फर्रुखाबाद: सर्दी का मौसम शुरू होते ही यदि आप मछली का उपयोग खाने में कुछ ज्यादा बढ़ा रहे हैं तो जरा सोच समझ कर ही इसे चूज करें। आप जो मछली उपयोग कर रहे हैं कहीं वह मछली एपीज्यूटिक अल्सरेटिव सिन्ड्रोम जैसी खतरनाक बीमारी से ग्रसित तो नहीं है। इस सम्बंध में जिला प्रशासन की तरफ से भी मछली उत्पादकों को अवगत कराया गया है। मछली उत्पादकों को निर्देश दिये गये हैं कि यदि मछली में इस तरह की बीमारी के लक्षण पायें तो तत्काल ही एसी मछली को जमीन में दबाकर अन्य तालाब में उचित दवाई का प्रयोग करें।
सर्दी का मौसम प्रारंभ होते ही मछलियों में एपीज्यूटिक अल्सरेटिव सिन्ड्रोम नामक बीमारी फैलने का भय रहता है। इस बीमारी से मछलियों के शरीर में जगह जगह लाल धब्बे व गहरे जख्म हो जाते हैं। बीमारी अधिक बढ़ने पर पूछ व पंख गलने लगते हैं। एपीज्यूटिक अल्सरेटिव सिन्ड्रोम नामक बीमारी का प्रकोप मछलियों में माह नवम्बर से जनवरी तक रहता है। इस बीमारी में मछलियों का व्वहार असामान्य हो जाता है। मछलियां पानी से अपना सिर बाहर निकालकर पानी पर तेजी से तैरती हैं व जल की सतह पर धीमी गीति से तैरती हैं।
जनपद के समस्त मत्स्य पालकों को सूचित करते हुए मुख्य कार्यकारी अधिकारी मत्स्य पालक विकास अभिकरण शिवराम ने पत्र जारी कर कहा कि इस बीमारी के लक्षण दिखायी देने पर तालाबों में पानी आने जाने के मार्गों को बंद कर दें तथा समस्त रोगग्रस्त मछलियों को निकालकर जमीन में दबा दें। साथ ही तालाब में 200 से 600 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुझे हुए चूने का घोल बनाकर तालाब में छिड़काव करें अथवा पांच किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पोटेशियम परमैगनेट के घोल का प्रयोग करें।