अन्दर की बात- जिसकी जाँच ही नहीं हुई उसे क्लीन चिट देने या न देने का क्या मतलब- लोकायुक्त

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maya smarak parkलखनऊ : ..ये संतों महापुरुषों की समाधियों का काम है, इसे निष्ठा, ईमानदारी और समयबद्धता से किया जाए, ये बातें तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने भले ही अधिकारियों और मंत्रियों से कही रही हों, मगर उनके दो मंत्रियों ने भ्रष्टाचार से इस कार्य को अपवित्र कर दिया। ..ये बातें मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भेजी गई रिपोर्ट में लोकायुक्त ने कही हैं।
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जांच रिपोर्ट में कुछ इंजीनियरों, अधिकारियों के बयानों का हवाला देकर कहा गया है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने मंत्रियों, इंजीनियरों और अधिकारियों से कहा था कि संतों, महापुरुषों की समाधियों के कार्य में गड़बड़ी नहीं होनी चाहिए। मगर उनके दो मंत्रियों ने अपनों को फायदा पहुंचाने और लाभ हासिल करने के लिए पवित्र कार्य को अपवित्र कर दिया। सूत्रों का कहना है कि जांच रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि तथ्यों से ऐसा प्रतीत होता है कि मायावती सरकार के मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा के बीच अपने लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए लम्बी खींचतान चली। तत्कालीन मुख्यमंत्री ने कई बार कार्यो का निरीक्षण किया। उनके बारे में इससे ज्यादा कुछ नहीं लिखा गया है।
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जांच रिपोर्ट में किसी आईएएस अधिकारी को आरोपित नहीं किया गया है, मगर इतना जरूर लिखा गया है कि सारी गड़बड़ियां उनके आंखों के सामने हुई और वह मूकदर्शक रहे। पत्थर घोटाले में पूर्व मुख्यमंत्री को क्लीन चिट के सवाल पर लोकायुक्त न्यायमूर्ति एनके मेहरोत्रा ने कहा कि उन्हें जांच सिर्फ पत्थरों में घोटाले की सौंपी गई थी, उन्होंने सिर्फ उसी पक्ष की जांच की है। उनके आधीन रही ईओडब्ल्यू ने भी उसी पहलू की जांच की। जिसकी जांच ही नहीं हुई उसे क्लीन चिट देने या आरोपित ठहराने का सवाल ही पैदा कहां होता है। लोकायुक्त का कहना है कि उन्होंने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है, जांच रिपोर्ट पर तीन माह में फैसला लेने का समय दिया गया है। लिहाजा अब फैसला सरकार के हाथ में है।