोटा सा गांव है बाद गांव। इसी गांव में है महावीर प्रसाद का घर, जो पूरे गांव में मास्टर जी के नाम से मशहूर हैं। महावीर प्रसाद का सबसे छोटा बेटा तोरनसिंह उर्फ टीटू के जेहन में कुछ धुंधली सी तस्वीरें कैद हैं। एक ऐसी कहानी जो बचपन से आज तक उसे झकझोर रहीं हैं। कुछ ऐसे चेहरे, जिन्होंने आज तक उसे चैन से सोने नहीं दिया। कुछ ऐसे किरदार, जो अक्सर आंखों के सामने आ जाते हैं और टीटू बेचैन हो उठता है। टीटू का कहना है कि जब कभी मैं उन चीजों को याद करने की कोशिश करता हूं तो उन चीजों से कभी कभार सिरदर्द होता है। इससे मुझे दिक्कत होती है।
टीटू जब बच्चा था तो भी बच्चों जैसा नहीं था। उसकी बातें, उसके चेहरे पर अजीब सी खामोशी, उसकी बोली, सब कुछ अलग थी। बहुत जल्द ही उसके परिवार को इस बात का अहसास भी हो गया। टीटू के पिता महावीर ने बताया कि टीटू तीन साल की उम्र में बहुत ही साफ साफ बोलता था। ऐसा लगता था कि जाने ये कितना होशियार है। सारी बातें ये बड़ी तीव्रता से बताता था।
टीटू को बच्चों का साथ पसंद नहीं था। एक दिन लंबी खामोशी के बीच टीटू बहुत कुछ बोल पड़ा। उसने बताया कि उसका नाम तोरन सिंह नहीं सुरेश वर्मा है। उसका घर गांव में नहीं आगरा शहर में है। ये तमाम बातें परिवार के होश उड़ा रही थीं क्योंकि टीटू कभी आगरा गया ही नहीं था। मगर फिर एक दिन वो भी आया जब टीटू ने अपने पिता को पिता और मां को मां मानने से ही इंकार कर दिया।टीटू बार-बार किसी सुरेश रेडियोज नाम की दुकान का ज़िक्र करता था। कभी लगता कि ये कोई मानसिक रोगी है और कभी घर वालों को लगता कि ये कोई प्रेत आत्मा का साया है। इन्हीं सब उहापोह के बीच टीटू की यादों में बसने वाले किरदार न सिर्फ बड़े होने लगे बल्कि उसे अब परेशान भी करने लगे।
गांव में तरह तरह की बातें होने लगीं। अंधविश्वास में जकड़े गांव के लोगों को लगा कि टीटू पर किसी प्रेत आत्मा का साया है। झाड़ फूंक कराई गई। टोने-टोटके हुए। ताबीज और तांत्रिक का सहारा लिया गया। लेकिन कुछ काम नहीं आया। पांच बरस का टीटू अब भी अपनी पत्नी, अपने बच्चों को याद करता रहा। टीटू के भाई अशोक ने बताया कि जब टीटू के लिए कपड़े सिलवाए जाते थे, तो बोलता था मैं नहीं सिलवाऊंगा। इससे मेरे बच्चों के कपड़े सिलेंगे। रोनू और सोनू के।
जब पानी सिर के ऊपर चला गया, तो घरवालों ने आगरा में टीटू के बताए रिश्तों को कुरेदने का फैसला किया। 5 साल के टीटू को तलाश थी अपनी पत्नी की, अपने दो प्यारे खूबसूरत बच्चों की, सुरेश रेडियोज की, टीटू की इस कहानी के तार जुड़े थे आगरा शहर से और उसी कहानी के बिखरे तार जोड़ने के लिए टीटू का भाई अशोक अपने दोस्त के साथ आगरा पहुंच चुका था। आगरा की हर गली, हर सड़क पर सुरेश रेडियोज़ नाम की दुकान तलाशी जाने लगी। और आखिरकार सदर बाजार इलाके में टीटू के भाई की नजर एक दुकान पर टिक गई। टीटू के भाई के सामने थी सुरेश रेडियोज, यानी वही दुकान जिसका ज़िक्र टीटू रोज कर रहा था। लड़खड़ाते कदमों के साथ दोनों दुकान के अंदर पहुंचे। दुकान के काउंटर पर मौजूद थी एक महिला। अशोक ने उस महिला से दुकान के मालिक का नाम पूछा, जवाब मिला सुरेश वर्मा। जिनकी मौत 1986 में हो चुकी थी।
दुकान के काउंटर पर जो महिला मौजूद थी उसका नाम था उमा यानी सुरेश वर्मा की पत्नी। टीटू की कहानी, टीटू के सपने, ये सब सुनकर दोनों परिवारों के होश उड़ गए। इन तमाम बातों को बेबुनियाद मानकर बात वहीं खत्म हो गई। अशोक अपने गांव लौट चुका था। लेकिन टीटू की बातें उमा देवी को परेशान कर रहीं थीं। एक टूटी हुई डोर फिर से जुड़ रही थी। न चाहते हुए भी उमा देवी उस टूटे, बिखरे रिश्ते को दोबारा कुरेदने अपने सास ससुर के साथ टीटू के गांव पहुंच गईं।
न चाहते हुए भी उमा देवी उस रिश्ते को एक मौका देने के लिए राजी हो गईं। वो अपने सास ससुर के साथ टीटू के गांव पहुंचीं। जिन लोग की याद में टीटू बरसों से तड़प रहा था वो लोग अब टीटू के सामने थे। उन लोगों को देखते ही टीटू के चेहरे पर एक अजीब सी हंसी थी और टीटू उनसे ऐसे मिला जैसे कभी बिछड़ा ही न हो।
उमा देवी ने बताया कि टीटू ने उन्हें देखकर पहचान लिया। टीटू ने बात की। वो शरमा भी रहा था बात करने में, उसने कुछ ऐसी बातें कहीं कि हमें विश्वास हो गया। उमा देवी और उनके परिवार ने टीटू से कुछ ऐसे सवाल पूछे जिसकी जानकारी सिर्फ सुरेश को थी। लेकिन टीटू हर सवाल का जवाब देता चला गया। उमा देवी ने बताया कि ननद का नाम बताया। दिल्ली में रहती है। उसने ये भी कहा कि वहां मेरे पैसे रखे थे वो भी सच ही था। टीटू के दावों की गहराई परखने के लिए उसे आगरा लाया गया। टीटू पहली बार उस दुकान में पहुंचा जहां टीटू कुछ ऐसे चहलकदमी करने लगा, जैसे ये सब कुछ अपना ही हो।
आगरा में टीटू का एक और इम्तिहान लिया गया। उमा देवी ने पड़ोसियों के बच्चों के साथ अपने बेटों रोनू और सोनू को भी उसी भीड़ में बैठा दिया। लेकिन टीटू ने एक झटके में ही उन्हें पहचान लिया। ये कहानी अब एक नए मोड़ पर थी। लेकिन इस कहानी की विज्ञान की नजर में कोई कीमत नहीं थी। टीटू के शरीर पर कुछ निशान थे। कुछ वैसे ही निशान जो मौत के वक्त सुरेश वर्मा के थे। टीटू के यही निशान सस्पेंस को और गहरा रहे थे।