उप्र विधान मण्डल की 125 वीं वर्ष गांठ पर सम्‍मानित होंगे महरम व इजहार

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फर्रुखाबाद: विधान मण्डल की स्थापना के 125 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर 6 जनवरी से 8 जनवरी के बीच तीन दिवसीय  उत्तरशती रजत जयन्ती वर्ष समारोह के दौरान जनपद के अब तक जीवित कुल 13 पूर्व विधायकों को सम्‍मानित किया जायेगा।

आयोजन में सम्‍मिलित होने के लिये जनपद से महरम सिंह, इजहार आलम खां, सुशील शाक्‍य, प्रताप सिंह यादव, लुइस खुर्शीद,उर्मिला राजपूत, अनंत कुमार मिश्रा, ताहिर सिद्दीकी, कुलदीप गंगवार, सुरेश चंद्र सिंह यादव, चंद्र भूषण सिंह मुन्‍नू बाबू, छोटे सिंह यादव, अरविंद प्रताप सिंह सहित कुल 13 पूर्व विधायकों को आमंत्रित किया गया है। इनमें छोटे सिंह यादव व अरविंद प्रताप सिंह जनपद कन्‍नौज से संबंधित हैं। जिलाधिकारी की ओर से इस संबंध में पत्र जारी किया गया है।

विदित है कि ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा वर्ष 1833 में चार्टर ऐक्ट लागू करके गवर्नर जनरल पद का सृजन किया गया। वर्ष 1834 में चैथी प्रेसीडेंसी स्थापित की गई और इलाहाबाद को राजधानी बनाया गया तथा वहाँ के किले को मुख्यालय बनाकर व्यवस्था का क्रियान्वयन प्रारम्भ किया गया। इस राज्य का नाम नार्थ वेस्टर्न प्राविंस आफ अवध रखा गया।

27 जनवरी, 1920 को गवर्नमेण्ट हाउस लखनऊ में भी बैठक हुयी थी। इस बैठक में कुल 19 सदस्यों ने भाग लिया था, जिसमं से 17 सदस्यों ने लखनऊ में विधान भवन बनाने तथा 2 सदस्यों ने इलाहाबाद में विधान भवन बनाने के पक्ष में मतदान किया था। उसी मतदान के आधार पर 1922 में 21 दिसम्बर को वर्तमान विधान भवन का तत्कालीन राज्यपाल श्री हरकोर्ट बटलर द्वारा शिलान्यास किया गया था। यह तारीख विधान भवन के गेट नं0 1 के पास लगे पत्थर पर देखी जा सकती है। गवर्नमेण्ट आफ इडिया एक्ट 1935 की व्यवस्था के अनुसार विधान मण्डल का स्वरूप है। नवम्बर 1937 में यह भवन तैयार हुआ था तथा सदन की बैठक लेजिस्लेटिव कौंसिल (वर्तमान विधान परिषद में बैठक हुयी थी)। उल्लेखनीय है कि पूर्व में विधान मण्डल की बैठक छतर मंजिल के पीछे स्थित लाल बारादारी में होती रही।

वर्तमान उत्तर प्रदेश विधान मण्डल का स्वरूप 1 अप्रैल 1937 से लागू है जो गवर्नमेण्ट इण्डिया एक्ट 1935 के अनुसार है। बाद में इस एक्ट के अनुसार राज्यों के लेजिस्लेटिव कौंसिल का नाम बदलकर लेजिस्लेटिव एसेम्बली कर दिया गया था। 15 अगस्त 1947 को आजादी के बाद लेजिस्लेटिव एसेम्बली का नाम विधान सभा तथा जिन राज्यों में बाई-कैमरेल सदन है उस सदन का नाम विधान परिषद (उच्च सदन) कर दिया गया था। 1935 में सदस्यों की संख्या 228 थी। 1950 में यह संख्या 332 हो गयी तथा 1951 में 421 हो गयी तथा 1967 में 426 कर दी गयी तथा विधान परिषद में यह सदस्य संख्या 108 थी। वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश का विभाजन होने तथा अलग राज्य उत्तरांचल (उत्तराखण्ड) बनने के कारण विधान सभा के सदस्य संख्या 404 है तथा विधान परिषद में 100 है। 22 सदस्यों को मिलाकर उत्तरांचल राज्य के विधान सभा का गठन सन् 2000 में किया गया था।