चोरी का आरोप लगाकर गरीब मरीज को लोहिया अस्पताल के बाहर मरने के लिए फेंका

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harnathFARRUKHABAD : वह गरीब था, उसका इस दुनिया में कोई नहीं! सिर्फ दूसरों के सहारे बचे हुए जीवन को एक बोझ की तरह जीने पर मजबूर है वह व्यक्ति! हो भी क्यों न दुनिया की सबसे बड़ी बीमारी उसको लग गयी। जिसका इस संसार में कोई इलाज नहीं और न ही कोई दवा खाना उसे उम्मीद दे सकता है। इस बीमारी के चलते उसे सिर्फ एक ही सुविधा मिलती है मतदान करने की। इसके अलावा हर जगह मिलता है तो सिर्फ तिरस्कार। गरीबी है उस बीमारी का नाम जो हरिनाथ को लग गयी। हालांकि हरिनाथ सूबे की प्रदेश सरकार के गढ़ एटा का मूल निवासी है लेकिन इन दिनों वह फर्रुखाबाद के सबसे बड़े राजकीय चिकित्सालय राममनोहर लोहिया में जिंदगी और मौत के बीच में झूल रहा है। उसे यह नहीं पता था कि जहां वह अपनी जान बचाने के इरादे से आयेगा वहीं पर उसे लापरवाही के साथ-साथ लोगों का तिरस्कार, गाली सहनी पड़ेंगी। आगे पीछे किसी को न देखकर दूसरे भगवान कहे जाने वाले लोहिया अस्पताल के चिकित्सकों व कर्मचारियों ने उसे महज एक कम्बल चोरी का आरोप लगाकर अस्पताल से बाहर फेंक दिया। लेकिन पैरों से विकलांग हरिनाथ कई दिन बीत जाने के बाद भी अब सिर्फ आसमान की तरफ से धीरे धीरे उसकी तरफ आ रही मौत को धुंधलाई आंखों से निहार रहा है।

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किसी हिन्दी फिल्म की तरह हरनाथ सिंह पुत्र अशरफीलाल निवासी दरियावगंज थाना पटियाली जनपद एटा आखिर मौत को क्यों चाह रहा है। क्या उसे किसी ने मजबूर किया। इस प्रश्न का जबाव जब जानने का प्रयास किया गया तो सूखी जवान से हरनाथ ने जो वयां किया वह शब्द किसी भी इंसान को झकझोर देने के लिए काफी थे। डेढ़ वर्ष पूर्व हरनाथ सिंह अपने खेतों में काम कर रहा था तभी एक ऐसी घटना हरनाथ के साथ घटी कि उसका जीवन ही नरक हो गया। अचानक फावड़ा उसके पैर में लग गया। यह कोई खास बात नहीं, खेती में काम करने वाले लोगों के लिए यह आम बात है। लेकिन हरनाथ को यह नहीं पता था कि उसके लिए यह खास बात ही होने वाली है। मामूली चिकित्सा करने के बाद हरनाथ का ध्यान उस चोट की तरफ से हट गया तो एक दिन उसे चिकित्सक ने बताया कि उसे सेप्टिक (गला रोग) हो गया है। एक पैर में ही नहीं वल्कि दोनो पैरों में। हरनाथ अब चल फिर नहीं सकता था। क्षेत्रीय इलाज से जब फायदा नहीं हुआ तो लोगों ने उसे लोहिया अस्पताल के लिए टरका दिया।

हरनाथ के बीबी बच्चों की मौत पहले ही किसी बीमारी से हो गयी थी। बीते कुछ दिनों पूर्व हरनाथ किसी तरह से लोहिया अस्पताल तो आ गया लेकिन लोहिया अस्पताल में घसिटते हुए जब हरनाथ पहुंचा तो रजिस्टर पर नाम अंकित करने के साथ ही कर्मचारियों ने भर्ती करवाने वाले का नाम पूछा? जिस पर हरनाथ ने नजर नीची करते हुए कहा कि मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है। कर्मचारी स्थिति को भांप गये और उसे लावारिश समझ कर पैरों में सामान्य पट्टी बांध कर वापस टरका दिया लेकिन वह चल फिर नहीं सकता था तो वह लोहिया अस्पताल के आपात कालीन चिकित्सालय के बाहर ही रुक गया। लेकिन जब कोई आराम नहीं मिला तो उसने फिर किसी तरह से लोहिया अस्पताल के कर्मचारियों से सम्पर्क साधा लेकिन उनके लिए सर दर्द बने हरनाथ को वहां से भगाने का जब कोई रास्ता नजर नहीं आया तो उन्होंने उस पर एक मामूली सा कंबल चोरी करने का आरोप लगाकर गाली गलौज कर लोहिया अस्पताल के बाहर मरने के लिए धकेल दिया। लेकिन शायद कर्मचारी यह भूल गये कि मानवता भी कोई चीज होती है। लोहिया अस्पताल से बाहर निकालने के बाद आज तकरीबन चार दिन गुजर गये। हरनाथ के दोनो पैर बुरी तरह से गलने शुरू हो गये, लेकिन लोहिया प्रशासन के कान पर जूं नहीं रेंग रहा है। मजे की बात तो यह है कि जिस जगह का वह रहने वाला है उसके गृह जनपद के खासे करीबी प्रदेश सरकार में मुख्यमंत्री हैं। लेकिन उन्हीं की सरकार द्वारा जिस लोहिया अस्पताल का निर्माण कराया गया था और जहां बीसों लाख रुपये सरकारी कर्मचारियों को वेतन दिया जाता है परन्तु एक गरीब को इलाज का इलाज न करने के नाम पर कंबल चोरी का आरोप लगाकर कर्मचारी अपनी कर्तव्यनिष्ठा बखूबी निभाते हैं। अगर शीघ्र हरनाथ को चिकित्सीय सहायता नहीं मिली तो वह अपने दोनो पैरों को हमेशा के लिए खो देगा या मौत उसे अपने साथ ले जाने में कोई लापरवाही नहीं बरतेगी।

इस सम्बंध में लोहिया अस्पताल के सीएमएस एन बी कटियार ने बताया कि उस पर चोरी का आरोप लगाने की बात गलत है। उसकी कई बार पट्टी भी की गयी लेकिन वह खुद ही सही होना नहीं चाहता। पट्टी खोल देता है। भीख मांगने की उसकी आदत है। उसका मानना है कि अगर उसके घाव ठीक हो जायेंगे तो कोई उसे भीख नहीं देगा। फिलहाल उसको पुन: चिकित्सीय सुविधा उपल्ब्ध कराने का प्रयास किया जायेगा।