फर्रुखाबाद : सयुक्त परिवार में रहने का आनंद ही अलग है | अकेला जीवन भी भला कोई जीवन है | जब तक परिवार सयुक्त रहता है परिवार का हर सदस्य अनुशासन में रहता है | उसको कोई गलत कार्य करने से पहले बहुत सोचना समझना पड़ता है | क्योंकी उस पर परिवार की मरियादा का अंकुस रहता है | यह अंकुश हटने के बाद भी वह बिना लगाम के घोड़े की तरह हो जाता है | लेकिन सयुक्त परिवार में सुखी रहना है तो पाने की प्रवर्ती का परित्याग कर देने की प्रवर्ती रखनी पड़ेगी | परिवार के हर सदस्य का नैतिक कर्तव्य है की वे दुसरे की भावनाओ का आदर कर करे यैसा कार्य न करे की दुसरे की भावनाओ को ठेस पंहुचे |
किसी भी विषय को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न न बनाये | गम खा कर और त्याग करके ही सयुक्त परिवार चलाया जा सकता है |इसमे भी अहम भूमिका परिवार प्रधान की होती है हमे भगबान शंकर के परिवार से शिक्षा लेनी चाहिए | इनके परिवार के सदस्य है पत्नी पार्वती,पुत्र गणेश ,कर्तिकेय, वाहन नंदी,सिंह,चूहा,मोर | शंकर जी के गले में नागो की माला रहती है परिवार के मुखिया की हैसियत से वह सबको एकता के सूत्र में बांधे रहते है |विभिन्य प्रवर्ती होने के बाद भी सब आपस में प्रेम से रहते है |
सयुक्त परिवार कोई फैशान या परम्परा नही है बल्कि एक दुसरे की जरुरत है | कहते है की अमेरिका में मदर्स डे व फादर्स डे मनाते है पर हमारे यंहा यैसी कोई परम्परा ही नही है |वंहा वर्ष भर तो माँ बाप को कोई पूंछता नही है और अकेला पन भुगतना पड़ता है | वंहा की संताने वर्ष भर में एक दिन फुल पकडकर अपने कर्तव्य की इतिश्री मान लेते है यह हमारी भारतीय परम्परा ही है की आज भी बहुत से परिवार सयुक्त परिवार की तरह चलते है और संताने बुढ़ापे में माँ बाप का छाया छाता बनती है उनका दुःख तकलीफ बांटती है और उनको अकेले पण का अहसास नही होने देती | सही मायनो में तो अपने उत्तर दायित्यो को निभाने का दूसरा नाम सयुक्त परिवार है |
परिवार को एक सूत्र में जोड़कर रखने की कड़ी है स्त्री खासकर सयुक्त परिवार में नववधू जब ससुराल आती है तो सबसे तालमेल बिठाने की पहल उसे ही करनी पड़ती है | लेकिन बाद में इसकी अहमियत भी ससुराल वालो की नजर में देखते बनती है |सयुक्त परिवार में रहने के लिए परिवार के अन्य सदस्य ताल मेल बैठाना भी एक कला है अगर आप इसमे पारंगत है तो सबकी आँखों का तारा बन जाएगी और बहुत से अधिकार बिना कहे ही आप की झोली में आ जायेगे | अधिकार मांगे नही जाते आपने आप मिल जाते है |
नववधु के पीहर बाले भी ससुराल के मामलो के ना करे दाखलन दाजी——-
नवबधु के पीहर वालो को भी चाहिए की वे बहू की ससुराल में अनावश्यक दखलंदाजी ना कारे | कई बार देखा जाता है की बेटी के ससुराल में हस्तछेप कर के वे अपनी ही बेटी का अनचाहे ही हित की जगह अहित कर बैठते है | जिससे बेटी को जंहा जीवन भर रहना है वंहा रहना दूभर हो जाता है | कभी भी बेटी का गलत पक्ष लेकर अनावश्यक उसके लिए मुसीबते खडी ना करे | सयुक्त परिवार अभी एकता के सूत्र में बंधा रह पता है जब सभी सदस्य समझदारी से काम ले छोटी छोटी बातो को नजर अंदाज करे मन में त्याग की भावना रखे और उत्तेजना बस उल्टा सीधा बोलकर घर के बातावरण को दूषित ना करे | क्योंकि शव्दों के तीर दुसरो के दिल में नासूर बनकर परिवार के टूटने का कारण बनते है |
सास बहू से अपेझा करती है की वह उसको माँ समझे लेकिन खुद बहु को बेटी मानने को तैयार नही इसी प्रकार बहू चाहती है की सास मुझे बेटी माने लेकिन खुद बेटी बनने को तैयार नही होती |पति पत्नी से अपेझा करता है की उसकी पत्नी सीता और सवित्री बने लेकिन खुद राम बनने को तैयार नही होता है |यह परस्पर विरोधाभास ही सयुक्त परिवार की कलह का मूल कारण है थोड़ी स्वर्थ भावना का त्याग करके एक दुसरे की भावना का आदर करने मात्र से ही सयुक्त परिवार टूटने से बच सकते है |
सुरक्षा और स्वास्थ्य ;
परिवार के प्रत्येक सदस्य की सुरक्षा की जिम्मेदारी सभी परिजन मिलजुल कर निभते हैं .अतः किसी भी सदस्य की स्वास्थ्य समस्या ,सुरक्षा अमास्या ,आर्थिक समस्या पूरे परिवार की होती है .कोई भी अनापेक्षित रूप से आयी परेशानी सहजता से सुलझा ली जाती है .जैसे यदि कोई गंभीर बीमारी से जूझता है तो भी परिवार के सब सदस्य अपने सहयोग से उसको बीमारी से निजात दिलाने में मदद करते है उसे कोई आर्थिक समस्य या रोजगार की संसय अड़े नहीं आती .ऐसे ही गाँव में या मोहल्ले में किसी को उनसे पंगा लेने की हिम्मत नहीं होती संगठित होने के कारण पूर्ताया सुरक्षा मिलती है .व्यक्ति हर प्रकार के तनाव से मुक्त रहता है .
लेकिन आधुनिक युग में सयुक्त परिवार की सख्या में कमीआती जा रही है | और लोग हिंसा का रास्ता अपनाकर परिवार को एकांकी कर लेते है |