बिलासपुर (निप्र): नसबंदी शिविर में महिलाओं को दी गई सिप्रोसीन व आईब्रूफेन टेबलेट की हैदराबाद लैब से आई जांच रिपोर्ट सोमवार को ट्रायल कोर्ट में पेश की जाएगी। रिपोर्ट को देखकर पुलिस व अफसर भी हैरान है। इसमें जहर होने या नहीं होने का उल्लेख ही नहीं किया गया है।
चकरभाठा थाना क्षेत्र के पेंडारी स्थित नेमीचंद जैन केंसर हास्पिटल में आयोजित नसबंदी शिविर में 13 महिलाओं की मौत हो गई थी। इसके साथ ही अन्य जगहों पर आयोजित नसबंदी शिविर में भी महिलाओं की मौत हो गई और अधिकांश महिलाओं की तबीयत बिगड़ गई थी।
पुलिस इस मामले में ऑपरेशन करने वाले डॉक्टर के साथ ही दवा निर्माता व सप्लाई करने वाली फार्मा कंपनी के संचालकों के खिलाफ जुर्म दर्ज कर जांच कर रही है। पुलिस ने आरोपियों को गिरफ्तार कर कोर्ट में चालान पेश कर दिया है। वहीं कुछ आरोपियों को अब भी पुलिस की पकड़ से बाहर है।
इस बीच राज्य शासन की तरफ से सिप्रोसीन व आईब्रूफेन टेबलेट को संदिग्ध बताया गया और उसमें चूहामार दवा होने का दावा किया गया। लिहाजा, दवाओं की जांच के लिए सेंपल को अलग-अलग लैब जांच के लिए भेजा गया था। जांच के दौरान पुलिस ने भी दवाओं के जब्त सेंपल को हैदराबाद स्थित रामनाथपुरम लैब भेजा था।
इस बीच पुलिस की जांच व पीएम रिपोर्ट में ऑपरेशन में लापरवाही व सेप्टीसिमिया से महिलाओं की मौत होने का उल्लेख किया गया। वहीं दवा निर्माता रायपुर की महावर फार्मा व सप्लाई करने वाली कविता फार्मा कंपनी के संचालकों को भी दोषी माना गया है।हैदराबाद स्थित लैब से जांच रिपोर्ट आ गई है। आला-अफसरों से चर्चा के बाद चकरभाठा टीआई एसएन शुक्ला ने दवाइयों की जांच रिपोर्ट हाईकोर्ट के शासकीय अधिवक्ता को सौंप दी है, जिसे 22 अप्रैल को आरोपियों की जमानत अर्जी की सुनवाई के दौरान पेश किया जाएगा।
रिपोर्ट की मूल प्रति को पुलिस सोमवार को ट्रायल कोर्ट में पेश करेगी, जिसे चालान के साथ शामिल किया जाएगा। पुलिस के आला अधिकारी इस लैब से आई दवा परीक्षण रिपोर्ट को देखकर हैरान हैं। रिपोर्ट में दवाइयों के सिर्फ तत्वों का उल्लेख है। इसमें जहर है या नहीं? अथवा दवाइयां मानक है या अमानक? इसका भी जिक्र नहीं किया गया है। लिहाजा, पुलिस अफसर इस रिपोर्ट पर अधिकृत रूप से कुछ भी कहने से इनकार कर रहे हैं।
महावर व कविता फार्मेसी कंपनी ने बांटी अमानक दवाइयां
पुलिस की जांच रिपोर्ट में रायपुर की महावर फार्मेसी कंपनी व सप्लायर कविता फार्मेसी कंपनी के संचालकों को अमानक दवाइयां सप्लाई करने के लिए दोषी माना गया है। पुलिस की जांच रिपोर्ट में बताया गया है कि महावर फार्मा कंपनी दवाइयों का निर्माण करता है।
लेकिन जब कंपनी की लैब की जांच की गई तब खुलासा हुआ कि कंपनी ने दवाओं को निर्माण करने का झांसा देकर अमानक दवाइयां सप्लाई की है। कंपनी के स्टॉक रूम में सिप्रोसिन व आईब्रूफेन दवाइयां बनाने का कोई रॉ मटेरियल भी नहीं मिला है और न ही दवाइयां निर्मित करने का कोई उल्लेख है।
स्टॉक पंजी में दवाइयों की मात्रा भी निर्धारित नहीं है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि कितनी दवाइंया बांटी गई हैं। यही नहीं कंपनी दवाइयां कहां बनाती थी या बाजार से लाकर सप्लाई करती थी। इसके बारे में भी स्पष्ट जानकारी नहीं दी जा सकी है। पुलिस का मानना है कि कंपनी बाहर से दवाइयां मंगाकर अपना लेबल लगाकर शासन को सप्लाई कर रही थी। दवाइयां मानक है। इसकी रिपोर्ट भी कंपनी ने पुलिस के समक्ष पेश नहीं की है।
बिसरा रिपोर्ट की तरह है लैब रिपोर्ट
संदिग्ध मौत के मामलों में पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर यह स्पष्ट नहीं कर पाते हैं कि मौत कैसे हुई, तब बिसरा जांच कराने की सलाह दी जाती है। बिसरा जांच में मौत के कारणों का स्पष्ट पता चल जाता है, लेकिन नसबंदी शिविर में महिलाओं की मौत के मामले में बिसरा रिपोर्ट गोलमोल बनाई गई है। फारेंसिक एक्सपर्ट की टीम ने रिपोर्ट में में सिप्रोसिन व आईब्रूफेन का जिक्र किया है, लेकिन मौत क्यों और कैसे हुई? इसका कोई उल्लेख ही नहीं किया गया है।
इसी तरह हैदराबाद स्थित लैब से आई रिपोर्ट में भी दवाइयों का जिक्र किया गया है, लेकिन यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि इसमें मानव जीवन को खतरा होने या मौत होने संबंधी कोई तत्व है या नहीं? जबकि पुलिस को रिपोर्ट में इसी सवाल का जवाब चाहिए था। इससे पहले कोलकाता की लैब ने दवाइयों की मानक क्षमता कम होने का उल्लेख करते हुए जांच से इनकार कर दिया था।