फर्रुखाबाद: शयद आप को याद हो की 20 जून 1934 को केंद्रीय कारागार फतेहगढ़ में देश भक्त अमर शहीद मणीन्द्रनाथ बनर्जी ने अपने प्राणों की आहुति दी थी| यह शायद जनपद वासियों के लिए गौरव की बात होगी| हमारा तो सर गर्व से ऊँचा उठ जाता है| तो लाजमी है की कारागार के लिए भी यह कोई छोटी बात नही| शहदत दिवस पर प्रदेश व देश के कोने-कोने से स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आते है और जो अब हमारे बीच नही है है उनके नाती-पोतो को समारोह में आमंत्रित किया जाता है| वह कार्यक्रम में पंहुच कर शहीद के प्रति हमारी भावनाओ को देख अंतामन में सुख की अनुभूति करते है| लेकिन आप को यह जान कर आश्चर्य होगा की कारागार विभाग का यह दिखाबा ही है| तभी कार्यक्रम की गुणवत्ता में दिनों दिन गिरावट देखी जा रही है| वही शहीद मणीन्द्रनाथ बनर्जी की पुण्यतिथि पर प्रकाशित होने वाली पुस्तक”कीर्ति गाथा मुक्ति संग्राम की” दो वर्ष प्रकाशित नही की जा रही है| जिस पुस्तक के माध्यम से हम पुराने शहीदों के विषय में जानकारी प्राप्त कर सकते थे जिन्हें हम भुला चुके है|
वर्ष 2009 में इस पुस्तक की शुरुआत तत्कालीन जेल अधीक्षक वीपी त्रिपाठी व कार्यक्रम के सह-सयोजक डॉ रामकृष्ण राजपूत के माध्यम से शुरु की गयी थी| जिसके बाद वर्ष 2010 में भी वीपी त्रिपाठी ने ही इस पुस्तक को प्रकाशित कराने में अपनी अहम भूमिका अदा की| वर्ष 11-12 की किताबो को जेल अधीक्षक यादवेन्द्र शुक्ला ने प्रकाशन में अपनी भूमिका अदा की| 2012 के बाद से पुस्तिका का प्रकाशन धन आभाव के कारण नही हो पाया| वह भी धन कितना केबल 20 से 25 हजार रुपये| प्रति वर्ष जेल अधीक्षक श्री शुक्ला पुस्तिका के लिए दो से तीन हजार रुपये उपलब्ध कराते थे| बीते दो वर्षो से धन उपलब्ध ना हो पाने के कारण किताब का प्रकाशन नही हो पा रहा है|
यैसे में जिलाधिकारी नरेन्द्र कुमार की एक कहावत याद आती है एक निरिक्षण के दौरान टूटी कुर्सी देखकर उन्होंने अधिकारियो से कहा था की कोई कुछ नही करना चाहता यदि एक लेखपाल चाहे तो एक कुर्सी का नया नया सैट लाकर डाल सकता है कौन सा वह अपनी वेतन से लायेगा| डीएम की यह बात नसीहत भरी थी| की अगर विभाग चाहे तो छोटे-छोटे कार्य खुद ही निपटाए जा सकते है| यह विभाग के प्रति मेरी कर्तव्य होगा|
कीर्ति गाथा में प्रदेश व जनपद के विभिन्य क्षेत्रो में शहीद हुए शहीदों की यादे संजोयी जाती थी वह महान मुर्तिं जो अपने प्राणों की आहुति देकर दुनिया से विदा ले गये उनके इतिहास को समाहित किया जाता था| शयद अब नई पौध को पढने तक को नसीव नही होगी| मणीन्द्र की शहादत पर जेल प्रशासन कितना सक्रिय है यह इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है| फ़िलहाल सम्पादक मण्डल में वरिष्ठ जेल अधीक्षक यादवेन्द्र शुक्ला व सह-सयोंजक डॉ डॉ रामकृष्ण राजपूत के बीच आपसी तालमेल न बैठपाना भी इसकी एक वजह मानी जा रही है|
इस सम्बन्ध में डॉ रामकृष्ण राजपूत ने बताया की वरिष्ठ जेल अधीक्षक की तरफ से पुस्तिका के लिए कोई धन राशि पिछले दो वर्षो से नही उपलब्ध करायी जा रही है| जिससे पुस्तिका का प्रकाशन नही हो पा रहा है|
जेल अधीक्षक का इस खबर पर बयान चौकाने वाला है -वही वरिष्ठ जेल अधीक्षक यादवेन्द्र शुक्ला ने बताया की पुस्तिका के लिए व समारोह के लिए कारागार के पास बजट नही है वह काट-पीट करके कार्यक्रम ही करा देते है यह ही कौन सा कम है|