सहमित से सेक्स की उम्र 16 वर्ष करने को लेकर कैबिनेट में ठनी, बिल लटका

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rapeमहिलाओं के खिलाफ यौन उत्‍पीड़न व बलात्‍कार आदि अपराधों के मामले में कड़ी सजा का रास्ता साफ करने वाले ऐंटि रेप बिल पर कैबिनेट में सहमति नहीं बन पाने के कारण मंगलवार चर्चा के लिए बिल को मंत्रियों के समूह के पास भेज दिया गया। सबसे ज्यादा मतभेद सहमति से सेक्स की उम्र को लेकर है। यौन दर्शन सुख और पीछा करने को किस प्रकार परिभाषित किया जाए, इस पर भी मतभेद है। सरकार को ऐंटि रेप लॉ बिल को संसद में 4 अप्रैल से पहले पास कराना होगा, नहीं तो अध्यादेश अपने आप समाप्त हो जाएगा और सरकार की किरकिरी होगी।

सूत्रों ने बताया कि मंगलवार को कैबिनेट की स्पेशल मीटिंग ऐंटि रेप बिल को मंजूरी देने के लिए बुलाई गई थी, लेकिन मतभेद सुलझते न देख प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसे मंत्रिसमूह को भेजने का फैसला किया। इस मंत्रिसमूह में वित्त मंत्री पी. चिदंबरम, महिला एवं बाल विकास मंत्री कृष्णा तीरथ, कानून मंत्री अश्विनी कुमार, गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे और टेलिकॉम मंत्री कपिल सिब्बल सदस्य होंगे। 14 मार्च को इस मसले पर जीओएम की बैठक में फैसला होगा। जीओएम में चर्चा के बाद इसे कैबिनेट में लाया जाएगा।

बिल पारित कराने को लेकर कैबिनेट में आम सहमति थी, लेकिन कुछ मुद्दे अनसुलझे रहे। बिल में प्रस्ताव किया गया है कि आपसी सहमति से सेक्स संबंध बनाए जाने की उम्र को 18 साल से घटाकर 16 साल किया जाए। इस मुद्दे पर विभिन्न मंत्रालयों के बीच लंबी चर्चा हो चुकी है और कुछ का तर्क है कि इसे कम नहीं किया जाना चाहिए। महिला और बाल विकास मंत्रालय ने इस कदम का विरोध किया है। गौरतलब है कि सहमति की उम्र से नीचे यौन संबंधों को रेप माना जाता है।

सूत्रों ने बताया कि सेक्स की उम्र के अलावा बिल में रेप शब्द के इस्तेमाल को लेकर भी विवाद है। तर्क दिया जा रहा है कि रेप के बजाय सेक्शुअल असॉल्ट शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, जो ज्यादा व्यापक है और लैंगिकता के मामले में तटस्थ भाव दर्शाता है। इस बात पर भी मतभेद थे कि यौन दर्शन सुख और पीछा करने को किस प्रकार परिभाषित किया जाए, जिन्हें बिल में आपराधिक कृत्य के रूप में शामिल किया गया है। अध्यादेश में पहली बार इन दो गतिविधियों को आपराधिक कृत्य के रूप में परिभाषित किया गया है। कुछ मंत्रियों ने फर्जी सबूतों और झूठी गवाही के खिलाफ पर्याप्त सुरक्षा उपाय नहीं किए जाने पर भी चिंता जताई।

बिल में अध्यादेश के एक महत्वपूर्ण प्रावधान को बरकरार रखा गया है, जिसके तहत यदि रेप विक्टिम की मौत हो जाती है या वह कोमा जैसी स्थिति में आती है तो इसके लिए दोषी को मौत की सजा दी जा सकती है। इसमें न्यूनतम सजा 20 साल की जेल है, जिसे उम्र कैद तक बढ़ाया जा सकता है।

नया बिल 3 फरवरी को मंजूर किए गए आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश-2013 की जगह लेगा। अध्यादेश की समय सीमा 4 अप्रैल को समाप्त हो रही है। ऐसे में केंद्र सरकार को ऐंटि रेप लॉ बिल को संसद में 4 अप्रैल से पहले पास कराना होगा, नहीं तो अध्यादेश अपने आप समाप्त हो जाएगा और सरकार की किरकिरी होगी। कानून मंत्री ने उम्मीद जताई है कि सरकार बजट सेशन में विधेयक पास करा लेगी।