फर्रुखाबाद: करोड़ों रुपये की लागत से तैयार अस्पताल का नाम शायद सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी के आदर्श पुरुष लोहिया जी के नाम पर रखते समय सोचा भी न होगा कि यह किस प्रकार इसी अस्पताल में तैनात सरकारी डाक्टरों की मनमानी और उनकी निजी प्रेक्टिस की हवस की भेंट चढ़ जायेगा। इस अस्ताल में जहां मरीज इलाज के लिये टक्करें-ठोकरें खाते फिरते हैं वहीं अस्पताल में तैनात अधिकांश डाक्टर धड़लले से निजी प्रैक्टिस कर रहे हैं। कुछ ने तो बेशर्मी की हद कर दी, अस्पताल के गेट पर ही निजी अस्पताल खोल दिया। एक अपने पिताजी के एक हमनाम डाक्टर साहब तो बाकायदा अपने पिता के इतिहास दोहरा रहे हैं। सोमवार को कुछ सपाइयों ने हो-हल्ला किया, मगर इससे कुछ होगा, इसकी उम्मीद कम नहीं, बिल्कुल नहीं है। क्योंकि बीमारी तो वह चीज है जो जिला प्रशासन के अधिकारियों या उनके परिजनों को भी होती ही रहती है। ऐसे में डाक्टरों के संगठित ‘समूह’ के खिलाफ मोर्चा खोलने की उनकी शायद हिम्मत नहीं पड़ती है। अन्यथा एलआईयू से लेकर एसआईयू तक की ने जाने कितनी रिपोर्टें प्रशासन की फायलों में धूल चाट रही हैं।
करोड़ों रुपये की लागत से तैयार लोहिया अस्पताल का भवन बाहर से देखने पर जितना शानदार नजर आता है, अंदर की दशा उतनी ही खराब और चौपट है। व्यवस्था और दवाइयों की समस्या तो बाद की बात है। यहां तो मरीज का इलाज करने के लिये डाक्टर ही नहीं मिलते हैं। अव्वल तो आवश्यकता से काफी कम चिकित्सकों की तैनाती के चलते अधिकांश पद रिक्त पड़े हैं। जो गिने चुने डाक्टर हैं भी उनमें से अधिकांश अस्पताल समय में गायब रहकर निजी प्रैक्टिस में लिप्त रहते हैं। दूर दराज से आने वाले ग्रामीण क्षेत्रों के बेचारे मरीज इलाज की आस में इधर-उधर भटकते रहते हैं। डाक्टरों के कमरों में उनके दलाल चहल कदमी करते रहते हैं। जो इंतजार कर रहे मरीजों को हतोत्साहित करने के साथ ही डाक्टर साहब को बाहर दिखा लेने के लिये प्रोत्साहित करते रहते हैं। कई बार तो मरीज के राजी होने पर यही दलाल डाक्टर के नर्सिंग होम तक छोड़ भी आते हैं। कुछ ने अपने नर्सिंग होम बना रखे हैं। कुछ दूसरों के नर्सिंग होम में कंसल्टेंट के तौर पर विजिटिंग डाक्टर की हैसियत से जाते हैं। एक अस्ताल तो एसे भी हैं, जिनके मालिक चिकित्सा के क्षेत्र में झोला छाप या अगूंठा-टेक हैं, जिनका काम केवल इंन्हीं किराये के डाक्टरों पर चल रहा है नहीं, दौड़ रहा है।
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इसी अस्पताल में एक चर्चित युवा डाक्टर साहब हैं। सरकारी नौकरी के काफी कम अंतराल में भी कई बार सस्पेशन का लाभ ले चुके हैं। इन डाक्टर साहब के पिताजी भी कभी इसी फतेहगढ़ के पुराने जिला अस्पताल में नौकरी करते थे। तब वह भी अस्पताल जाने के स्थान पर पुराने जिला अस्पताल के सामने एक पतली सी गली में बैठकर प्रैक्टिस किया करते थे। जब अधिकारियों ने जादा दबाव डाला तो सस्पेंशन की डील कर ली। कई सालों तक सस्पेंड रहे, फिर ले-दे कर बहाल हो गये, और वीआरएस (स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति) ले ली। सस्पेंशन अवधि के वेतन और वीआरएस में एक-मुश्त मिले लाखों रुपयों से एक आलीशान नर्सिंग होम खोल लिया है। इन्हीं के सुपुत्र और हमनाम यह युवा डाक्टर साहब भी अपने पिता के इतिहास को दोहरा कर गौरवांवित महसूर कर रहे हैं। लोहिया गेट के पास ही आलीशान नर्सिंग होम खोल रखा है। बोर्ड पर लिखे नाम के विषय में पूछने पर बता दिया जाता है कि यह तो उनके हमनाम पिताजी का नाम है।
सोमवार को कुछ मरीजों की शिकायत पर सपा महानगर अध्यक्ष महताब खां ने लोहिया अस्पताल पहुंच कर थोड़ी-बहुत फूं-फां की। एक दो वरिष्ठ अधिकारियों को फोन लगाये और साथियों के साथ सिर धुनते हुए चले आये। बाद में मीडिया में एक प्रेस नोट जारी कर दिया। सपा के महानगर अध्यक्ष महताव खां नें नगर सचिव रफी अहमद व अन्य पदाधिकारियों के साथ आवास विकास स्थित डॉ0 राममनोहर लोहिया अस्पताल का जायजा लिया अस्पताल में ड्यूटी पर तैनात डॉ0 एच पी श्रीवास्तव मौजूद नहीं थे। सपा पदाधिकारी अपरान्ह एक बजे तक अस्पताल में रहे परन्तु डॉ0 साहब का अता पता नहीं चला जबकि अस्पताल में मरीजों की लम्बी कतार लगी हुयी थी।
सपा महानगर अध्यक्ष महताव खां व महानगर सचिव रफी अहमद नें बताया कि बीते कई दिनों से डॉ0 एच पी श्रीवास्तव के अस्पताल में न बैठनें की शिकायतें मिल रहीं थीं जिसके चलते सोमवार को सपा पदाधिकारियों ने अस्पताल का हालचाल जानने के लिये निरीक्षण किया। बहीं नगर अध्यक्ष नें मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजकर डॉ0 श्रीवास्तव की शिकायत भी की। इसके साथ ही सपा पदाधिकारियों ने इसी मामले को लेकर जिलाधिकारी पवन कुमार को भी एक ज्ञापन सौपकर डॉ0 श्रीवास्तव के विरूद्घ कड़ी कार्यवाही की मांग की। लोहिया अस्पताल में नगर अध्यक्ष नें सीएमएस को भी इस मामले से अबगत कराया जिस पर सीएमएस नें लिखित शिकायत मांगी।