हाईकोर्ट के निर्णय की प्रत्याशा में दिन भर धड़ल्ले से बिका गुटखा

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FARRUKHABAD : लिखा-पढ़ी के हिसाब से उत्तर प्रदेश में पहली अप्रैल से गुटखा प्रतिबंधित होना है लेकिन पूर्व संध्या तक सरकार इस मुद्दे पर कुछ भी कहने से बचती रही। उसके पास इसका भी कोई जवाब नहीं था कि पहली अप्रैल से राज्य में गुटखा के निर्माण या बिक्री को रोकने के लिए किस तरह के कदम उठाए जाएंगे। चूंकि पहली अप्रैल को ही गुटखा पर प्रतिबंध के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है, इसलिए सरकार कोर्ट के निर्णय आने तक किसी प्रकार gutakha- tubacoकोई सख्त उठाना नहीं चाह रही है। वैसे भी राज्य सरकार गुटखा प्रतिबंध के पक्ष में नहीं है लेकिन कोर्ट के ही आदेश पर उसे पहली अप्रैल से राज्य में गुटखा निर्माण, भंडारण व बिक्री को दंडनीय अपराध घोषित करने की अधिसूचना जारी करना पड़ा है। फिलहाल हाईकोर्ट के निर्णय की प्रत्याशा में सोमवार को धड़ल्ले से गुटखा की बिक्री हुई।

उल्लेखनीय है इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इंडियन डेंटल एसोसिएशन की जनहित याचिका पर सितंबर माह में सुनवाई के बाद सरकार से तंबाकू मिश्रित गुटखा बिक्री को रोकने का निर्देश दिया था। इसके लिए सरकार को 14 दिन का समय दिया गया था परन्तु सरकार ने छह माह का समय मांगा ताकि इस उद्योग से जुडे लाखों लोगों के सामने आए  रोजी रोटी के संकट का समाधान तलाशा जा सके।

अक्टूबर 2012 में सरकार ने अधिसूचना जारी करते हुए राज्य में एक अप्रैल से गुटखा को प्रतिबंधित कर दिया। उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में गुटखा (तंबाकू उक्त पान मसाला) पर रोक के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट सोमवार को सुनवाई करने वाला है। महाराष्ट्र में गुटखा पर रोक जारी है, जबकि उत्तर प्रदेश में रविवार रात से रोक की अधिसूचना प्रभावी हो रही है। इंडियन डेंटल एसोसिएशन ने याचिकाओं का जबरदस्त विरोध किया है, जबकि छह माह पहले अधिसूचना जारी कर एक अप्रैल से गुटखा व तंबाकू उत्पादों के निर्माण व बिक्री पर रोक लगाने वाली उत्तर प्रदेश सरकार असमंजस में दिखती है। उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी तक सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने 11 मार्च को याचिकाओं का जवाब दाखिल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से दो हफ्ते का समय ले लिया था। समय पूरा हो चुका है और मामले पर सोमवार को सुनवाई होनी है, लेकिन सरकार ने अभी तक अपना जवाबी हलफनामा दाखिल नहीं किया है।

पैरोकारों का कहना है कि सरकार को जो भी कहना होगा सोमवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट में कह दिया जाएगा। उम्मीद की जा रही है कि सोमवार को उत्तर प्रदेश के एडवोकेट जनरल पेश होंगे और कोर्ट के समक्ष सरकार का पक्ष रखेंगे। दूसरी ओर इंडियन डेंटल एसोसिएशन ने याचिकाओं का जबरदस्त विरोध किया है। एसोसिएशन के वकील विष्णु बिहारी तिवारी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबित उनकी जनहित याचिका की सुनवाई पर अंतरिम रोक लगाई है। लंबित याचिका तो महत्वहीन हो चुकी है, क्योंकि उन्होंने उसमें राज्य सरकार को रोक अधिसूचना जारी करने का आदेश दिए जाने की मांग की थी और राज्य सरकार अधिसूचना जारी कर चुकी है। तिवारी का कहना है सुप्रीम कोर्ट ने तंबाकू युक्त पान मसाला के निर्माण व बिक्री पर रोक लगाने वाली उत्तर प्रदेश सरकार की चार अक्टूबर, 2012 की अधिसूचना पर कोई रोक नहीं लगाई है। ऐसे में राज्य सरकार की अधिसूचना एक अप्रैल से लागू हो जाएगी। उसमें सुप्रीम कोर्ट का आठ अक्टूबर का आदेश आड़े नहीं आएगा।

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मालूम हो कि केंद्र सरकार ने पांच अगस्त, 2011 को अधिसूचना जारी कर फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड (बिक्री पर रोक और नियंत्रण) नियम 2011 लागू किए। जिसका नियम नंबर 2.3.4 कहता है कि किसी भी खाद्य पदार्थ में निकोटीन व तंबाकू का प्रयोग नहीं होगा। केंद्र के नियम के मुताबिक राज्य सरकारों का विधायी दायित्व है कि वे इस कानून को अधिसूचना जारी कर अपने यहां लागू करें। अभी तक 22 राज्य व 4 केंद्र शासित प्रदेश अपने यहां गुटखा पर रोक लगा चुके हैं। उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव एवं आयुक्त खाद्य व औषधि प्रशासन विभाग प्रवीर कुमार का कहना है सरकार गुटखा बिक्री पर एक अप्रैल 2013 से प्रतिबंध की अधिसूचना जारी कर चुकी है। सुप्रीम कोर्ट में गुटखा बिक्री को लेकर वाद लम्बित है। इसी फैसले का सभी को इंतजार है।