नई दिल्ली: लंबे इंतजार के बाद लोकपाल संसद से पारित हुआ तो भी नया इतिहास बना गया। दरअसल शुरुआत तो लोकपाल के लिए श्रेय लूटने से हुई, लेकिन जनदबाव भारी पड़ा। यह पहली बार हुआ कि अनचाहे ही सही सरकार और विपक्ष ने इस विधेयक का श्रेय जनता व अन्ना को दे दिया। लंबे अरसे बाद सदन में कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी इस मुद्दे पर विचार रखे। हालांकि, उनसे पहले लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने राहुल को श्रेय देने की कोशिशों को पुराने तथ्यों के साथ तार-तार कर दिया। दिल्ली में आए जनमत का असर संसद पर भी दिखा। वरना यह संसद के इतिहास में पहली बार नहीं होता कि साढ़े चार दशक से अटका लोकपाल महज एक घंटे में पारित हो जाता। हालांकि, कार्यमंत्रणा समिति की बैठक में इसके लिए चार घंटे का समय निश्चित किया गया था।
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लोकपाल पारित करने की अफरा-तफरी में भी कांग्रेस और भाजपा ने शुरू में तो श्रेय लेने की कोशिश की, लेकिन आखिरकार इसका श्रेय जनता को देकर खुद जनसेवक दिखना ही बेहतर समझा। कुछ दिन पहले ही राहुल गांधी ने केंद्रीय मंत्रियों के साथ पत्रकारों से बातचीत में अपना संकल्प दोहराकर परोक्ष रूप से लोकपाल का सेहरा अपने सिर बांधने की कोशिश की थी। बुधवार को सुषमा को मौका मिला तो उन्होंने कांग्रेस के दावे को ध्वस्त करने का मौका नहीं छोड़ा। वह याद दिलाने से नहीं चूकीं कि दो साल पहले लाया गया कांग्रेस का लोकपाल कमजोर और खामियों से भरा था। विपक्ष के दबाव के बाद ही राज्यसभा की प्रवर समिति में इसे मजबूत रूप दिया गया है। उन्होंने कांग्रेस पर संशोधित विधेयक एक साल से जान-बूझकर लंबित रखने का आरोप भी लगाया। अंत में आखिरी श्रेय आंदोलन पर बैठे अन्ना और जनता को देकर कांग्रेस के सभी मंसूबों पर पानी फेर दिया।
सुषमा के बाद राहुल खड़े हुए तो संप्रग काल में ही आरटीआइ विधेयक पारित होने का जिक्र कर संकेत दिया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कांग्रेस शुरू से काम कर रही है। उन्होंने अपील की कि संसद का सत्र बढ़ाना भी पड़े तो लोकपाल के साथ लोक शिकायत, सिटीजन चार्टर जैसे दूसरे विधेयकों को भी पारित किया जाना चाहिए। जाहिर तौर पर राहुल लोकपाल का श्रेय कांग्रेस के सिर बांधना चाहते थे, लेकिन सुषमा के बाद कांग्रेस के हर नेता ने जनता को श्रेय देना ही वाजिब समझा। संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि इसके लिए जनता और अन्ना को वाहवाही मिलनी चाहिए।